किसी ज़माने में पाटलिपुत्र के नाम से प्रसिद्ध क्षेत्र का पटना आज मुख्य शहर है | नन्द वंश और मौर्य वंश के शासन काल में न केवल ये मगध की, बल्कि पूरे देश की आर्थिक और सांस्कृतिक राजधानी रहा है ये शहर | अपनी विरासत को इतिहास में खोजते इस शहर में एक कुआँ है “अगम कुआँ” | अगम कुआँ अपने कई रहस्यों के लिए काफी प्रसिद्ध है |
प्राप्त जानकारी के अनुसार लगभग दो हज़ार वर्ष पुराने इस कुँए की विशेष बात ये है की जब से ये कुआँ अस्तित्व में आया है तब से आज तक ये कभी नहीं सूखा | गर्मियों के मौसम में जब अत्यधिक गर्मी पड़ती है यहाँ तो इस कुँए का जल-स्तर, इसके सामान्य जल-स्तर से, एक से डेढ़ फीट नीचे चला जाता है लेकिन आज तक कभी नहीं सूखा और वर्षा ऋतु में इसका जल-स्तर एक से डेढ़ फीट ऊपर चला जाता है |
एक मान्यता के अनुसार सम्राट अशोक के समय से अस्तित्व में आये इस कुँए के पानी का रहस्य जानने का अब तक तीन बार प्रयास किया जा चुका है | सबसे पहली बार 1932 में, दूसरी बार 1962 में और तीसरी बार 1995 में मगर आज भी ये एक पहेली बना हुआ है | इस कुँए का पानी कहाँ से आता है यह भी एक रहस्य है |
अंग्रेजों के शासन काल में कहा जाता है कि कई बार भयंकर सूखा, अकाल पड़ने पर भी इसका पानी नहीं सूखा और ना ही भयंकर बाढ़ों के आने पर इसके पानी में कोई विशेष बढ़ोत्तरी ही हुई |
इस कुँए की एक और विशेषता है कि इसके पानी का रंग भी बदलता है | इस कुँए के कभी न सूखने वाले पानी के पीछे, यहाँ के क्षेत्रीय निवासी ये तर्क देते हैं कि ये कुआँ पश्चिम बंगाल स्थित गंगा सागर से जुड़ा है | अपने तर्क को प्रमाणिक सिद्ध करते हुए वे एक घटना का ज़िक्र भी करते हैं जिसमे वे बताते हैं की एक बार एक अंग्रेज़ अफसर की छड़ी गंगा सागर में गिर गयी थी जो बहते बहते, पाटलिपुत्र स्थित इस कुँए के ऊपर आ कर तैर रही थी |
आज भी उस अंग्रेज अफसर की वो छड़ी कोलकाता के म्यूजियम में रखी हुई है | सम्राट अशोक के समय भारत आये चीनी दार्शनिकों ने अपनी पुस्तकों में इस कुँए का उल्लेख इसी रूप में किया है |