सन् 1945 की घटना है तब द्वितीय विश्वयुद्ध चल रहा था। उसी समय केंटोर नामक एक व्यक्ति को अमेरिका से लन्दन जाना पड़ा। मिस्टर केंटोर एक रात के लिए केसिंगटन में रुके | उनको बोर्डिग हाउस का एक कमरा सोने के लिये दिया गया। केंटोर ने स्वयं इसके बाद का अनुभूत वर्णन अपने इन शब्दों में लिखा है | उन्होंने लिखा “भोजन करने के बाद मैं सो गया।
मेरी पहली नींद तीन बजे टूटी । मैं उठा और मूत्र विसर्जन करने के लिये कमरे से बाहर गया और फिर लौटकर आया और फिर बिस्तर पर लेट गया। मुझे लेटते देर नहीं हुई थी कि ऐसा लगा कि नीचे से कोई मेरे कम्बल को घसीट कर हटा रहा है। पहले तो मैंने सोचा कपड़े अपने आप खिसक रहे होंगे इसलिये उन्हें ऊपर को खींच लिया लेकिन वही क्रिया फिर से दुबारा हुई। आश्चर्य से मेरा मुँह फिर खुल गया।
मैंने इस बार थोड़ी ताकत लगाकर अपने कम्बल फिर से ऊपर उठाये। मै जितनी देर तक अपने कम्बल ऊपर उठाये रहता मेरे कम्बल ठीक रहते पर उन्हें छोड़ते ही उन्हें फिर से कोई नीचे खींच लेता। अब तक मै हडबडा चुका था | मैंने बाहर उठकर देखा, अपने कमरे में प्रकाश करके चारो तरफ देखा लेकिन मुझे कहीं कोई दिखाई नहीं दिया ।
मै फिर से अपने कमरे में लौट कर आया | अपने कमरे की बत्ती जलाकर उसका कोना कोना देखा मगर फिर भी कहीं कोई नहीं दिखायी दिया | अब तक मै थोड़ा डर चुका था | मैंने अपने कमरे के दरवाजे बन्द किये, दरवाजे बंद करके अपने आपको कम्बल से चारों ओर से लपेटा और फिर अपने बिस्तर पर लेट गया। मेरा बिस्तर पर लेटना था कि उस कमरे में एक विचित्र प्रकाश दिखाई दिया।
उस प्रकाश में अजीब-अजीब तरह की हलचलें हो रही थी | उसमे से हँसने ओर रोने की विचित्र प्रकार की आवाजें भी आती रहीं। डर के मारे मेरी घिग्घी बंध चुकी थी | मैंने बची हुई रात बड़ी बेचैनी से काटी। ये घटना जिनके साथ घटी, मिस्टर केंटोर, वह कोई साधारण और अविश्वस्त आदमी नहीं बल्कि अमेरिका के एक प्रसिद्ध लेखक थे | जिन्हें कुछ वर्षों पहले ही “पुलित्जर पुरस्कार” प्रदान किया गया था।
यह घटनायें हमें जीवन के सम्बन्ध में नये सिरे से विचार करने के लिये प्रेरित करती है। वर्तमान जीवन ही जीवन का अन्त नहीं, बल्कि मृत्यु के बाद भी मनुष्य जीवित रहता है। यदि यह सच है तो क्या हम उस अनन्त जीवन की शोध और सार्थकता के लिये कुछ कर रहे हैं, हमें आपने आपसे यह प्रश्न करना और उसका समाधान भी ढूंढ़ना चाहिये।