राजा विक्रमादित्य ने, असीम धैर्य का परिचय देते हुए, वापस पेड़ पर लौटने वाले बेताल को फिर से अपनी पीठ पर लादा और चल दिए उसी तान्त्रिक के पास, जिसने उन्हें लाने का काम सौंपा था | थोड़ी देर बाद बेताल ने वातावरण की नीरवता को तोड़ा और कहा “तुम भी बड़े हठी हो राजन, खैर चलो, मार्ग आसानी से काट जाए, इसके लिए मै तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ |
हिमाचल क्षेत्र में हिमालय पर्वत पर गंधर्वों का एक नगर था, जिसमें जीमूतकेतु नामक राजा राज करता था। उसका एक लड़का था, जिसका नाम जीमूतवाहन था। पिता-पुत्र दोनों भले मनुष्य थे। धर्म-कर्म के कार्यों में मे लगे रहते थे। इससे प्रजा के लोग बहुत स्वच्छन्द, उद्दंड और विद्रोही प्रकृति के हो गये और एक दिन उन्होंने राजा के महल को घेर लिया।
राजकुमार ने यह देखा तो पिता से कहा कि आप चिन्ता न करें। मैं सबको मार भगाऊँगा। राजा बोला, “नहीं, ऐसा मत करो। महाराज युधिष्ठिर भी महाभारत करके पछताये थे।” इसके बाद राजा अपने गोत्र के लोगों को राज्य सौंप राजकुमार के साथ मलयाचल पर जाकर मढ़ी बनाकर रहने लगे । वहाँ जीमूतवाहन की एक ऋषि के पुत्र से मित्रता हो गयी।
एक दिन दोनों पर्वत पर भवानी के मन्दिर में गये तो दैवयोग से उन्हें मलयकेतु राजा की पुत्री मिली। जीमूतवाहन और राजा की पुत्री दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गये। जब कन्या के पिता को मालूम हुआ तो उसने अपनी बेटी उसे ब्याह दी। एक दिन की बात है कि जीमूतवाहन को पहाड़ पर एक सफ़ेद ढेर दिखाई दिया। पूछा तो मालूम हुआ कि पाताल से बहुत-से नाग आते हैं, जिन्हें गरुड़ खा लेता है।
यह ढेर उन्हीं की हड्डियों का है। उसे देखकर जीमूतवाहन आगे बढ़ गया। कुछ दूर जाने पर उसे किसी के रोने की आवाज़ सुनाई दी। पास गया तो देखा कि एक बुढ़िया रो रही है। कारण पूछा तो उसने बताया कि आज उसके बेटे शंखचूड़ नाग की बारी है। उसे गरुड़ आकर खा जायेगा। जीमूतवाहन ने कहा, “माँ, तुम चिन्ता न करो, मैं उसकी जगह चला जाऊँगा।” बुढ़िया ने बहुत समझाया, पर वह न माना।
इसके बाद गरुड़ आया और उसे चोंच में पकड़कर उड़ा ले गया। संयोग से राजकुमार का बाजूबंद गिर पड़ा, जिस पर राजा का नाम खुदा था। उस पर खून लगा था। राजकुमारी ने उसे देखा। वह मूर्च्छित हो गयी। होश आने पर उसने राजा और रानी को सब हाल सुनाया। वे बड़े दु:खी हुए और जीमूतवाहन को खोजने निकले। तभी उन्हें शंखचूड़ मिला। उसने गरुड़ को पुकार कर कहा, “हे गरुड़! तू इसे छोड़ दे। बारी तो मेरी थी।”
गरुड़ ने राजकुमार से पूछा, “तू अपनी जान क्यों दे रहा है?” उसने कहा, “उत्तम पुरुष को हमेशा दूसरों की सहायता करनी चाहिए।” यह सुनकर गरुड़ बहुत खुश हुआ उसने राजकुमार से वर माँगने को कहा। जीमूतवाहन ने अनुरोध किया कि जिन सर्पों को तुमने अपनी भूख मिटाने के लिए मारा है उन्हें जीवित कर दो । गरुड़ ने ऐसा ही किया। फिर उसने कहा, “तुझे अपना राज्य भी मिल जायेगा।”
इसके बाद वे लोग अपने नगर को लौट आये । लोगों ने राजा को फिर गद्दी पर बिठा दिया। इतना कहकर बेताल बोला, “हे राजन् यह बताओ, इसमें सबसे महान काम किसने किया?” राजा ने कहा “शंखचूड़ ने?” बेताल ने पूछा, “कैसे?” राजा बोला, “जीमूतवाहन जाति का क्षत्रिय था। प्राण देने का उसे अभ्यास था। लेकिन बड़ा काम तो शंखचूड़ ने किया, जो अभ्यास न होते हुए भी जीमूतवाहन को बचाने के लिए अपनी जान देने को तैयार हो गया।”
राजा विक्रमादित्य द्वारा इस प्रकार से उत्तर दिए जाने पर बेताल प्रसन्न हुआ किन्तु अपनी प्रतिज्ञा की वजह से वह फिर विक्रम पर से उठा और उड़कर वापस उसी पेड़ पर जा लटका | राजा विक्रमादित्य ने फिर से उसे पेड़ से उतारा और ले कर चल दिए | मार्ग में बेताल ने उन्हें फिर से एक कथा सुनाई |