बहुत दिनों पहले की बात है, एक वृक्ष की जड़ के पास बिल में तीतर निवास करता था । वृक्ष पर घोंसले बनाकर और भी पक्षी रहते थे । तीतर और अन्य पक्षियों में परस्पर बड़ा प्रेम था | सब मिल-जुलकर रहते थे । संकट की घड़ी में एक-दूसरे की सहायता करते थे । प्रभात होते ही सभी पक्षी भोजन की खोज में उड़ जाया करते थे और शाम होने पर फ़िर लौट आते थे ।
सवेरे और संध्या के समय वृक्ष पर बड़ी चहल-पहल रहती थी, परंतु दिन में सन्नाटा छाया रहता था | तीतर भी प्रतिदिन सवेरे भोजन की खोज में उड़ जाता और शाम को फिर लौट आता था । वह बिलकुल अकेला था । जब तक लौटकर नहीं आता था, उसका घर खाली पड़ा रहता था | एक दिन प्रात:काल जब तीतर भोजन की खोज में निकला तो एक स्थान पर उसे धान के कटे हुए खेत दिखाई पड़े ।
खेतों में बहुत-से चावल के दाने इधर-उधर बिखरे हुए पड़े थे । तीतर चावल के दानों को देखकर नीचे उतर पड़ा और बड़े प्रेम से बीन-बीनकर खाने लगा । उसे समय की भी याद नहीं रही । चावल के दाने खत्म भी नहीं हो रहे थे, क्योंकि सभी खेतों में बिखरे हुए थे । तीतर पूरे दिन चावल के दानों को खाता रहा । शाम होने पर वह घर लौटकर नहीं गया । रात में खेत में ही रह गया ।
इसी तरह तीतर चार-पांच दिनों तक चावल बीन बीनकर खाता रहा और रात भी वहीं काटता रहा । पांच-छ: दिनों के बाद तीतर को अपने घर की याद आई | वह जब उड़कर अपने घर गया तो देखता है कि उसके घर में एक खरगोश जमा हुआ बैठा है । तीतर की अनुपस्थिति में घूमता-घामता हुआ खरगोश वहां पहुचा था ।
घर को खाली देखकर वह उसमें रहने लगा था । अपने घर में खरगोश को देखकर तीतर को बड़ा आश्चर्य हुआ | वह बोला, “अजी मेरे घर में तुम कौन हो? निकलो बाहर ।” खरगोश ने उत्तर दिया, “वाह, मैं बाहर क्यों निकलूं ? यह घर तो मेरा है।” तीतर बोला, “घर तुम्हारा है ! तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है ? मैं अपने घर को नहीं पहचानता ? मैं कई वर्षों से इस घर में रहता आ रहा हूं । घर तुम्हारा नहीं, मेरा है । निकलो शीघ्र बाहर ।”
खरगोश ने उत्तर दिया, “दिमाग मेरा नहीं, तुम्हारा खराब हो गया है । तुम मेरे घर को अपना घर बता रहे हो ! भाग जाओ यहां से ।” तीतर को क्रोध आ गया । वह क्रोध के साथ बोला, “मूर्ख, इस घर को मैंने अपने हाथों से तैयार किया है । छ: सात दिन हुए मैं बाहर चला गया था । तुमने घर को खाली देखकर, उस पर अधिकार कर लिया | एक तो अपराध किया और दूसरे अब सीनाजोरी कर रहे हो?”
