अपनी धुन के पक्के विक्रमार्क ने उस श्मशान के बेताल को अपने कन्धों पर लादा और चल दिए अपने गंतव्य की ओर | थोड़ा समय बीतने पर बेताल ने उन्हें अगली कथा सुनाना प्रारंभ किया | मदनपुर नगर में वीरवर नाम का राजा राज करता था । उसके राज्य में एक वैश्य था, जिसका नाम हिरण्यदत्त था। उसके मदनसेना नाम की एक कन्या थी। मदनसेना अभूतपूर्व सुंदरी थी |
एक दिन मदनसेना अपनी सखियों के साथ वहाँ के राजकीय बाग़ में गयी हुई थी । वहाँ संयोग से सोमदत्त नामक सेठ का लड़का धर्मदत्त अपने मित्र के साथ आया हुआ था । वह मदनसेना को देखते ही उससे प्रेम करने लगा। घर लौटकर वह सारी रात उसके लिए बैचेन रहा। अगले दिन वह फिर बाग़ में गया।
मदनसेना वहाँ अकेली गुमसुम सी बैठी हुई थी । धर्मदत्त को यह उचित समय लगा अपने ह्रदय की बात कहने का | उसने मदनसेना के पास जाकर उससे कहा, “हे सुन्दरी मै तुमसे अत्यधिक प्रेम करता हूँ, अब मै तुम्हारे बिना रह नहीं पाऊँगा, अगर तुम मुझसे प्यार नहीं करोगी तो मैं अपने प्राण दे दूँगा।”
मदनसेना ने चकित होते हुए उत्तर दिया, “आज से पाँचवे दिन मेरा विवाह होने वाला है। मैं तुम्हारी नहीं हो सकती ।” वह बोला, “मैं तुम्हारे बिना जीवित नहीं रह सकता।” मदनसेना भयभीत हो गयी । उसे समझ नहीं आया वह क्या कहे | थोड़ा संयत होते ही वह बोली, “अच्छी बात है। मेरा विवाह हो जाने दो। मैं अपने पति के पास जाने से पहले तुमसे ज़रूर मिलूँगी।”
यद्यपि वचन दे कर मदनसेना डर गयी । उसका विवाह हो गया और वह जब अपने पति के पास गयी तो उदास होकर बोली, “आप मुझ पर विश्वास करें और मुझे अभय दान दें तो एक बात कहूँ।” पति ने विश्वास दिलाया तो उसने सारी बात कह सुनायी। सुनकर पति ने सोचा कि यह बिना जाये मानेगी तो है नहीं, इसे रोकना बेकार होगा, क्योंकि इसने वचन दिया है । इसलिए उसने अपनी पत्नी को जाने की आज्ञा दे दी।
मदनसेना अच्छे-अच्छे कपड़े और गहने पहन कर चली । रास्ते में उसे एक चोर मिला । उसने उसका आँचल पकड़ लिया। मदनसेना ने कहा, “तुम मुझे छोड़ दो। यदि मेरे आभूषण लेना चाहते हो तो लो।” चोर बोला, “किन्तु मैं तो तुम्हें चाहता हूँ।” मदनसेना ने उसे सारी बात बतायी और कहा, “पहले मैं वहां हो आऊँ, तब तुम्हारे पास आऊँगी।”
चोर ने उसे छोड़ दिया। मदनसेना धर्मदत्त के पास पहुँची । उसे देखकर वह बड़ा खुश हुआ और उसने पूछा, “तुम अपने पति से बचकर कैसे आयी हो?” मदनसेना ने सारी बात सच-सच कह दी। धर्मदत्त पर उन दोनों पति-पत्नी की सज्जनता का बड़ा गहरा असर पड़ा। उसने उसे छोड़ दिया।
फिर वह चोर के पास आयी। चोर सब कुछ जानकर ब़ड़ा प्रभावित हुआ और वह उसे उसके घर पर छोड़ गया। इस प्रकार मदनसेना सबसे बचकर पति के पास आ गयी। पति ने सारा हाल कह सुना तो बहुत प्रसन्न हुआ और वह उसके साथ आनन्द से रहने लगा।
इतना कहकर बेताल बोला, “हे राजा! बताओ, पति, धर्मदत्त और चोर, इनमें से कौन अधिक त्यागी है?” राजा ने कहा, “चोर। मदनसेना का पति तो उसे दूसरे आदमी पर रुझान होने से त्याग देता है।
धर्मदत्त उसे इसलिए छोड़ता है कि उसका मन बदल गया था, फिर उसे यह डर भी रहा होगा कि कहीं उसका पति उसे राजा से कहकर दण्ड न दिलवा दे। लेकिन चोर का किसी को पता न था, फिर भी उसने उसे छोड़ दिया। इसलिए वह उन दोनों से अधिक त्यागी था।”
राजा विक्रमादित्य के मुख से यह उत्तर सुनकर बेताल पहले तो बहुत प्रसन्न हुआ फिर पेड़ पर जा लटका | उसके बाद राजा विक्रमादित्य जब उसे लेकर दोबारा चले तो उसने अगली कथा सुनायी।