एक वन में एक सियार रहता था । सियार बड़ा ही चालाक और धूर्त था । वह दिन-भर तो छिपा रहता था, पर जब रात होती तो शिकार के लिए बाहर निकलता और बड़ी ही चालाकी से छोटे-छोटे जीवों को मारकर खा जाता था | एक बार रात में जब सियार शिकार के लिए बाहर निकला, तो बड़ी दौड़-धूप करने के पश्चात् भी उसे कोई शिकार नहीं मिला ।
उसने सोचा, वन में तो भोजन मिला नहीं, चलो, अब बस्ती की ओर चलें । शायद बस्ती में ही कुछ भोजन मिल जाए | बस्ती की बात सोचते ही सियार को कुत्तों की याद आई । उसने सोचा, बस्ती में तो कुत्ते रहते हैं, अगर देखते ही भौंकते हुए पीछे लग जाएंगे, तो फिर लेने के देने पड़ जाएंगे । फिर भी सियार बस्ती की ओर चल पड़ा ।
वह ज्यों ही बस्ती के भीतर घुसा, कुछ कुत्तों की दृष्टि उस पर पड़ गई । बस, फिर क्या था, कुत्ते भौंकते हए दौड़ पड़े । लेकिन बस्ती में सियार भागकर जाता तो कहां जाता ? सियार प्राण बचाने के लिए इधर से उधर और उधर से इधर चक्कर काटने लगा | आखिर एक घर का दरवाज़ा खुला देखकर सियार उसके भीतर घुस गया । वह घर रंगरेज का था ।
घर के भीतर आंगन में एक बहुत बड़ा नाद (टब) रखा था, जिसमें घुला हुआ नीला रंग भरा था । सियार प्राण बचाने के लिए जल्दी में उसी टब में घुसकर बैठ गया । कुछ देर तक टब में बैठा रहा । जब बाहर कुत्तों का भौंकना बंद हो गया, तो वह टब से बाहर निकला । बाहर निकलने पर वह यह देखकर विस्मित हो उठा कि उसका पूरा शरीर नीले रंग में रंग गया है ।
वह अपने शरीर को नीले रंग में रंगा हुआ देखकर गर्वित हो उठा । सियार इस तरह प्राण बचाकर वन में पहुंचा । वन के जीवों ने जब उस नीले रंग में रँगे हुए सियार को देखा, तो वे भयभीत हो उठे, और वहां से भाग खड़े हुए, क्योंकि उन्होंने आज तक ऐसे अद्भुत जानवर को कभी नहीं देखा था । सियार ने जब वन के जीवों को भागते हुए देखा, तो वह समझ गया कि वन के जीव उसके शरीर के नीले रंग को देखकर भाग रहे हैं ।
वह धूर्त और चालाक तो था ही, उसने अपने शरीर के नीलेपन से लाभ उठाने का निश्चय किया । सियार भागते हुए वन के जीवों को पुकार-पुकारकर कहने लगा, “अरे भाइयो, तुम सब मुझसे डरकर क्यों भाग रहे हो ? मुझे तो ईश्वर ने अपना दूत बनाकर तुम्हारे ही कल्याण के लिए भेजा है | तुम सब डरो नहीं। मेरे पास आओ, मैं तुम सबको भगवान का संदेश सुनाऊंगा ।”
सियार की बात सुनकर जानवरों के मन में कुछ ढाढ़स बधा । वे सियार को ईश्वर का दूत समझकर उसके पास एकत्र होने लगे | हाथी, शेर, बाघ, भालू और बंदर आदि सभी जानवर सियार के पास इकट्ठे होने लगे । वे सब उसे ईश्वर का दूत समझकर उसका आदर करने लगे ।
सियार सभी जानवरों को अपने प्रभाव में लाता हुआ बोला, “भाइयो, मैं ईश्वर की आज्ञा से इसी वन में रहूंगा और तुम्हारा कल्याण करूंगा, पर तुम्हारी ओर से प्रतिदिन मेरे खाने-पीने का प्रबंध तो होना ही चाहिए ।” बात उचित थी । इसलिए वन के जीवों ने सियार की बात मान ली | वे बड़े आदर से प्रतिदिन उसके खाने-पीने का प्रबंध करने लगे ।
धूर्त सियार के दिन बड़े सुख से बीतने लगे । उसे अब और क्या चाहिए था ! पर कपट का व्यापार सदा नहीं चलता । एक न एक दिन भेद खुल ही जाता है । सियार का भी भेद खुल गया । बात यह हुई कि चांदनी रात थी । जंगल के जानवर सियार के पास एकत्र थे, और उसकी लच्छेदार बातों को सुन रहे थे | सहसा वन में पचीसों सियार एक साथ बोल उठे, “हुआं, हुआ ।”
सियारों की बातों को सुनकर नीला सियार अपने को रोक नहीं सका । वह भी उनके स्वर में स्वर मिलाने लगा हुआं, हुआं, हुआं! बस फिर क्या था? वन के जीवों पर उसका असली भेद प्रकट हो गया | अरे, यह तो सियार है ! अपनी धूर्तता से ईश्वर का दूत बनकर हम लोगों को फंसाए हुए था | फिर तो वन के जीवों ने सियार को एक क्षण भी जीवित नहीं रहने दिया ।
कहानी से शिक्षा
कपट का व्यापार सदा नहीं चलता । अगर गुण न हो, तो वेश कुछ भी नहीं करता । कपटी और धूर्त को एक न एक दिन दंड भोगना ही पड़ता है |