हरी आँखों वाला प्रेत

हरी आँखों वाला प्रेतउस मकान को किराए पर लेने के लिए आये व्यक्ति ने सोचा, मकान तो बहुत बढ़िया दीख रहा है,..यहाँ बहुत अच्छा रहेगा रहना, और नहीं होगा तो यह मकान खरीद ही लूँगा । इन्हीं कल्पनाओं में खोया हुआ किरायेदार विलियम फ्रैंक, जिसे उस मकान में आये अभी आधा घंटा ही हुआ था, गहरी नींद में खो गया ।

लेकिन अभी उसे सोये हुये एक घंटा भी नहीं हुआ था कि किसी ने हाथ के इशारे से उसे जगा दिया । फ्राँक ने अपने ऊपर की चद्दर को हटाया तो देखा की एक बहुत ही भयंकर हरी आँखों वाली मनुष्य आकृति उसके सामने खड़ी है। उसने पूछा कौन है ? किन्तु इससे पहले कि उसको अपने प्रश्न का जवाब मिल पाता, वह भयावह छायाकृति एकाएक ग़ायब  हो गई।

फ्राँक उठे, कमरे की बत्तियाँ जलाकर सभी दरवाजे खिड़कियों की जाँच की, लेकिन सब बिलकुल बन्द थे । बाहर से एक छोटी चिड़िया भी नहीं आ सकती थी, फिर यह पूरी दानवाकृति कहाँ से आई, कौन थी वह और कहाँ चली गई । अंततः उन्होंने इसे अपने मन का भ्रम माना । अपने मन को आश्वस्त कर फ्राँक फिर सो गये किन्तु जैसे ही आधी रात हुई, एक बार फिर वही पहले जैसी स्थिति ।

ठीक वही शक्ल वाली आकृति फिर सिरहाने खड़ी थी और फ्राँक को झकझोर कर जगा रही थी । फ्राँक के मुँह से “कौन” तो निकला लेकिन उस कौन के साथ एक कराह सी भी सुनाई पड़ी, अबकी बार उन्होंने स्पष्ट रूप से एक आदमी को खड़े हुए देखा लेकिन जैसे ही उन्होंने फिर बत्ती जलाई वहाँ कुछ नहीं था ।

फ्राँक बुरी तरह घबड़ा चुके थे । रात उन्होंने जागते हुये बिताई। जहाँ वो उस मकान को खरीदने की सोच रहे थे, दूसरे ही दिन उसे छोड़कर भाग गये। ये एक सत्य घटना है, जो सिडनी (आस्ट्रेलिया) शहर की हेयर फोर्ड स्ट्रीट के एक मकान में घटित हुई, जिसकी जाँच मनो-वैज्ञानिकों ने भी की और उसे सच पाया । उन्होंने एक तरह से मानवेतर योनियों की जो परिकल्पना हिन्दू धर्म में वर्णित है, उससे सहमती जताई |

फ्राँक के जाने के बाद एक दूसरे व्यक्ति उस मकान को किराए पर लेने के लिए आये । मकान किराये पर ले लिया । उस समय मुहल्ले वालों ने उनको बताया-श्रीमान् जी इस मकान में एक किरायेदार पहले भी आये थे पर वह इन-इन परिस्थितियों में इस मकान को छोड़ कर भाग गये । अब ये कहा नहीं जा सकता कि ये मकान आपके लिए हितकर होगा अथवा नहीं पर सुना यह जाता है कि इस मकान का जो मालिक था वह चाय पीने का बेहद शौकीन था और शराब और माँस तो उसके लिए रोज के खान-पान की तरह थे ।

सदैव दुर्गन्धित शरीर वाले उस दानवाकृति मकान मालिक ने जब से शरीर छोड़ा (यानि जब से उसकी मृत्यु हुई) तब से इस मकान में कोई टिका नहीं । कहते हैं कि उसकी प्रेतात्मा इसी मकान में चक्कर काटती हैं और कोई दूसरा व्यक्ति उस घर में रहे यह उससे बर्दाश्त नहीं होता । उसके रिश्तेदार चाहते हैं कि मकान का कुछ किराया मिले पर यह अदृश्य भटकती आत्मा किसी किरायेदार को यहाँ रहने नहीं देती।

ये जो दूसरे सज्जन इस मकान को किराए पर लेने के लिए आये थे, यह सब सुनकर जोर से हँसे,  और बोले “लगता है तुम लोग फ़िल्मी और किताबी बातों पर ज्यादे यकीन करते हो, आज के इस विज्ञान वादी युग में तुम्हारी ये बातें तो उस बच्चे की बातों जैसी लगती हैं जिसे उसकी नानी ने किसी कहानी में डरा दिया हो”। बात वहीं समाप्त हो गई । मकान उन्होंने ले लिया और उसी दिन अपना सामान लाकर वहाँ रहना भी शुरू कर दिया ।

