राजा का श्रापित मक़बरा

Casimir_IV_Jagiellonपोलैंड के जैगिलोनियन (Jagiellonian) राजवंश में जन्मे राजा काज़ीमिएरस (Kazimierz), जिन्हें कैसिमीर (Casimir IV) चतुर्थ भी कहा जाता है, का सिर्फ पोलैंड ही नहीं बल्कि पूरे यूरोप के इतिहास में काफ़ी महत्व है |

आज से कोई 590 वर्ष पूर्व 30 नवम्बर 1427 को पोलैंड के शासक राजा व्लादिस्लाव द्वितीय (Wladyslaw II) के घर उनका नन्हा पुत्र कैसिमीर जन्मा | उस समय व्लादिस्लाव की आयु 65 वर्ष थी | कैसिमीर का बड़ा भाई व्लादिस्लाव तृतीय उससे केवल तीन वर्ष बड़ा था |

राजवंश में जन्मने के बावजूद आश्चर्यजनक रूप से उसकी शिक्षा पर बहुत ध्यान नहीं दिया जा सका | उसने लैटिन कभी नहीं पढ़ा और ना ही उसे राज-काज तथा उनके उत्तरदायित्वों के लिए प्रशिक्षित ही किया गया जबकि वह होने वाले राजा का इकलौता भाई था |

पोलैंड के शासक बनने के बाद भी वो अपने अंतर्ज्ञान और बुद्धि पर ही निर्भर रहता था | यद्यपि उसे राजनीतिक अनुभव व ज्ञान कम था लेकिन देश के वित्तीय मामलों में उसका कूटनीतिक कौशल गज़ब का था | उस काल-खंड में उधर का राजनितिक परिदृश्य तेज़ी से बदल रहा था |

इसे दैव-संयोग ही कहेंगे की पड़ोसी देश लिथुआनिया (Lithuania) के ग्रैंड ड्यूक (Grand Duke) यानि मुख्य शासक, सिगिस्मंड केस्तुतैटिस (Sigismund Kestutaitis) का देहांत हो गया | दरअसल चौदहवीं शताब्दी में लिथुआनिया यूरोप का सबसे बड़ा देश हुआ करता था |

आधुनिक बेलारूस व युक्रेन के साथ-साथ पोलैंड और रूस के कई हिस्से लिथुआनिया ग्रैंड ड्यूक राज्य के ही भाग थे | लिथुआनिया के ग्रैंड ड्यूक का स्थान रिक्त होने पर वहाँ के स्थानीय प्रशासन के अधिपति जोनास गोस्तौतस (Jonas Gostautas) व अन्य प्रभावशाली पूँजीपतियों ने वहां के सिंहासन के लिए पड़ोसी देश पोलैंड के 13 वर्षीय युवराज, कैसिमीर का समर्थन किया |

हालाँकि ये समाचार सुनकर बहुत सारे पोलिश अभिजात वर्ग के लोगों को लगने लगा था कि कैसिमीर, पोलैंड का ही राज्य प्रतिनिधि या गवर्नर बनकर लिथुआनिया में शासन करेगा लेकिन ऐसा हो नहीं पाया | कैसिमीर को लिथुआनिया के कुलीन वर्गीय लोगों (जिनका वहाँ के शासन में सीधा हस्तक्षेप था) ने आमंत्रित किया |

जून 1440 में जब कैसिमीर वहां के सबसे बड़े शहर व राजधानी विल्नियस (Vilnius) पहुंचा तो उसे वहाँ की काउंसिल ऑफ़ लॉर्ड्स (Council of Lords) द्वारा, 29 जून 1440 के ऐतिहासिक दिन ‘लिथुआनिया का ग्रैंड ड्यूक’ घोषित कर दिया गया | हालाँकि ये बात कुछ पोलिश उच्चवर्गीय पूंजीपतियों को नागवार गुजरी क्योंकि ये सब कुछ जोनास गोस्तौतस द्वारा व्यवस्थित और प्रायोजित था |

