अपनी धुन के पक्के राजा विक्रमादित्य ने, वापस उसी पेड़ पर लौटने वाले बेताल को फिर से अपनी पीठ पर लादा और चल दिए उस तान्त्रिक के पास | थोड़ी देर बाद बेताल ने अपना मौन तोड़ा और कहा “तुम भी बड़े हठी हो राजन, खैर चलो, मार्ग आसानी से काट जाए, इसके लिए मै तुम्हे एक कथा सुनाता हूँ |
किसी समय बनारस में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था । उसके हरिदास नाम का पुत्र था। हरिदास की बड़ी सुन्दर पत्नी थी। उसका नाम था लावण्यवती। एक दिन वे दोनों महल के ऊपर छत पर सो रहे थे कि आधी रात के समय एक गंधर्व-कुमार आकाश में घूमता हुआ उधर से निकला। वह लावण्यवती के मदमाते रूप सौंदर्य पर मुग्ध होकर उसे उड़ाकर ले गया।
सुबह हुई, जागने पर हरिदास ने देखा कि उसकी स्त्री नही है तो उसे बड़ा दुख हुआ और वह तुरंत मरने के लिए तैयार हो गया। परिवार के लोगों के समझाने पर वह मान तो गया; लेकिन यह सोचकर कि तीरथ करने से शायद पाप दूर हो जाय और स्त्री मिल जाय, वह घर से तीर्थ यात्रा पर निकल पड़ा।
चलते-चलते वह किसी गाँव में एक ब्राह्मण के घर पहुँचा। उसे भूखा देख ब्राह्मणी ने उसे कटोरा भरकर खीर दे दी और तालाब के किनारे बैठकर खाने को कहा। हरिदास खीर लेकर एक पेड़ के नीचे आया और कटोरा वहाँ रखकर तालाब मे हाथ-मुँह धोने गया। इसी बीच एक बाज किसी साँप को लेकर उसी पेड़ पर आ बैठा ओर जब वह उसे खाने लगा तो साँप के मुँह से ज़हर टपककर कटोरे में गिर गया। हरिदास को कुछ पता नहीं था। वह उस खीर को खा गया। ज़हर का असर होने पर वह तड़पने लगा और दौड़ा-दौड़ा ब्राह्मणी के पास आकर बोला, “तूने मुझे जहर दे दिया है।” इतना कहने के बाद हरिदास वहीँ उसी ब्राह्मणी के घर के दरवाजे पर मर गया।
उस ब्राह्मणी के पति ने यह देखा तो उसने अपनी पत्नी को ब्रह्मघातिनी कहकर घर से निकाल दिया। इतना कहकर बेताल राजा विक्रमादित्य से बोला, “राजन्! बताओ कि साँप, बाज, और ब्राह्मणी, इन तीनों में अपराधी कौन है?”
राजा विक्रमादित्य ने बेताल से कहा, “इन तीनो में से कोई नहीं। साँप तो अपराधी इसलिए नहीं क्योंकि वह उस समय शत्रु के वश में था। बाज इसलिए अपराधी नहीं है कि वह भूखा था, उसे अपने प्राणों की रक्षा के लिए अपनी भूख मिटानी थी । जो उसे मिल गया, वह उसी को वह खाने लगा। ब्राह्मणी इसलिए नहीं कि उसने अपना धर्म समझकर उसे खीर दी थी और वह खीर दोष रहित थी । जो इन तीनों में से किसी को दोषी कहेगा, वह स्वयं दोषी होगा । इसलिए वास्तव में अपराधी तो ब्राह्मणी का पति था जिसने बिना विचारे ब्राह्मणी को घर से निकाल दिया।”
राजा विक्रमादित्य के मुख से इस प्रकार का उत्तर सुनकर बेताल पहले तो बहुत प्रसन्न हुआ फिर वापस लौट कर पेड़ पर जा लटका और हर बार की तरह इस बार भी राजा विक्रमादित्य को वहाँ जाकर उसे लाना पड़ा। बेताल ने चलते-चलते मार्ग में उन्हें फिर से नयी कहानी सुनाई |