इसे अन्दर का भय कहा जाय या एक प्रकट सत्य की उन सज्जन की पहली और दूसरी रात जैसे ही कोई एक बजने को हुआ कि उन्हें किसी ने कन्धे से पकड़ कर झकझोर कर जगा दिया और इतनी तेजी से जगाया कि उनकी नींद तड़फड़ा कर टूट गयी । उन्होंने देखा एक बहुत ही भारी भरकम शरीर वाला व्यक्ति उनके सामने खड़ा था उसकी आँखें हरी थीं और शरीर काली छाया जैसा ।

ये देखते ही उनका पहला हाथ बिजली की स्विच पर गया । प्रकाश होने पर उन्होंने चारों तरफ नजर दौड़ाई तो दिखाई कोई नहीं दिया लेकिन इससे उनका मन इतना डर गया कि उनके मुह से, ठीक से आवाज़ नहीं निकल रही थी ।

जिन लोगों को पहले से ही मानवेतर योनियों में विश्वास होता है वे यह जानते हैं कि इस प्रकार की निम्न मानवेतर योनियाँ (जैसे भूत-प्रेत) जो अपने आप में अभिशाप होती हैं वे सामान्यतः दूसरों का कुछ बिगाड़ नहीं सकतीं और जिनमें कुछ ऐसी क्षमता होती भी है वो वास्तव में देव-श्रेणियाँ होती हैं और वो अहित सोचने की अपेक्षा लोगों का हित ही करती हैं । शंकालु प्रवृत्ति के उन सज्जन को इन सब बातों का कोई पता न था सो उस रौद्र रूप प्रेत ने उन्हें इतना डरा दिया कि वे बची हुई रात भी सो नहीं सके और दूसरे दिन वे भी वहाँ से सादर विदा होकर दूसरे घर में चले गये ।

यह घटना सिडनी पुलिस हैड क्वार्टर के रिकार्ड से ली गयी है जिसको यह चौंकाने वाली बात इस तीसरे व्यक्ति से प्राप्त हुई जिसका नाम माइकल बुक्स था । इस बार माइकल ये मकान किराये पर लेकर रहने लगे थे । उनसे किसी ने कुछ कहा भी नहीं था ।

उन्हें या उनके परिवार ने कभी इस चीज की कल्पना भी नहीं की थी, उनका इन सब चीजों पर कोई विश्वास भी नहीं था किन्तु एक रात की बात है कोई आहट पाकर उनकी लड़की जग गई आँखे खोलते ही उसने जो भयंकरता देखी सो उसकी आँखें खुली की खुली रह गई। अच्छी स्वस्थ लड़की की आँखों ने कुछ समय के लिए देखना बन्द कर दिया था । उस आकृति का जो दृश्य इस कन्या ने सुनाया वह पिछले दो किरायेदारों के विवरण से सौ प्रतिशत मिलता जुलता था।

उसके बाद एक दिन माइकल के साथ भी ठीक यही घटना घटित हुई। माइकल उसे देखकर न केवल जाग उठे वरन् रोने भी लगे । उन्होंने उसे बिस्तर उठा कर फेंकते हुए देखा। एक दिन उन्होंने पूरी केतली चाय गर्म कर रखी थी, किसी काम से वे थोड़ा बाहर निकल आये दुबारा जब फिर चाय पीने के लिये आयें तो यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये कि वही हरी आँखों वाला वीभत्स छाया पुरुष केतली में ही मुँह लगाये चाय पी रहा है। कहीं एक बूँद चाय गिरी नहीं फिर चाय का इस प्रकार देखते-देखते ग़ायब हो जाना एक बहुत रोमाँचक घटना थी । उन्होंने कई बार उसे नौकरों की तरह काम करते हुए भी देखा और कई बार स्वयं बाहर खुला हुआ रखा सामान उठाकर खाते हुये भी देखा । माइकल  ने अन्ततः सपरिवार मकान छोड़ दिया पर चलते-चलते उसकी रिपोर्ट वहाँ के पुलिस हैड-क्वार्टर में लिखा गये ताकि पीछे कोई और उसमें आकर तंग न हो।