इसके अलावा जब ये समाचार पोलैंड पहुँचा तो बहुत सारे विवादों का कारण बना यहाँ तक कि लिथुआनिया को पोलैंड की तरफ से सैन्य-कार्यवाही की धमकी भी दी गयी क्योंकि तरुण कैसिमीर राज-काज सँभालने के लिहाज़ से अभी छोटा था और लिथुआनिया का उच्चतम शासनाधिकार अभी भी वहां की काउंसिल ऑफ़ लॉर्ड्स के पास था जिसकी अध्यक्षता जोनास गोस्तौतस के पास थी |

लेकिन बाद में सब ठीक हो गया | कैसिमीर को लिथुआनिअन भाषा सिखाने और वहाँ के रीति-रिवाज़ सिखाने के लिए वहां की राजसभा के अधिकारी नियुक्त किये गए |

कैसिमीर ने अपने लिथुआनिअन शासन के दौरान वहां के ड्यूक, पूँजीपति, कुलीनवर्गीय, तथा समाज के कम महत्वपूर्ण लोग, दबे-कुचले लोग, चाहे वो किसी भी जाति,धर्म व नस्ल के रहे हों, सबको एक समान भाव से देखा और उनसे उचित व्यव्हार किया |

उसने लिथुआनिअन लोगों से उनके राज्य की सीमाओं की सुरक्षा का वादा किया तथा आश्वासन दिया कि कभी भी लिथुआनिअन साम्राज्य के राज-काज व सुरक्षा के लिए पोलैंड के अधिकारियों की नियुक्ति नहीं करेगा | उसने स्वीकार किया कि महा ड्यूक के फ़ैसले, बगैर काउंसिल ऑफ़ लॉर्ड्स के सहमति के, नहीं लिए जायेंगे |

इस प्रकार से उसने वहाँ के लोगों का दिल जीता | इस घटना के लगभग 4 वर्ष बाद, सन 1444 में, कैसिमीर का बड़ा भाई व्लादिस्लाव तृतीय, जो कि पोलैंड का शासक था, वरना (Varna) की लड़ाई में मारा गया |

व्लादिस्लाव तृतीय कि असामायिक मृत्यु के बाद, 25 जून 1444 को, आधिकारिक रूप से कैसिमीर पोलैंड के राजसिंहासन पर विराजमान हुआ | 1454 में उसने ऑस्ट्रिया की एलिज़ाबेथ से विवाह किया |

उसकी पत्नी के पिता अल्बर्ट द्वितीय (Albert II), जो हैब्स्बर्ग के शासक थे, को ‘किंग ऑफ़ द रोमन्स’ (King of The Romans) की उपाधि मिली हुई थी | और उसकी पत्नी की माँ एलिज़ाबेथ बोहेम़िया से थी |

इस प्रकार से इस विवाह से जैगिलोनियन राजवंश और हंगरी-बोहेमियन साम्राज्य का गठजोड़ रिश्तेदारी में बदलकर और मज़बूत हुआ | उसी वर्ष प्रशियन (Prussia) राज्य का एक प्रतिनिधि-मण्डल, ट्यूटनिक सरदारों (Teutonic Knights) से अपनी रक्षा के लिए कैसिमीर से मिला |

कैसिमीर ने उनसे वादा किया कि वह विद्रोही प्रशियन क्षेत्र और वहाँ के लोगों को पोलिश साम्राज्य के संरक्षण में ले लेगा | हालाँकि जब प्रशिया के बाग़ी शहरों ने विद्रोह किया तो उनका ट्यूटनिक सरदारों से युद्ध लम्बा खिंच गया | इतिहास में ये युद्ध “तेरह वर्षीय युद्ध” या “Thirteen Years War”(1454-1466) के नाम से बेहद प्रसिद्ध है |

अंततः कैसिमीर ने प्रशियन लोगों के साथ मिलकर ट्यूटनिक सरदारों को हरा दिया और प्रशियन प्रतिनिधि-मण्डल के साथ उनकी मृतप्राय राजधानी मैरिएन्बर्ग (Marienburg) में प्रवेश किया | कैसिमीर की चारो तरफ धाक जम चुकी थी |

सन 1457 में कैसिमीर की पत्नी एलिज़ाबेथ के इकलौते भाई लादिस्लौस (Ladislaus), जो कि बोहेम़िया और हंगरी का राजा था, की मृत्यु हो गयी | उसकी मृत्यु के बाद कैसिमीर और एलिज़ाबेथ उसके राज्य के उत्तराधिकार के लिए चिंतित हुए और उन्होंने उसे भी अपने संरक्षण में ले लिया |

