विक्रम बेताल की अंतिम कहानी

विक्रम बेताल की अंतिम कहानीअपनी धुन के पक्के सम्राट विक्रमादित्य ने, बिलकुल भी विचलित न होते हुए, वापस पेड़ पर लौटने वाले बेताल को फिर से अपनी पीठ पर लादा और चल दिए तान्त्रिक के पास, जिसने उन्हें लाने का काम सौंपा था |

थोड़ी देर बाद बेताल ने अपना मौन व्रत तोड़ा और कहा “तुम भी बड़े हठी हो राजन, मेरा कहना तुम मानते नहीं मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि जिस तांत्रिक के आदेश का पालन तुम दासों की भाँति कर रहे हो, वही तुम्हारे प्राणों का शत्रु है | तुम्हे उससे सावधान रहना होगा।”

इसके प्रत्युत्तर में विक्रम मौन रहे | कुछ समय पश्चात् बेताल ने पुनः कहना प्रारम्भ किया। “अब मेरी बात ध्यान से सुनो। जब तुम उस तांत्रिक के पास मेरा शव ले कर पहुंचोगे तो वह तुमसे देवता की मूर्ती के आगे शीश झुकाने को कहेगा।

लेकिन तुम ऐसा कदापि न करना। क्योंकि यही वह समय होगा जब तुम असावधान होंगे और वह तुम्हारा वध करने का प्रयास करेगा। आगे बढ़ो राजन तुम्हारा कल्याण होगा।” इतना कह कर बेताल मौन हो गया |

राजा विक्रमादित्य की आगे की यात्रा मौन ही कटी | रात्रि के चौथे प्रहर राजा विक्रमादित्य शव को ले कर उस तांत्रिक के पास पहुंचे। तांत्रिक राजा को और मुर्दे को देखकर बहुत प्रसन्न हुआ । वह बड़ी ही मीठी वाणी में विक्रम से बोला, “हे राजन्! तुमने यह कठिन काम करके मेरे साथ बड़ा उपकार किया है। तुम सचमुच पृथ्वी के सारे राजाओं में श्रेष्ठ हो।”

इतना कहकर उसने मुर्दे को राजा के कंधे से उतार लिया और उसे स्नान कराकर फूलों की मालाओं से सजाकर रख दिया । फिर राजा के सामने ही मंत्र-बल से बेताल का आवाहन करके उसकी पूजा की। पूजा के बाद उसने राजा से कहा, “हे राजन्! देवता की मूर्ती के आगे तुम शीश झुकाकर इसे प्रणाम करो।”

राजा विक्रमादित्य को बेताल की बात याद आ गयी । उसने कहा, “मैं राजा हूँ, मैंने कभी किसी के आगे सिर नहीं झुकाया। तो आप पहले सिर झुकाकर बता दीजिए कि किस प्रकार से शीश झुकाना है।”

तांत्रिक ने जैसे ही अपना सिर झुकाया, राजा विक्रम ने समय न गवाते हुए तत्काल तलवार से उसका सिर काट दिया। यह दृश्य देख रहा बेताल बड़ा प्रसन्न हुआ। वह बोला, “राजन्, यह तांत्रिक विद्याधरों का स्वामी बनना चाहता था। जो अब तुम बनोगे। मैंने तुम्हें बहुत हैरान किया है। किन्तु अब मै तुमसे अत्यंत प्रसन्न हूँ तुम जो चाहो सो माँग लो मुझसे ।”

राजा विक्रमादित्य ने कहा, “अगर आप मुझसे खुश हैं तो मेरी प्रार्थना है कि आपने जो चौबीस कहानियाँ सुनायीं, वे, और पच्चीसवीं यह, सारे संसार में प्रसिद्ध हो जायें और लोग इन्हें आदर और सम्मान से पढ़े।”

बेताल ने उनसे कहा, “ऐसा ही होगा राजन । ये कथाएँ ‘बेताल-पच्चीसी’ के नाम से सारे जगत प्रसिद्ध होंगी और जो इन्हें पढ़ेंगे, उनके पाप दूर हो जायेंगे।”

यह कहकर बेताल वहाँ से चला गया। उसके जाने के बाद शिवजी ने प्रकट होकर विक्रमादित्य से कहा, “राजन्, तुमने अच्छा कार्य किया, जो इस दुष्ट साधु को मार डाला। अब तुम जल्दी ही सातों द्वीपों और पाताल-सहित सारी पृथ्वी पर धर्म और शांति का राज्य स्थापित करोगे।”

इसके बाद शिवजी अन्तर्धान हो गये। काम पूरे करके राजा विक्रमादित्य श्मशान से नगर में आ गए । कुछ ही दिनों में वह सारी पृथ्वी का राजा बन गए और बहुत समय तक आनन्द से राज्य करते हुए अन्त में भगवान में समा गए ।

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