एक झील के किनारे चार प्राणी रहते थे – कौवा, कछुआ, चूहा और मृग। कौवा वृक्ष पर रहता था, कछुआ जल में निवास करता था, चूहा बिल में रहता था | और मृग झाड़ी में | चारों प्राणियों में बडी मित्रता थी । चारों साथ-साथ रहते थे, प्रेम से बातचीत करते और सुख तथा शांति के साथ जीवन व्यतीत किया करते थे ।
एक दिन दोपहर के बाद का समय था । कौवा, चूहा और कछुआ तीनों झील के किनारे बैठकर आपस में बातचीत कर रहे थे । लेकिन मृग नहीं था वहां । वह सवेरे भोजन की खोज में गया था, पर अभी तक लौटकर नहीं आया था। चूहा चिंतित होकर बोला, “सवेरे का गया हुआ मृग अभी तक लौटकर नहीं आया । कहीं ऐसा तो नहीं, वह किसी विपत्ति में फंस गया हो ।”
कछुआ बोला, “अवश्य वह किसी विपत्ति में फंस गया है, नहीं तो लौटने में इतना विलंब न होता । वह प्रतिदिन दोपहर के पूर्व ही आ जाता था ! कौवा बोला, “यदि ऐसी बात है, तो मैं पता लगाने के लिए जा रहा हूं। मृग जहां भी कहीं होगा, मैं पता लगाकर शीघ्र ही लौट आऊंगा।” कौवा अपनी बात समाप्त करके उड़ चला।
वह उड़ते-उडते, इधर-उधर देखता हुआ मृग को पुकारने लगा, “मित्र मृग, तुम कहां हो ?” सहसा कौवे के कानों में किसी का मंद-मंद स्वर पड़ा, “मैं यहां हूं, मित्र ! मैं यहां हूं।” वह स्वर मृग का था। कौवा मृग के स्वर को पहचानकर आश्चर्य से अपने-आप ही बोल उठा, “अरे, यह स्वर तो मित्र मृग का ही है !” कौवा झट नीचे उतर पड़ा और मृग के पास जा पहुंचा। मृग जाल में फंसा हुआ था ।
कौवा उसे जाल में फंसा हुआ देखकर बोल उठा, “अरे, यह क्या ? तुम तो जाल में फंस गए हो ।” मृग बड़े ही दु:ख के साथ बोला, “हां मित्र, मैं जाल में फंस गया हूं। अब तो कोई ऐसा उपाय करो, जिससे मुझे जाल से मुक्ति मिले ।” कौवा बोला, “घबराओ नहीं, धैर्य से काम लो। मैं शीघ्र ही मित्रों के पास जाकर उन्हें खबर दूंगा ।
हम तीनों तुम्हारी मुक्ति का कोई न कोई उपाय अवश्य करेंगे।” कौवा मृग को आश्वासन देकर उड़ चला और थोड़ी ही देर में मित्रों के पास जा पहुंचा। तीनों मित्र बड़ी उत्सुकता के साथ कौवे का इंतजार कर रहे थे। तीनों कौवे को देखकर एक साथ ही बोल उठे, “कहो, मित्र, मृग का कहीं पता चला?” कौवा दुःख-भरे स्वर में बोला, “पता तो चल गया है, भाई, पर वह एक बहेलिए के जाल में फंस गया है।
हमें शीघ्र ही उसके छुटकारे के लिए कोई उपाय करना चाहिए। यदि देर होगी तो बहेलिया उसे पकड़ ले जाएगा और मारकर खा जाएगा।” कौवे की बात सुनकर कछुआ बोला, “हां, भाई, हमें मृग के छुटकारे के लिए अवश्य कोई उपाय करना चाहिए। मुझे एक उपाय सूझा है। मित्र चूहे को जाल के पास पहुंचाकर, जाल को उससे कटवा देते हैं, और उसे मुक्त करवा लेते हैं |
उपाय सभी को पसंद आया, अतः सभी मित्र जल्दी ही चूहे से मिलकर उसे अपने सभी चूहे दोस्तों के साथ वहां बुलाते है जहाँ उनका मित्र मृग जाल में फंसा था | जाल काफी बड़ा था, अतः उसे काटने में बड़ा समय लग रहा था, तभी उन सभी को थोड़ी दूरी पर बहेलिया आता दिखाई पड़ गया | सभी आतंकित हो गए और चूहे बड़ी तेजी से जाल को काटने लगे | उधर बहेलिये ने भी सभी को देख लिया और वो तेजी से इधर की तरफ दौड़ा लेकिन उसके पहुँचने से पहले चूहों ने जाल को काट दिया था और मृग तेजी से दौड़ते हुए वहां से भाग खड़ा हुआ |
