एक जंगल में एक बहुत बड़ा सधन वृक्ष था । वृक्ष में बड़ी-बड़ी डालियां और शाखाएं थीं | पत्ते भी लंबे-लंबे और हरे-हरे थे | उस वृक्ष की छाया बड़ी घनी होती थी । कभी भी धूप नहीं आती थी | वृक्ष के ऊपर कई वन-हंसों ने अपने घोंसले बना रखे थे | वन-हंस घोंसलों में सुख से जीवन व्यतीत करते थे । यों तो सभी वन-हंस साधारण थे, पर उनमें एक बड़ा बुद्धिमान और अनुभवी था ।
वह जो भी बात कहता था, सोच-समझकर कहता था | उसकी कही हुई बात सच निकलती थी | एक दिन बुद्धिमान हंस ने वृक्ष की जड़ में से एक लता निकलती हुई देखी । उसने वन-हंसों को भी वह लता दिखाई । वन-हंसों ने लता को देखकर कहा, “तो क्या हुआ? वृक्ष की जड़ से लता निकल रही है, तो निकलने दो । हमें उस लता से क्या लेना-देना है ?”
बुद्धिमान हंस बोला, “ऐसी बात नहीं है । हमारा इस लता से बहुत गहरा संबंध है, क्योंकि यह लता उसी वृक्ष की जड़ से निकल रही है, जिस पर हम सब रहते हैं।” वन-हंसों ने कहा, “तुम्हारी बात हमारी समझ में नहीं आ रही है । साफ-साफ कहो, क्या कहना चाहते हो ?”
बुद्धिमान हंस बोला, “आज यह लता बहुत छोटी-सी है, धीरे-धीरे यह बढ़कर बड़ी हो जाएगी । एक दिन आएगा, जब यह वृक्ष से लिपट जाएगी और मोटी हो जाएगी । जब यह मोटी हो जाएगी, तो कोई भी शत्रु इसके सहारे नीचे से चढ़ सकता है और ऊपर पहुंचकर हम सबको हानि पहुंचा सकता है।”
बुद्धिमान हंस की बात सुनकर सभी वन-हंस हँस पड़े बोले, “तुम तो शेखचिल्ली की-सी बात कर रहे हो । अरे, यह लता अभी छोटी-सी है । किसे पता है, बढ़ेगी भी या नहीं ?” बुद्धिमान हंस बोला, “हां, अभी छोटी-सी तो है, पर जिस चीज से हानि होने की संभावना हो उसे पहले ही नष्ट कर देना चाहिए । इसलिए हमें इस लता को अभी बढ़ने नहीं देना चाहिए । इसे नष्ट कर डालना चाहिए । यह बढ़ेगी, तो हम सबके दुःख का कारण बनेगी ।”
बुद्धिमान हंस ने वन-हंसों को बहुत समझाया, पर उन्होंने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया । उन्होंने कहा, “लता जब बढ़ेगी, तो देखा जाएगा । अभी कुछ करने की क्या आवश्यकता है ?” बुद्धिमान हंस मौन रह गया | लता धीरे-धीरे बढ़ने लगी । वह बढ़कर वृक्ष से लिपट गई फिर धीरे-धीरे मोटी भी हो गई । इतनी मोटी कि कोई भी आदमी नीचे से उसके सहारे ऊपर चढ़ सकता था ।
एक दिन सवेरा होने पर सभी वन-हंस भोजन की तलाश में उड़कर चले गए । घोंसले खाली हो गए । वन-हंसों के चले जाने पर वृक्ष के नीचे एक शिकारी पहुंचा | उसने वृक्ष पर वन-हंसों के घोंसलों को देखकर सोचा, इन वन-हंसों को सरलता से जाल में फंसाया जा सकता है । कल सवेरे जाल लेकर आऊंगा । वृक्ष पर चढ़कर जाल फैला दूंगा ।
वन-हंस अपने-आप ही जाल में फंस जाएंगे । दूसरे दिन शिकारी जाल लेकर आ पहुंचा । वन-हंस भोजन की तलाश में जा चुके थे । शिकारी ने मोटी लता के सहारे ऊपर चढकर घोंसलों के ऊपर जाल बिछा दिया । वह जाल बिछाकर अपने घर चला गया ।
संध्या समय जब वन-हंस लौटे तो वे अपने घोंसलों में जाने के लिए आतुर हो रहे थे, पर जब घोसलो मे जाने लगे तो बेचारे जाल मे जा फसे | जाल मे फंसकर वन हंस फड़फड़ाने लगे | जाल में फंसे हुए वन-हंस रोकर कहने लगे, “हाय-हाय, अब हम क्या करें ? जाल से निकलें तो किस तरह निकलें? शिकारी आएगा और हम सबको जाल में ले जाएगा । हम सब मारे जाएंगे !”
वन-हंसों का रोना-कलपना सुनकर बुद्धिमान हंस उनके पास गया । बोला, “अगर तुम लोगों ने मेरी बात मानकर लता को नष्ट कर दिया होता तो आज तम सब इस जाल में न फंसते । शिकारी ने मोटी लता के सहारे ही वृक्ष के ऊपर चढ़कर घोंसलों पर जाल बिछाया था ।” वन-हंस आंसू बहाते हुए बोले, “भाई, जो हो गया, वह हो गया । अब तो कोई ऐसा उपाय करो, जिससे हम सब मरने से बच जाएं ।”
बुद्धिमान हंस सोचकर बोला, “एक उपाय से तुम सब बच सकते हो | जब शिकारी आए, तो तुम सब मुर्दे के समान पड़ जाओ । शिकारी तुम्हें मरा हुआ समझकर जाल से बाहर निकालकर फेंक देगा ! जब तक वह आखिरी हंस को भी जाल से बाहर निकालकर फेंक न दे, तुम सबको धरती पर मुर्दे की तरह ही पड़ा रहना चाहिए ।”
वन-हंसों को बुद्धिमान हंस की बात पसंद आ गई । उन्होंने कहा, “ठीक है, शिकारी के आने पर हम ऐसा ही करेंगे ।” दूसरे दिन जब शिकारी आया, तो वन-हंस उसे देखते ही मुर्दे की तरह पड़ गए । शिकारी ने पेड़ पर चढ़कर जाल के पास जाकर देखा, सभी वन-हंस मुर्दे की तरह पड़े थे । शिकारी वन-हंसों को मरा हुआ देखकर बड़ा दु:खी हुआ | वह जाल से एक-एक वन-हंस को निकालकर जमीन पर फेंकने लगा ।
जब तक उसने आखिरी वन-हंस को जाल से निकालकर जमीन पर नहीं फेंक दिया, सभी वन-हंस मुर्दे की तरह जमीन पर पड़े रहे । आखिरी वन-हंस के जमीन पर फेंक दिए जाने के तुरंत बाद ही वे सबके सब पंख फड़फड़ाते हुए ऊपर गगन में उड़ान भर गए । शिकारी को बड़ा आश्चर्य हुआ । वह आंखें फाड़े गगन में उड़ते हुए हंसों की ओर देखने लगा | इस तरह बुद्धिमान और अनुभवी हंस की बात मानने से सभी वन-हंसों की जान बच गई |
कहानी से शिक्षा
शत्रु को पनपने नहीं देना चाहिए । पनपने से पहले ही उसे नष्ट कर देना चाहिए । अनुभवी आदमी की बात न मानने से कष्ट उठाना पड़ता है । अनुभवी आदमी की सलाह का सदा आदर करना चाहिए ।