हमारे यहाँ एक प्रसिद्ध कहावत है ‘मुई खाल की श्वांस सो, सार भस्म हो जाय’ अर्थात कभी किसी निरीह, निर्दोष असहाय को नहीं सताना चाहिए अन्यथा उसके श्राप से आपका सब कुछ नष्ट हो सकता | इस कहावत को चरितार्थ किया लिपजिम जर्मनी के न्यायाधीश “बेनेडिक्ट कारजो” ने | बेनेडिक्ट कारजो का जन्म सन 1620 में हुआ था और उसकी मृत्यु सन 1666 में, एक भयंकर श्राप से तड़प-तड़प कर हुई |
बेनेडिक्ट कारजो दुनिया के भयंकरतम और कठोरतम न्यायाधीशों में से एक था | अपने छोटे से कार्यकाल की अवधि में उसने 30 हजार से अधिक अपराधियों (और साधारण नागरिकों) को फाँसी की सजा दी।
उसकी क्रूरता में चार चाँद लगाती उसकी यह आदत थी कि वह फाँसी की सजा देने के बाद फाँसी देखने स्वयं भी जाता था । और साथ में वह अपना कुत्ता भी ले जाता था और हैवानियत की हद तो तब होती थी जब वह फाँसी से मरे हुए मृतक की लाश को वह अपने कुत्ते से नुचवाता था।
वह एक दम से जीता जगता हैवान था | ऐसा कोई दिन नहीं गया जब उसके कार्यकाल में उसने कम से कम 5 व्यक्तियों को फाँसी न लगवाई हो। उसकी तुलना हम भारत के लुटेरे और सनकी राजा मुहम्मद बिन तुगलक से कर सकते हैं जिसने अपनी राजधानी दिल्ली से दौलताबाद और फिर दौलताबाद से दिल्ली करवाई थी |
मुहम्मद बिन तुगलक एक ऐसा सनकी और मनुष्य के रूप में पैशाचिक राजा था जो प्रतिदिन कुछ निर्दोष लोगों का वध अपने सामने करवाता | उसके सैनिक प्रतिदिन कुछ लोगों को बेहद सामान्य से अपराध में पकड़ लाते और वह उन्हें मृत्यु दंड सुना कर उनकी गर्दने उतरवाता | जब तक वह मनुष्यों का रुधिर बहते हुए न देख लेता उसे दिन का भोजन पचता नहीं |
इसी प्रकार का हैवान बेनेडिक्ट कारजो भी था जिसका ह्रदय लोगों के आंसू और भय से सन्तुष्टि पाता था | एक दिन फाँसी की सज़ा पाए एक दुःखी मनुष्य की आत्मा कराह उठी। फाँसी के फंदे पर चढ़ने के पूर्व उसने जज बेनेडिक्ट कारजो को शाप दिया |
उसने फांसी के तख़्त से ही अपने सामने खड़े बेनेडिक्ट कारजो से कहा “जा तेरी भी कुत्तों जैसी ही मृत्यु होगी, और जिस दिन तेरा कुत्ता मरेगा उसी दिन तू भी मर जाएगा और न जाने कितने ही जन्म तू बार-बार कुत्ता होकर ही मरेगा”। कहते हैं कि उस दुखी आत्मा का श्राप बेनेडिक्ट कारजो को लग गया |
अभी शाप दिये कुछ ही दिन बीते थे कि उसके पालतू कुत्ते को एक दूसरे पागल कुत्ते ने काट लिया, फिर उसके पालतू कुत्ते ने उसे यानी बेनेडिक्ट कारजो को काट लिया।
पागल कुत्ते के काटने की वजह से, उसके कुछ दिनों बाद, एक दिन उसका कुत्ता, लगातार पागलों की तरह भौंकते भौंकते मर गया | उसके कुत्ते के मरने के लगभग तुरंत बाद से ही बेनेडिक्ट कारजो ने भी एक कुत्ते की भांति भौंकना शुरू किया |
इसके बाद कुल तीन घंटे तक कुत्तों की तरह भौंक-भौंक कर उसकी भी मृत्यु हो गई। यह तो पता नहीं कि अगले जन्म में उसका क्या हुआ पर यह आश्चर्य तो सभी को हुआ कि निर्दोष आत्मा के शाप-जिसे भावनाओं को आन्तरिक विस्फोट कहना ही ज्यादा उपयुक्त है-ने उसे किस तरह नारकीय परिस्थितियों को झेलते हुए मौत के मुह में जा धकेला।