पुलिस ने इस पूरे मामले की जाँच का निर्णय लिया । एक पुलिस कांस्टेबल जाँच के लिए भेजा गया । सिपाही ने घूम-घूम कर पूरा बँगला देखा पर वहाँ उसे न कोई आकृति दिखी न कोई छाया । सिपाही ने माइकल को कई बार कोसा और कहा-लोगों को पुलिस को तंग करने में मजा सा आता है । उसने मकान में ताला बंद किया और थाने लौटकर पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट को बताया वहाँ कुछ भी तो नहीं है | दूसरे दिन ऑफिसर ने उसी सिपाही को फिर भेजा इस बार सिपाही ताला खोलकर घर में जैसे ही घुसा तो उसने जो कुछ देखा उससे उसके रोंगटे खड़े हो गये। कमरों का सारा सामान अस्त-व्यस्त पटका पड़ा था। करीने से लगी कुर्सी मेज इधर-उधर बिखरी पड़ी थीं।

रसोई घर में उसे केतली में चाय मिली जिसे देखने से लगता था किसी ने अभी हाल ही में चाय बनाकर पी है । मकान में चारों तरफ ताला बंदी थी । कोई आने जाने का रास्ता भी नहीं फिर अंदर कौन आया ? किसने चाय बनाई ? अभी वह इन्हीं विचारों में खोया पीछे की और मुड़ा ही था कि ठीक वही आकृति उसके सामने खड़ी थी । कांस्टेबल के शरीर के सारे रोमकूपों ने एक साथ पसीना छोड़ दिया । बड़ी मुश्किल से बेचारे ने भागकर दरवाजे बंद किये, ताला लगाया और थाने लौट आया। थाने में सही घटना लिखाकर घर लौटा तो डर के मारे उसे बुखार आ गया तो वह पन्द्रह दिन बाद ठीक हुआ।

इसके बाद सीनियर पुलिस अफसरों तथा गुप्तचर विभाग के अधिकारियों ने भी छानबीन की । कई ने तो वह आकृति ज्यों की त्यों देखी पर जिन्होंने उसे देखा भी नहीं उन्होंने भी मकान का सामान कई बार अदल-बदल कर रखकर जाँच की | बाहर पहरा होने के बावजूद सामान किस प्रकार तितर-बितर हो जाता है यह रहस्य कोई भी सुलझा न सका। मनोवैज्ञानिकों तथा पत्रकारों ने भी न्यू कैसल में रह रहे माइकेल से बातचीत की तथा मौके पर जाकर जाँच भी की और सारे तथ्य सही पाये | सबने एक स्वर से यह स्वीकार किया कि कोई ऐसी सत्ता सचमुच है जो पूरी तरह से भौतिक न होकर भी समर्थ-मनुष्य जैसे काम कर सकने में सक्षम है ।

यदि यह सत्य है तो आत्मा के अस्तित्व की, मानवेत्तर जीवन, परलोक और पुनर्जन्म की भारतीय मान्यतायें निराधार नहीं कही जानी चाहिये बल्कि उस मान्यता के महत्वपूर्ण पहलुओं का वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया जाना चाहिये। जब तक आज का आधुनिक विज्ञान इस तरह के रहस्यों का ठीक तरह से उत्तर नहीं देता तब तक पराभौतिक अस्तित्व से इनकार करने का कोई कारण नहीं होना चाहिये ।

कहते हैं इस मकान में पहले एक वृद्धा रहती थी। जो घर के अंदर किसी से जोर-जोर से बातचीत किया करती थी। कभी-कभी उसका स्वर इतना रोबीला और आदेशपूर्ण होता था मानों वह अपने किसी नौकर से काम करा रही हो। इतना होने पर भी उस व्यक्ति को किसी ने कभी नहीं देखा। कभी किसी ने वृद्धा से पूछा-अजी आप किससे बातें किया करती हैं तो वह हँसकर इतना ही उत्तर देती-बेटा ! जिससे मैं बात करती हूँ तुम्हें तो उसको देखने की हिम्मत भी नहीं हो सकती। वृद्धा के आत्म-बल पर लोग आश्चर्य करते और कहा करते जिसके कारण दूसरे लोग मकान में रह भी नहीं पाते उसे बुढ़िया कैसे नाच नचाती है ।

कुछ समय बाद वह वृद्धा अपनी बीमारी के कारण जब अस्पताल में थी तब उसके अन्य रिश्तेदार आये और यह बात असली रूप में सबके सामने आई । घटना सामने आ जाने पर भी अव्यक्त सी है और उसके गर्भ में सैकड़ों यथार्थ छिपे हुये हैं जिन्हें जाने समझे बिना मनुष्य जीवन को रहस्य को समझ पाना कठिन है।

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