कबूतरों का एक दल भोजन की खोज में उड़ता चला जा रहा था, परंतु दूर जाने पर भी कहीं उन्हें कुछ भोजन दिखाई नहीं पड़ा | कबूतर उड़ते-उड़ते थक गए थे, फिर भी भोजन की आशा में उड़ते रहे। आखिर एक नन्हा कबूतर थकावट से व्याकुल होकर बोल उठा, “न जाने कब तक उड़ना पड़ेगा ? अब तो उड़ा नहीं जाता।”
नन्हे कबूतर की बात सुनकर कबूतरों का राजा बोला, “घबराओ नहीं, उड़ते चलो । परिश्रम व्यर्थ नहीं जाता। कहीं न कहीं भोजन अवश्य मिलेगा।” नन्हा कबूतर मौन हो गया। चुपचाप उडने लगा। थकावट के कारण वह बहुत व्याकुल और अधीर हो रहा था।
सहसा नन्हे कबूतर की दृष्टि नीचे की ओर गई । वह एक बरगद के वृक्ष के नीचे चमकते हुए चावल के दाने को देखकर बोला, “अरे वह देखो, बहुत-से चावल के दाने बिखरे पड़े हैं । चलो, नीचे उतरकर आराम से खाएं ।” दल के दूसरे कबूतरों ने भी चावल के दानों को देखा । वे भी एक साथ बोल उठे, “हां, हां, बहुत-से चावल के दाने बिखरे हुए हैं । चलो उतरकर आराम से खाएं ।”
बस, फिर क्या था ? सभी कबूतर नीचे उतर पड़े और बरगद के वृक्ष के नीचे बिखरे हुए दानों को बीन-बीनकर खाने लगे | कबूतर दाने खा ही रहे थे | कि ऊपर से एक जाल गिरा और सभी कबूतर जाल में फंस गए |
कबूतरों का राजा जोर से बोला, “अरे यह क्या ? यह तो हम जाल में फंस गए ।” दूसरे कबूतरों ने भी व्याकुल होकर कहा, “हां, हम सचमुच जाल में फंस गए । अब तो जान गंवानी पड़ेगी ।” कबूतर हाय-हाय करने लगे वे अधीर होकर पछताने लगे। कबूतरों के राजा ने कहा, “हाय-हाय करने और पछताने से कुछ काम नहीं बनेगा ।
जब विपत्ति पड़े, तो धैर्य से काम लेना चाहिए मुझे एक उपाय सूझा है। हमें बहेलिये के आने के पहले ही एक साथ जोर लगाकर जाल को लेकर उड़ जाना चाहिए।” कबूतरों ने आश्चर्य प्रकट करते हुए कहा, “यह कैसे हो सकता है?” कबूतरों के राजा ने उत्तर दिया, “बड़ी सरलता से हो सकता है। एकता में बड़ा बल होता है। जब हम सब एक साथ जोर लगाएंगे, तो अवश्य जाल को लेकर उड़ जाएंगे।”
कबूतरों के राजा ने अपनी बात खत्म ही की थी कि बहेलिया आता हुआ दिखाई पड़ा। राजा कबूतर ने बहेलिया को देखकर कहा, “बहेलिया आ रहा है। अब हमें एक साथ जोर लगाकर जाल को लेकर उड़ जाना चाहिए।” उसका कहना था कि सभी कबूतरों ने एक साथ जोर लगाया। और वे सचमुच जाल को लेकर आकाश में उड़ने लगे। कबूतरों को जाल सहित उड़ता हुआ देखकर बहेलिया चकित हो उठा।
उसने आज तक ऐसा आश्चर्यजनक दृश्य कभी नहीं देखा था | उसने कबूतरों का पीछा किया, पर अब कबूतर कहां मिल सकते थे? कबूतर जब उड़ते हुए कुछ दूर चले गए, तो कबूतरों के राजा ने कहा, “भाइयो, बहेलिए के द्वारा हम मारे जाने से बच गए। अब हमें जाल से छुटकारा पाने का उपाय करना चाहिए। पहाड़ी के उस पार मंदिरों का देश है। वहां मेरा मित्र मूषक रहता है, चलो उसी के पास चलें। वह अवश्य जाल को काटकर हमें छुटकारा दिला देगा।”
कबूतरों का राजा मंदिरों के देश की ओर उड़ने लगा | वह मंदिरों के देश में मूषक के बिल के पास जा पहुंचा और जाल सहित नीचे उतर गया |
मूषक अर्थात् चूहा बिल के ही भीतर था। वह बिल के बाहर शोरगुल सुनकर डर गया और बिल के भीतर ही छिपा रहा। कबूतरों के राजा ने प्रेम-भरे स्वर में चूहे को पुकारते हुए कहा, “मित्र, डरो नहीं हम हैं तुम्हारे मित्र कबूतर।”
कबूतरों के राजा की आवाज को सुनकर चूहा बिल से बाहर निकल आया और अपने मित्रों को देखकर बोला, “अरे तुम हो भाई, पर यह क्या ? तुम तो जाल में फंसे हो !” कबूतरों के राजा ने उत्तर दिया, “कुछ न पूछो, मित्र! हम सब चावल के दाने चुग रहे थे कि जाल में फंस गए। तुम्हारे पास इसीलिए तो आए हैं । कृपा करके जाल के फंदों को काटकर हमें जाल से छुटकारा दिलाओ।”
चूहा बोला, “घबराओ नहीं मित्र, मैं अभी तुम्हारे जाल को काट दूंगा और तुम स्वतंत्र हो जाओगे।” कबूतरों के राजा ने कहा, “मित्र, मुझे स्वतंत्र करने से पहले मेरे साथियों के फंदों को काटकर उन्हें स्वतंत्र करो।” कबूतरों के राजा की बात सुनकर चूहा बड़ा प्रसन्न हुआ ।
उसने कहा, “तुम योग्य राजा हो । राजा को इसी प्रकार अपने से अधिक अपने आश्रितों का ध्यान रखना चाहिए।” चूहा अपनी बात समाप्त करके जाल के फंदों को काटने लगा । उसने एक-एक करके सभी कबूतरों के फंदे काट डाले जब सभी कबूतर स्वतंत्र हो गए, तो अंत में चहे ने राजा के फंदे काटकर उसे भी स्वतंत्र कर दिया कबूतरों का राजा बड़ा प्रसन्न हुआ ।
उसने चूहे से कहा,”मित्र, इस उपकार के लिए मैं आजीवन तुम्हारा कृतज्ञ रहूंगा ।” कबूतर का राजा चूहे के प्रति कृतज्ञता प्रकट करके अपने दल के साथ उड़कर चला गया
कहानी से शिक्षा
विपत्ति पड़ने पर घबराना नहीं चाहिए। आपस में मिलकर रहना चाहिए, क्योंकि एकता में बड़ा बल होता है | संकट का सामना मिलकर करना चाहिए। सच्चा मित्र वही है, जो संकट में काम आता है।