खरगोश भी तैश में आ गया । बोला, “बनाया होगा तुमने घर को ! तुम्हारे पास इसका क्या प्रमाण है कि घर तुम्हारा है? जो जिस घर में रहता है, घर उसी का होता है । घर में मैं हूं, तुम नही हो । अत: घर मेरा है, तुम्हारा नहीं | घर को लेकर तीतर और खरगोश में वाद-विवाद होने लगा ।
दोनों परस्पर उत्तर और प्रति उत्तर देते हुए चीखने-चिल्लाने लगे | शोरगुल सुनकर अड़ोस-पड़ोस के पक्षी एकत्र हो गए। दोनों जोर-जोर से पक्षियों से अपनी-अपनी बात कहने लगे | तीतर कहने लगा, “मैं पांच-छ: दिनों के लिए घर से बाहर चला गया था । घर खाली था । न जाने कहां से यह खरगोश आकर मेरे घर में घुस गया| और अब कहता है, यह घर मेरा है ।”
तीतर के उत्तर में खरगोश कहने लगा, “घर तीतर का नहीं, मेरा है । यह असत्य बोल रहा है । यदि घर इसका होता, तो यह घर में होता । घर में तो मैं हूं, अतः घर मेरा है ।” वृक्ष पर रहने वाले पक्षियों को मालूम था कि घर खरगोश का नहीं, तीतर का ही है । पर कोई प्रमाण नहीं था । बिना प्रमाण के पक्षी कुछ निर्णय नहीं कर सकते । फलतः तीतर और खरगोश का वाद-विवाद चलता ही रहा।
जब कोई निर्णय नहीं हो सका, तो तीतर और खरगोश ने निश्चय किया, झगड़े को निपटाने के लिए किसी को पंच बनाना चाहिए । परंतु पंच किसे बनाया जाए ? दोनों पंच की खोज में चल पड़े । एक झोपड़ी के बाहर जंगली बिल्ला बैठा हुआ था । बिल्ले को देखकर दोनों आपस में बात करने लगे “बिल्ला बड़ा बुद्धिमान होता है | झगड़े को निपटाने के लिए इमें इसी को पंच बनाना चाहिए ।”
मन में भय भी उत्पन्न हो रहा था, क्योंकि बिल्ला उनका पुश्तैनी शत्रु था । बिल्ला बड़ा चतुर और धूर्त था । दोनों की बातें उसके कानों में पड़ गईं । वह यह समझ गया कि दोनों का आपस में कोई झगड़ा है और वे झगड़े को निपटाने के लिए मुझे पंच बनाना चाहते हैं, पर भय के कारण मेरे पास नहीं आ रहे हैं । अत: मुझे साधु का वेश धारण कर लेना चाहिए, जिससे दोनों के मन का भय दूर हो जाए ।
बिल्ला शीघ्र ही चन्दन आदि लगाकर पैरों के बल खड़ा हो गया और हाथ में माला लेकर जपने लगा । तीतर और खरगोश बिल्ले को साधु के वेश में देखकर आश्चर्यचकित हो गए । दोनों एक-दूसरे से कहने लगे, “हम व्यर्थ ही बिल्ले से भयभीत हो रहे थे । यह तो बहुत बड़ा महात्मा जान पडता है । हमें इसी को पंच मानकर अपने झगड़े का निपटारा कराना चाहिए ।” खरगोश और तीतर दोनों बिल्ले के पास जा पहुंचे, और कुछ दूर पर ही बैठ गए, क्योंकि बिल्ले के निकट जाने का साहस उनको नहीं हो रहा था ।
खरगोश और तीतर ने कुछ दूर से ही अपनी-अपनी बात बिल्ले को सुनाई । तीतर ने कहा, “महाराज, मैं पांच-छः दिनों के लिए घर से बाहर चला गया था । जब लौटकर आया तो देखता हूं, घर में खरगोश ने अपना अड्डा जमा रखा है । मैंने जब इससे कहा, घर से बाहर निकल जाओ, तो कहने लगा, घर मेरा है । आप बड़े बुद्धिमान हैं । हम आपको अपना पंच बना रहे हैं । दोनों की बातें सुनकर निर्णय कर दीजिए कि घर किसका है? जिसकी गलती हो, आप उसे दंड भी दे सकते हैं ।”
खरगोश ने तीतर के विरुद्ध अपनी बात कही । उसने कहा, “महाराज, मैं भी आपको अपना पंच मानता हूं । कृपा करके आप हम दोनों के झगड़े का निपटारा कर दें | तीतर झूठ बोल रहा है । घर इसका नहीं, मेरा है । यह पहले घर में रहता था, इस बात का इसके पास कोई प्रमाण नहीं है, पर मैं तो अब भी घर में रहता हूं ।”
बिल्ला दोनों की बातें सुनकर माला जपता हुआ बोला, “भाई, मैं वृद्ध हो गया हूं । वृद्धता के कारण नेत्रों की ज्योति घट गई है । कानों से भी कम सुनाई पड़ता है । तुम दोनों जो कुछ कहना चाहते हो, मेरे अधिक निकट आकर कहो, जिससे मैं तुम दोनों की बातें सुन सकूँ ।” तीतर और खरगोश को जब यह ज्ञात हुआ कि बिल्ला न तो आंखों से देखता है, न कानों से सुनता है, तो दोनों के मन का भय बिलकुल दूर हो गया ।
दोनों निर्भय और निश्चिन्त होकर बिल्ले के अधिक निकट चले गए, पर ज्यों ही दोनों बिल्ले के अधिक निकट पहुंचे, उसने झपट्टा मारकर दोनों का काम तमाम कर दिया | दोनों बिल्ले के पेट में चले गए और सदा-सदा के लिए उनके झगड़े का निपटारा हो गया ।
कहानी से शिक्षा
झगड़े के निपटारे के लिए शत्रु के पास नहीं जाना चाहिए । पुश्तैनी शत्रु का विश्वास करने से धोखा खाना पड़ता है | धूर्त लोग बड़ी सरलता से सरल-हृदय लोगों को कपट-जाल में फंसा लिया करते हैं |