बहेलिया दुःख से माथा ठोककर रह गया । उसे जाल के कटने का तो इतना द:ख नहीं था, जितना दु:ख मोटे-ताजे मृग के निकल भागने का था, पर अब क्या हो सकता था? बहेलिया जब चलने लगा तो उसकी दृष्टि कछुए पर पड़ी । कछुआ धीरे-धीरे रेंगता हुआ झाड़ी की ओर जा रहा था | कछुए को देखकर बहेलिए ने सोचा-मृग तो हाथ से निकल ही गया । यह कछुआ ही सही, आज इसी से पेट की पूजा की जाएगी ।
बहेलिए ने कछुए को उठाकर थैले में रख लिया। वह थैला कंधे पर रखकर अपने घर की ओर चल पड़ा । जब बहेलिया कुछ दूर चला गया, तो कौवे ने अपने दोनों मित्रों को आवाज दी, “मृग भाई, आओ। चूहा भाई, तुम भी बिल से बाहर निकलो।”
कौवे की आवाज को सुनकर मृग आ गया। चूहा भी बिल से निकल आया और कौवा भी नीचे उतर पड़ा। तीनों मित्र नए संकट पर विचार करने लगे | कौवे ने कहा, “बहेलिया कछुए को अपने थैले में रखकर ले गया है । हमें उसे छुड़ाने का उपाय करना चाहिए । यदि वह उसे लेकर घर पहुंच गया, तो मारकर खा जाएगा।”
कौवे की बात सुनकर मृग बोला, “हां, हमें कछुए को छुड़ाने के लिए अवश्य कोई उपाय करना चाहिए। मुझे एक उपाय सृझा है। मैं बहेलिए के मार्ग में जाकर घास चरने लगूंगा। बहेलिया जब मुझे देखेगा तो उसके मन में लोभ उत्पन्न हो जाएगा । वह थैले को जमीन पर रखकर मुझे पकड़ने के लिए दौड़ पड़ेगा। मैं पहले तो लंगड़ाता हुआ भागूंगा, पर कुछ दूर जाने पर चौकड़ी भरने लगूंगा। बहेलिया मुझे पकड़ नहीं सकेगा।”
बहेलिया थैले को जमीन पर रख दे तो चूहे को वहां पहुँच जाना चाहिए और थैले को काटकर कछुए को छुड़ा लेना चाहिए | मृग की बात दोनों मित्रों को पसंद आ गई। दोनों ने कहा, “ठीक है, ऐसा ही करो।” मृग शीघ्र ही बहेलिए के मार्ग में जा पहुंचा और हरी-हरी घास चरने लगा | बहेलिए ने जब मृग को देखा तो उसके मुंह में पानी आ गया | वह झट थैले को जमीन पर फेंककर, मृग को पकड़ने के लिए दौड़ पड़ा ।
पहले तो मृग लंगड़ाता हुआ भागने का प्रयत्न करने लगा, पर जब कुछ दूर निकल गया, तो चौकड़ी भरता हुआ बहेलिए की आंखों से ओझल हो गया बहेलिए ने जब थैले को कंधे से उतारकर जमीन पर फेंका था, उसके तुरंत बाद ही चूहा वहां पहुंच गया था।
उसने थैले को काटकर कछुए को छुड़ा लिया | बहेलिया जब मृग को पकड़ नहीं सका तो निराश होकर थैले के पास लौटा, पर यहां तो थैला भी कटा हुआ था और कछुए का भी कहीं पता नहीं था। बहेलिया माथा ठोंकता हुआ अपने-आप ही बोल उठा, “हाय, आज न जाने किसका मुख देखकर चला था, जिसे भी पकड़ता हूँ, वह हाथ से निकल जाता है। मृग तो निकल ही गया, कछुआ भी हाथ से निकल गया, आज तो भूखा ही रहना पड़ेगा।”
बहेलिया जब अपने भाग्य को कोसता हुआ चला गया तो चारों मित्र पुनः एकत्र हुए और प्रसन्नता प्रकट करते हुए परस्पर बातचीत करने लगे । चारों मित्र हँसते-गाते हुए झील के किनारे गए और सुख तथा शांति से जीवन व्यतीत करने लगे।
कहानी से शिक्षा
अधिक से अधिक मित्र पैदा करना सबसे बड़ा गुण है। सच्चा मित्र वही है, जो विपत्ति में काम आता है | अपने को संकट में डालकर भी मित्र की सहायता करनी चाहिए।