7 जून 1492 को लिथुआनिया के ओल्ड ग्रोद्नो दुर्ग (Old Grodno Castle) में 65 वर्ष की आयु में सम्राट कैसिमीर का देहांत हो गया | उसे पोलैंड में राजकीय रीति-रिवाज के अनुसार दफना दिया गया | इतिहास के पन्नों पर अपनी पुरुषार्थ की लेखनी से लिखते हुए सम्राट चिर-निद्रा में सो गया |

उसकी मौत के कोई पाँच सौ वर्ष बाद, 1973 में, पोलैंड में क्रैको (Crackow) नामक स्थान पर शोधकर्ताओं का एक समूह खुदाई कर रहा था | उस खुदाई में राजा कैसिमीर का मक़बरा निकला |

राजा के मकबरे को खोलने के कुछ ही दिनों के भीतर, उन बारह शोधकर्ताओं के समूह में से चार शोधकर्ताओं की ‘रहस्यमय’ तरीक़े से मौत हो गयी | मीडिया ने इस घटना को, उस समय से पचास वर्ष पूर्व, मिस्र में, होने वाली घटना से जोड़ा जब होवार्ड कार्टर (Howard Carter) और उनकी टीम ने मिस्र के फ़राओ तूतेनखामेन का मक़बरा खोला था और इसके बाद उनकी टीम के सदस्य एक-एक करके रहस्यमय तरीके से मरने लगे थे |

हालाँकि 1973 में भी सूक्ष्मजीव विज्ञान या सूक्ष्मजैविकी उतनी विकसित नहीं थी जितनी आज है लेकिन फिर भी होने वाली मौतों का रहस्य जंगल में आग की तरह फैला | 1970 के दशक में पोलैंड एक सोशलिस्ट देश था और वहाँ बहुत तरह के अनुसंधानों के लिए अनुमति नहीं थी |

किसी ऐतिहासिक स्थल के परिक्षण के लिए वहां अनुमति प्राप्त करना एक कठिन काम था इसलिए उन पुरातत्ववेत्ताओं, जिनको वहाँ किसी भी तरह के शोधकार्य की अनुमति प्राप्त होती थी, का उत्साह बहुत बढ़ा-चढ़ा होता था |

क्रैको (Crackow) के आर्कबिशप (Archbishop), कार्डिनल कैरोल वोज्त्यला (Cardinal Karol Wojtyla) उन शोधकर्ताओं के मुख्य समर्थक थे जो सम्राट कैसिमीर पर शोधकार्य कर रहे थे | सम्राट के मकबरे को खोलने की अंतिम अनुमति देने के लिए वही उत्तरदायी थे |

यहाँ ये बात गौर करने वाली है कि वही पादरी बाद में पोप बने और पोप जॉन पॉल द्वितीय (Pope John Paul II) के नाम से प्रसिद्ध हुए | सम्राट की मौत के 500 वर्ष बाद लोग ये जानने को उत्सुक थे उसकी समाधि में क्या-क्या रहस्य दफ़न हैं |

शोधकर्ताओं को ये उम्मीद थी कि द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान कम-से कम ये मक़बरा नहीं लुटा होगा जैसा कि पोलैंड के अन्य शाही मकबरों के साथ हुआ था | उस समय यह पोलिश मीडिया में सबसे अधिक चर्चा वाला विषय बन गया था | वहाँ के लोगों में एक अजीब सा आकर्षण था इस पूरी घटना और खबर के प्रति |

बिलकुल वैसे ही जैसे कुछ दशक पहले तूतेनखामेन के साथ था | उसी समय कुछ शोधकर्ता उस तथाकथित श्राप का मज़ाक भी बनाने लगे ये एक दुखद लेकिन वास्तविक तथ्य है कि उसके बाद उनमे से कईयों को अपनी जान गवानी पड़ी | उनके दुर्भाग्य से, श्राप के ऊपर बनाये गए उनके मज़ाक, उन पर क़हर बनकर टूट पड़े |

