लगभग 270 पृष्ठ की एक ऐसी पाण्डुलिपि जो अपने आप में रहस्य को लपेटे हुए है, वोयोनिच मैनुस्क्रिप्ट के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध है | यद्यपि अभी तक यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि इस पुस्तक को लिखा किसने लेकिन कार्बन-डेटिंग पद्धति की सहायता से इस बात का खुलासा हुआ है कि ये पुस्तक सन 1404 ईसवी से लेकर 1438 ईसवी के बीच लिखी गयी होगी |
वोयोनिच मैनुस्क्रिप्ट को दुनिया की सबसे रहस्यमय हस्तलिखित पुस्तक (पाण्डुलिपि) के तौर पर जाना जाता है | कुछ विशेषज्ञ मानते हैं की इसे फार्माकोपिया के तौर पर तैयार किया गया है जिससे उस जमाने के यानि मध्ययुगीन चिकित्सकीय विषयों के बारे में बताया जा सके |
इतिहास में थोड़ा पीछे जाने पर हमें पता चलता है कि 1912 में एक पोलिश बुक डीलर विल्फ्रिड वोयोनिच को पुरानी किताब की एक दुकान पर यह मिली और उन्होंने इसे खरीद लिया | उन्ही के नाम पर इसे वोयोनिच मैनुस्क्रिप्ट कहा जाता है | इसके कुछ पृष्ठ गायब भी हैं | लगभग 240 पृष्ठ उपलब्ध हैं इस पुस्तक के जिसमे अक्षरों को बाएं से दायें लिखा गया है |
ये पुस्तक जिस लिपि में लिखी गयी है उसे आज तक न तो समझा जा सका है और न ही पढ़ा जा सका है | चूंकि रहस्य सुलझाया नहीं जा सका, इसलिए इसके बारे में अलग-अलग थ्योरी दुनिया के सामने आ चुकी है | कोई इसे कभी गुप्त रहस्यमय समूह का कोड बताता है तो कोई इसे दूसरे ग्रह से आने वाले एलियंस की रचनाकृति बताता है |
कुछ तो इसे विश्व-विख्यात इटैलियन चित्रकार लेओनार्दो द विन्ची की बचपन में की गयी रचना मानते थे | और कुछ लोग इसे एक तरह का धोखा बताते हैं जिसे यों ही उलझाने के लिए बना कर छोड़ दिया गया था
पूरी किताब में अलग-अलग तरह की रंग-बिरंगी कलाकृतियाँ व अजीबो-गरीब रेखाचित्र भरे पड़े हैं | इसके अलावा इस पुस्तक के पन्नों में जिस तरह के पौधों को दिखाया गया है वैसा शायद ही इस धरती पर देखने को मिले | 1969 में हैंस पी क्रोस ने इसे येल विश्वविद्यालय को दान में दे दिया था जहाँ आज भी इसे MS-408 (मैनुस्क्रिप्ट-४०८ ) के नाम से खोजा जा सकता है |
अठारह ज़िल्दों में लगभग सैकड़ों चर्म-पत्रों पर लिखी गयी इस पुस्तक पर कई विशेषज्ञों ने अनुसन्धान किया है | पुस्तक में अंकित पृष्ठ संख्या में अलग-अलग जगहों पर आये अन्तराल को देखते हुए ऐसा प्रतीत होता है की अतीत में किसी समय इस पुस्तक में बीस ज़िल्दों में लगभग 272 पृष्ठ रहे होंगे जिनमे से कुछ अब गायब हो चुके हैं
पुस्तक के पृष्ठों की प्रोटीन टेस्टिंग से ये पता चला है की ये पृष्ठ गाय के शावक यानि बछड़े के चर्म से बने थे | ये चर्म-पत्र पहले बनाये गए बाद में इन पर मोर-पंख की कलम से लिखा गया | कुछ चर्म-पत्र असामान्य रूप से मोटे हैं जैसे पृष्ठ संख्या 42 और 47 के चर्म-पत्र |
बकरे के चमड़े से हुई ज़िल्द्साज़ी और पुस्तक के प्रथम एवं अंतिम पृष्ठों पर हुए छिद्रों को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि अतीत में कभी इस पुस्तक पर लकड़ी या किसी कठोर धातु का खोल (Cover) चढ़ा होगा किन्तु अब ऐसा नहीं है |
इस पुस्तक में कई जगहों पर हुई चित्रकारी और रेखाचित्रों पर आज के अत्याधुनिक तरीकों (Polarised Light Microscopy) से अनुसन्धान करने पर पता चला कि ये चित्र एक विशेष प्रकार की स्याही से तैयार किये गए हैं | ये बैगनी-काले रंग की स्याही, शाक-सब्ज़ियों और पौधों से प्राप्त लौह तत्व को टेनिन-एसिड के तरल में मिला कर तैयार की जाती है | इस प्रकार से स्याही बनाने की पद्धति यूरोप में पांचवीं से उन्नीसवीं शताब्दी तक प्रचलित थी | यद्यपि ये किसी न किसी रूप में आज भी अस्तित्व में है |
अब इस पुस्तक की गुत्थी सुलझाने का दावा एक ब्रिटिश विद्वान ने किया है | यूनिवर्सिटी ऑफ़ बेडफ़ोर्डशायर के प्रोफेसर स्टीफेन बैक्स ने दावा किया है कि उन्होंने वोयोनिच मैनुस्क्रिप्ट पढ़ने की दिशा में उल्लेखनीय सफलता हासिल की है | प्रोफेसर बैक्स ने बताया की उन्होंने इस पुस्तक के 14 शब्दों को डिकोड करने और पढ़ने में सफलता हासिल की है |
उदहारण के तौर पर कुछ शब्द उन्होंने बताये जो “धनिया”, “कुटकी” और “हपुषा” आदि के लिए पुस्तक में प्रयुक्त हुए हैं | इसके अलावा उन्होंने, उस पुस्तक के तारों और नक्षत्रों वाले अध्याय में वृष राशि के लिए प्रयुक्त होने वाले शब्द को पहचाना है |
प्रोफेसर बैक्स ने बताया की हो सकता है कि इस पाण्डुलिपि को पूरी तरह पढ़ने और समझने में कुछ समय लग जाये लेकिन वो और उनकी टीम इसके लिए तैयार है | उनके अनुसार –: “कदाचित ये पुस्तक प्रकृति के ऊपर कोई आलेख हो जो किसी पूर्वी या एशियन भाषा से मिलती-जुलती भाषा में लिखी गयी हो”
कुछ भी हो लेकिन उनकी रिसर्च टीम की इस सफलता के बाद एक बात तो निश्चित रूप से कही जा सकती है कि ये पुस्तक कोई धोखा या फ्रॉड नहीं है बल्कि लगभग छै सौ साल पहले लिखी गयी एक वास्तविक कृति है जो आज भी रहस्य की धुंध में छाये बादलों में घुमड़ रही है |