दूर-दूर तक फैले हरे- भरे वृक्ष एवं लतायें, मखमली ऊंची -ऊंची पर्वत श्रृंखलायें, अमृत तुल्य जल से भरा हुआ दूधिया तालाब , चारों ओर पंछियों का मधुर स्वर व शीतल पवन की बयार और इन सब खूबसूरत वादियों के बीच बसा देवी माँ का अद्भुत धाम, ऐसा लगता है़ कि हर किसी को खुशियाँ बाँटने के लिए प्रकृति यहाँ बाँह फैलाये खड़ी है।
लगता है़ कि ये वादियां कह रहीं हैं कि हे भक्तों, आओ इस पावागढ़ धाम में और वह सब कुछ प्राप्त कर लो, जिसे अपने हृदय में पाने की लालसा रखते हो। सचमुच अपनी मनोकामनाओं को पा लेने का गढ़ है पावागढ़। कहते हैं कि जो भी इस धाम की माता की शरण में आया उसने पाया वह सब कुछ जो माँ से मांगा।
क्योंकि इस धाम की देवी वह माता हैं जो पौराणिक काल से ही ऋषि-मुनि, तपस्वी आदि की याचना पूर्ण करती आयीं हैं। भारतीय पौराणिक ग्रंथो में उल्लेख है़ कि कितने ही ऋषि- मुनियों और देवताओं ने इस धाम की देवी के शरण में आकर वह शक्ति प्राप्त कर ली जो तीनों लोकों में सर्वोत्तम थी। परिणाम स्वरूप इस धाम की देवी के शरण में आये भक्त अजेय योद्धा बन गये।
कहते हैं कि हमारे पुराणों में जिन भी ताकतवर अस्त्रों -शस्त्रों अर्थात मिसाइलों जैसे आग्नेयास्त्र, वरूणास्त्र, मानवास्त्र, मोहनास्त्र, धर्मचक्र, कालचक्र, कालास्त्र, पैशाचास्त्र आदि का उल्लेख किया गया है। वे सब ऐसे ही प्रसिद्ध शक्तिपीठों की देन है। जहाँ हमारे ऋषि-मुनियों ने वर्षो तपस्या की और तंत्र -मंत्र ही नहीं बल्कि अदभुत अस्त्रों के धारण की सिद्धि प्राप्त की।
पावागढ़ मंदिर गुजरात
गुजरात की प्राचीन राजधानी चंपानेर के निकट स्थित है यह पावन स्थल। यह देवी धाम बड़ोदरा नगर से लगभग 45 किलोमीटर दूर ऊंची पहाड़ियों पर स्थित है। यह मंदिर जमीन से लगभग 550 मीटर ऊंचाई पर बना हुआ है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए पहले 1470 फीट ऊंचाई पर स्थित माची हवेली तक पहुंचना होता है। इसके बाद मंदिर तक पहुँचने के लिए रोपवे की व्यवस्था भी की गई है। यदि इस मंदिर तक पहुँचने के लिए पैदल चढ़ाई करते हैं तो लगभग 250 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं।
पावागढ़ मंदिर का रहस्य
पावागढ़ मंदिर को माँ कालिका का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर महाकाली का सिद्ध मंदिर है। दक्षिण मुखी होने के कारण यह धाम और अधिक फलदायी हो गया है़। पावागढ़ की माँ काली प्राचीनकाल से ही अपने भक्तों पर कृपालु रही हैं। पावागढ़ मंदिर के निकट बह रही विश्वमित्री नदी की कल-कल की ध्वनि इस देवी धाम की पौराणिक कथा सुना रहीं है।
इस पावागढ़ मंदिर की माँ काली की चमत्कारी कथाएं पौराणिक ग्रंथों में अंकित है़। कहा जाता है कि माँ काली के इस धाम के आसपास कभी कोई दानव आने का साहस नहीं करता था। बताया जाता है कि पावागढ़ पर्वत पर पाँव रखते ही राक्षस भस्म हो जाते थे।
पावागढ़ मंदिर का इतिहास
अपने भीतर एक अद्भुत पौराणिक गाथा को संजोये हुए यह धाम भगवान शिव की अर्धांगिनी देवी सती की स्मृति से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि जब देवी सती ने अपमानित होकर हवन यज्ञ में कूदकर जान दे दी थी। तब भगवान शंकर ने उनके शव को अपने कंधे पर उठाकर अत्यंत दुखित अवस्था में तीनो लोकों में घूमते रहे।
ऐसे में भगवान विष्णु ने शंकर जी को शोक से मुक्त करने के लिए एक उपाय निकाला। उन्होंने सोचा कि किसी तरह भगवान शिव के कंधे को देवी सती के शव से मुक्त किया जाये ताकि वह देवी सती की मृत्यु के शोक से बाहर आ सकें। इस उद्देश्य से भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया।
कहा जाता है कि उस सुदर्शन चक्र ने देवी सती के 51 टुकड़े कर दिये। कहा जाता है़ कि देवी सती के शरीर के टुकड़े इस धरती पर जहाँ कहीं भी गिरे वहाँ माँ का शक्ति पीठ स्थापित हो गया। ऐसा कहा जाता है कि पावागढ़ धाम आज जहाँ स्थित है वहाँ देवी सती के पाँव का अंगूठा कटकर गिरा था। इसलिए इस मंदिर को पावागढ़ मंदिर के नाम से जाना जाता है।
विश्वामित्र ने पावागढ़ मंदिर में घोर तपस्या की
पावागढ़ देवी धाम को गुरू विश्वामित्र के नाम से प्रमुखता से जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि अपनी तांत्रिक शक्ति को बढ़ाने के लिए महर्षि विश्वामित्र इसी पर्वत पर तपस्या करने के लिएआये थे। प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख है़ कि उन्होंने ही पावागढ़ पर्वत पर मां काली के मंदिर की स्थापना की और उनके चरणों में बैठकर वर्षों तक तंत्र- मंत्र सिद्धि में लगे रहे।
इसीलिए पावागढ़ मंदिर को तांत्रिकों का प्रमुख गढ़ कहा जाता है। विश्वामित्र की घोर तपस्या से देवी के धाम में जीवंतता प्रदान हो गयी है। आज भी कोई भक्त इस मंदिर में प्रवेश करता है तो वह एक अद्भुत शक्ति का आभास करता है। यह सब प्राचीन काल में सिद्ध की हुई शक्तियों का प्रतिफल है। महर्षि विश्वामित्र इस धाम में तपस्या करने के लिए वर्षों तक पावागढ़ पर्वत पर कुटिया बना कर रहे। इसीलिए इस पर्वत के निकट बह रही नदी को विश्वामित्री नाम दिया गया है़।
पावागढ़ मंदिर की देवी देतीं हैं आरोग्यता का वरदान
दूरदराज से ऐसे भक्त जो किसी असाध्य रोग से पीड़ित होते हैं वे पावागढ़ देवी के धाम में आरोग्यता का वरदान पाने के आने के लिए आते हैं। कहते हैं कि भक्त जैसे- जैसे इस पावागढ़ मंदिर की सीढ़ी चढ़ते जाते हैं वैसे- वैसे वे अपना दुख, दारिद्र्य और रोगों को पीछे धकेलते जाते हैं। इसीलिए वर्ष भर यहाँ इस पावागढ़ में भक्तों के आने का ताँता लगा रहता है़।