ज़िन्दगी में कुछ घटनाएं (विशेष तौर पर दुखद घटनाएं) ऐसी घटती हैं मानो वो पत्थर की लकीर हों आप कुछ भी कर लें उनसे बचने के लिए लेकिन वो हो कर ही रहती हैं | घटना हो जाने के बाद दूसरे लोग भले ही कहें की आप ने ऐसा किया होता तो ऐसा नहीं हुआ होता या पहले से सचेत हो गए होते आप तो आप और आपका परिवार बच सकता था ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण परिस्थितियों से लेकिन आप का दिल जानता है की उस समय आप कुछ भी कर लेते, होने वाली अनहोनी को आप नहीं टाल सकते थे | ऐसा ही कुछ हुआ था रूसी सेनाध्यक्ष जनरल काउंट टूटस्चकोव के परिवार के साथ |
अतिमहत्वाकान्छी नेपोलियन बोनापार्ट की फ़्रांसीसी सेना, 16 जून 1812 को, रूस के विशाल क्षेत्र को अपने अधिपत्य में लाने के लिए मास्को की ओर निकल पड़ी | युद्ध अवश्यम्भावी था | इसके प्रत्युत्तर में रूसी सम्राट अलेक्सेंडर प्रथम ने इसे राष्ट्र-युद्ध घोषित किया और फ्रांसीसियों से होने वाले एक भीषण युद्ध की तैयारियाँ शुरू कर दी |
सम्राट ने रशियन सेना की कमान, जनरल काउंट माइकल बर्कले को सौंपी | जनरल माइकल के उनके अधीनस्थ अधिकारियों के साथ आपसी मतभेद ने, जनरल माइकल को सैन्य-अभियान में उतरने से काफ़ी समय तक रोके रखा |
जनरल माइकल के सहयोगी अधिकारियों और रशियन कोर्ट ने जब जनरल माइकल के युद्ध में पीछे रहने की नीति को देखा तो इसे उनकी युद्ध के प्रति अनिच्छा से जोड़ दिया | परिणामस्वरूप जनरल माइकल से सेना की कमान छीन ली गयी और 29 अगस्त 1812 को जनरल काउंट मिखाइल कुटुज़ोव, रशियन सेना के नए सेनाध्यक्ष नियुक्त हुए |
एक उच्चस्तर के सेनानायक होने के अलावा जनरल कुटुज़ोव की एक और खूबी थी कि वो रुसी मूल के थे जबकि उनके पूर्ववर्ती सेनाध्यक्ष, जनरल माइकल, स्कॉटिश मूल के थे | रूसी सेना की कमान सँभालने के बाद सबसे पहले जनरल कुटुज़ोव ने, अपने अधीनस्थ जनरल कोनोविन्सिन के नेतृत्व में एक मज़बूत रक्षा पंक्ति विकसित की और फिर अपनी सेना को युद्ध की तैयारियों का आदेश दिया |
इन्ही जनरल कुटुज़ोव के सहयोगी अधिकारियों में से एक थे जनरल काउंट टूटस्चकोव | जनरल कुटुज़ोव को अधिक समय नहीं मिल पाया तैयारियों के लिए और आत्मविश्वास से लबरेज़ युद्धोन्माद में फ़्रांसिसी सेना, जो की संख्या बल में अधिक थी रुसी सेना से, मास्को तक चढ़ आयी |
उन्ही दिनों, जनरल टूटस्चकोव की पत्नी को एक अनोखा सपना रोज रात को दिखाई देता | सपने वो खुद को एक सराय में पाती | सराय के उस कमरे में उनके पास एक दुखी बूढ़ा आकर बैठता |
उस बूढ़े की गोद में श्रीमती टूटस्चकोव का बेटा होता | वो बूढ़ा रुंधे हुए गले से उनको बताता की जनरल टूटस्चकोव की मृत्यु युद्ध क्षेत्र में हो गयी | दुश्मन से लड़ते हुए जनरल युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए | वो बूढ़ा आगे कहता है “बेटी तेरे सुख के दिन ख़त्म हो गये, वो वीरगति को प्राप्त हुआ | बोरोडिनो में उसकी मृत्यु हो चुकी है” |
ये स्वप्न श्रीमती टूटस्चकोव को दो-तीन रातों तक आया | इसके बारे में उन्होंने अपने पति को बताया | जनरल ने पुरे युद्ध क्षेत्र का नक्शा निकाल कर देखा | नक़्शे में बोरोडिनो नाम की कोई जगह ही नहीं थी | स्वप्न इतना जीवंत था की श्रीमती टूटस्चकोव का मन शांत नहीं हुआ | लेकिन फिर भी तात्कालिक स्तर पर उन्हें थोड़ी राहत मिली |
उधर फ़्रांसीसी सेना सर पर चढ़ आयी थी और सैनिको का मनोबल बनाए रखने के लिए तुरंत युद्ध ज़रूरी हो चूका था | अंततः 7 सितम्बर 1812 को, पीछे हटती जा रही रूसी सेना ने एक गाँव के पास, फ़्रांसीसी सैनिको को जवाब देने की योजना बनाई | जनरल की सोच ये थी कि फ़्रांसीसी सैनिक इस समय अत्यधिक आत्मविश्वास से लबरेज़ होंगे और ऐसे समय में पलट कर अप्रत्याशित रूप से आक्रामक होकर उनपर वार करने से उनपर काबू पाया जा सकता है |
इस योजना के लिए जिस जगह का चुनाव किया गया वो मास्को से लगभग 78 मील की दूरी पर स्थित थी और उसका नाम था—बोरोडिनो ! युद्ध हुआ और भीषण युद्ध हुआ लेकिन नेपोलियन के नेतृत्व में पूरी फ़्रांसीसी सेना तैयार थी | उस युद्ध में करीब 22 रुसी सेना के अधिकारियों के साथ 44 हज़ार रुसी सैनिक और 35 हज़ार के लगभग फ़्रांसीसी सैनिक मारे गये |
जनरल टूटस्चकोव की धर्मपत्नी, उनके ससुराल वाले और बाकी पूरा परिवार बोरोडिनो में ही एक पुरानी सराय में ठहरे हुए थे | वो सराय युद्ध क्षेत्र से कुछ ही दूरी पर थी |
और 8 सितम्बर की सुबह छह बजे के लगभग सराय के उस कमरे में जनरल के श्वसुर ने अपने नाती को अपनी गोद में उठाये प्रवेश किया | वो बोले “बेटी तेरे सुख के दिन ख़त्म हो गये, वो लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुआ | बोरोडिनो में उसकी मृत्यु हो चुकी है” |