ऐसा कहा जाता है कि राजा कैसिमीर की अन्त्येष्टि काफी चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में हुई | मौसम बेहद प्रतिकूल था उस दिन | सम्राट के शरीर को एक साधारण लकड़ी के बने ताबूत में रखकर एक अत्यंत मूल्यवान वस्त्र से ढँक दिया गया |

जिन लोगों ने सम्राट के शरीर को उसकी अंतिम यात्रा के लिए तैयार किया था, वे समझ नहीं पा रहे थे कि राजा के शरीर के साथ क्या हो रहा था लेकिन शरीर के क्षय होने की प्रक्रिया काफी तेज़ थी | इसलिए उन लोगों ने सम्राट के शरीर को कैल्शियम से ढकने का निर्णय लिया फिर कफ़न को कपड़े और रेसिन से लपेट दिया गया |

इस प्रकार से वो कफ़न एक प्रकार का जैविक बम बन गया और पाँच सौ साल बाद फटा | लेकिन ये थ्योरी सही नहीं बैठती क्योंकि केवल इतने से कुछ लोगों की जान नहीं जा सकती |

13 अप्रैल 1973 को जब शोधकर्ताओं ने सम्राट की समाधि को खोला तो उन्हें जर्जर हालत में लकड़ियों से लिपटा हुआ कफ़न राजा के कुछ बचे हुए अवशेषों के साथ मिला | उसके परिक्षण के दौरान ही कुछ शोधकर्ताओं की मौत हो गयी |

कुछ फेफड़े में संक्रमण की वजह से मरे और कुछ हृदयाघात की वजह से | कुछ दिनों बाद उनके समूह में से चार और लोगों की रहस्यमय तरीके से मौत हो गयी | लेकिन उसके बाद कुछ ही वर्षों में कम-से-कम पंद्रह या उससे अधिक लोगों की, जो शोधकर्ताओं की मंडली में शामिल थे, कैंसर या फेफड़े की अन्य घातक बीमारियों से मृत्यु हो गयी |

वर्षों तक अनुमान के आधार पर इसकी थ्योरी देने वाले शोधकर्ताओं का यह मानना है अब उन्होंने ‘ऐसी परिस्थितियों में श्राप से होने वाली मौतों का कारण ढूंढ लिया है | और ये वही कारण है जिसकी वजह से मिस्र के फराओं के मकबरे खुलने पर मौते होती थी |

वो कारण एक ख़ास किस्म का ‘फ़ंगस’ है | इसका नाम है Aspergillus flavus | इसके संपर्क में आने पर गले में और फेफड़ों में संक्रमण हो सकता है जो विशेष रूप से स्तनधारियों के लिए काफ़ी खतरनाक हो सकता है | इसके लक्षण अस्थमा और शरीर में विचित्र तरह की खुजली के साथ प्रकट हो सकते हैं |

हालाँकि अगर पीड़ित व्यक्ति की जीवनी शक्ति कमजोर है तो Aspergillus flavus जानलेवा साबित हो सकता है | ऐसा माना जाता है कि सम्राट की समाधि में ये फंगस रहा होगा और समाधि के खोले जाने पर ये अपने इर्द-गिर्द मौजूद सभी लोगों पर हमला किया होगा |

आजकल के शोधकर्ता इन सब से सावधान रहते हैं और कमजोर जीवनी शक्ति वालों को तो ऐसी समाधि के आस-पास भी नहीं फटकने देते | कहते हैं कि इस फंगस के अलावा सम्राट की समाधि में दो और प्रजातियाँ पायी गयी, Penicillium rubrum और Penicillium rugulosum |

ये दोनों एक प्रकार का ज़हरीला पदार्थ बनाते हैं जसके संपर्क में आने पर लीवर कैंसर का अत्यधिक खतरा रहता है | सम्राट कैसिमीर की समाधि में जो कुछ भी मिला वो पूरे सम्मान के साथ उनकी समाधि में फिर से दफ़ना दिया गया |

यद्यपि शोधकर्ताओं को लगता है कि उन्होंने राजा के श्रापित मक़बरे का रहस्य सुलझा लिया है लेकिन वहां पहुँचने वाले अधिकांश सैलानी आज भी मानते है कि उनका सम्राट सो रहा है….चिर निद्रा में…उसकी शान्ति भंग करना उचित नहीं | जो करेगा…वो भरेगा !

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