प्रसिद्ध खोज करता जेम्स वाट को कौन नहीं जानता | लेकिन उनके द्वारा की गयी खोजों को बहुत कम लोग जानते हैं | ज्यादातर लोग उन्हें स्टीम इंजन के अविष्कार कर्ता के रूप में ही जानते है | लेकिन जेम्स वाट ने कुछ अन्य महत्वपूर्ण खोजें भी की थी |
आजकल गाँव-देहातों और खेतों में जंगली जानवरों से रक्षा के लिए जो छर्रेदार बन्दूकें काम में लाई जाती है, कभी इनका इस्तेमाल छोटे मोटे युद्ध के लिए होता था। तब उनमें इस्तेमाल होने वाले छर्रे बनाने के लिए सीसे के तार खींचने पड़ते थे या उसकी चादर बनाई जाती थी और बाद में उसे काट कर छर्रे तैयार किये जाते थे।
उन दिनों प्रसिद्ध वैज्ञानिक जेम्स वाट को छर्रे बनाने की यह पद्धति बहुत जटिल लगी। वे इसी उधेड़ बुन में लग गए कि ऐसी कोई रीति की खोज की जाये जिससे बन्दूक के छर्रे आसानी से बन सके |
इस सम्बन्ध में जेम्स वाट ने लिखा है कि एक रात मैंने सपना देखा कि मैं आँधी में उड़ता हुआ चला जा रहा हूँ और उतने में वर्षा शुरू हो गई मगर वर्षा में बजाय पानी की बूंदें गिरने की बजाय मेरे सिर पर शीशे के छर्रे गिर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि मैं बनाना चाहता था।
मेरी नींद खुल गई, मैंने इस सपने पर कोई ध्यान नहीं दिया, सोचा यह मेरे मन की इच्छाओं का ही एक प्रतिबिम्ब हैं। मगर वही सपना मुझे अगली रात से लेकर लगातार चार रात तक बार-बार दिखाई देता रहा |
बार-बार एक ही सपना देखने के कारण मै चौंका और मैंने अपने आपसे पूछा आखिर यह क्या है ? मुझे लगा कि इसमें शीशे को पिघला कर उसकी बूंदें हवा के माध्यम से पानी में टपकाने का संकेत है। उन दिनों वैज्ञानिकों के पास आज जैसी सुसज्जित प्रयोगशालाएं तो थी नहीं। जेम्सवाट का तेज़ दिमाग एक ऐसे जलाशय की खोज में लग गया जो किसी दीवार से सटा हो।
एक चर्च की दीवार के पीछे एक ऐसा ही जलाशय उनको मिल गया और उन्होंने वहाँ प्रयोग करने की अनुमति भी प्राप्त कर ली, प्रयोग करने के लिए वह पिघला हुआ शीशा लेकर गिर्जे के बुर्ज पर चढ़े और वहाँ से शीशे की बूंद पानी में टपकाई। पूरा पिघला हुआ शीशा इस प्रकार टपका देने बाद वे नीचे उतरे और देखा तो चकित रह गए कि शीशे के वैसे ही छर्रे तैयार हो गए थे। जैसे उन्होंने सपने में आकाश से बरसते हुए देखे थे। स्वप्न के माध्यम से मिली उस दैवीय सहायता से हर्षित जेम्स चकित थे |