अगर आप नवाबों और तहज़ीबों के शहर लखनऊ गए हैं तो आपने लखनऊ की शान और इस शहर की पहचान कहे जाने वाले बड़ा इमामबाड़ा, जिसे भूल-भुलैया भी कहते हैं, को ज़रूर ही देखा होगा। तो आइये, इसी इमामबाड़े से जुड़े एक बहुत ही दिलचस्प किस्से से आपको रूबरू कराते हैं जिससे अरबों रुपये के ख़ज़ाने की सच्ची कहानी जुड़ी हुई है।
इमामबाड़े के कुछ रोचक एवं अनसुलझे रहस्य
आपने इतिहास में अवश्य ही पड़ा होगा की अवध प्रांत की राजधानी लखनऊ हुआ करती थी। यहीं पर नवाब आसिफ उद्दौला द्वारा बनवाया गया था यह वास्तुकला का अनोख़ा शाहकार। नवाब साहब ने अपने सलाहकारों की मदद से बड़े ही सुनियोजित तरीके से बड़े इमामबाड़े का निर्माण कराया। जैसे ही आप बाड़े में प्रवेश करेंगे आपको सबसे पहले शाही बावली (सीढ़ीदार विशालकाय कुआँ) देखने को मिलेगीऔर उसके बाद पंचमहल। यह 7 मंजिल की बावली है इसका लिंक पास में बहती हुई गोमती नदी से है। जब कभी गोमती नदी में जलभराव अधिक होता है तो बावली में तीसरी या चौथी मंजिल तक पानी आ जाता है और अगर गोमती नदी में सूखा पड़ता है तो बावली का जलस्तर भी कम हो जाता है, फिर भी इसकी दो मंज़िल तो पानी में हमेशा डूबी रहती ही हैं।
दुनिया का सबसे बड़ा गुंबद आकार वाला हॉल
इमामबाड़े के मुख्य परिसर में गुंबदनुमा हॉल अपने आप में भवन निर्माण का एक अनूठा उदहारण है। इसका गुंबद 50 मीटर चौड़ा और 14 मीटर लंबा है परंतु इसके निर्माण में किसी भी लकड़ी और खंभों का इस्तेमाल नहीं हुआ है। यह वास्तव में दाल, चूना पत्थर और चावल की भूसी (छिलके) जैसी चीज़ों से बना है जिन्हें लखोरी ईंटें कहा जाता है। इस इमामबाड़े के परिसर में एक मस्जिद भी है परंतु उसमें गैर-मुस्लिम लोगों को जाने की अनुमति नहीं होती है। ऐसा माना जाता है कि इसका सेंट्रल हॉल दुनिया का सबसे बड़ा गुंबद आकार वाला हॉल है।
बड़े इमामबाड़ा को यहां के भूल भुलैया के लिए ही जाना जाता है जहां कई सारे गलियारे हैं और यह एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसमें लगभग 869 एक जैसे दिखने वाले दरवाजे हैं और लगभग 1000 रास्ते हैं, जो अच्छे-अच्छों को उसके अंदर भटकते रह जाने के लिए मजबूर करने के लिए काफ़ी है। सोचिए शाम को अँधेरा होने लगे और कोई इसमें भटक जाए तो ये कितना भयानक भी हो सकता है। एक सुरंग नुमा खुफिया रास्ता भी है जो सीधे गोमती नदी की ओर जाता है और यहां पर कई सारे अंडरग्राउंड रास्ते भी हैं जिन्हें अब बंद कर दिया गया है। यदि कोई आम आदमी इन टेढ़े मेढ़े रास्तों की भूल भुलैया में घुस जाए तो वह यहीं पर फंस कर रह जाएगा। यहां की दीवारों का भी निर्माण ऐसे किया गया है कि वह खोखली हैं और एक कोने पर होने वाली बातचीत दूसरे कोने पर आसानी से सुनी जा सकती है। कहते हैं कि इसी खोखली दीवार वाली ईमारत से कहावत शुरू हुई कि दीवारों के भी कान होते हैं।
इमामबाड़ा की बावली वाले कीमती खजाने के आश्चर्यचकित तथ्य
लखनऊ से नवाबी सल्तनत तो गायब हो गई परंतु उनका खजाना कहां है यह आज भी एक अनसुलझा पहलू बना हुआ है, जिस पर इतिहासकार और अन्य विशेषज्ञ अपने-अपने क़यास लगाते रहते हैं। कुछ प्रतिष्ठित इतिहासकारों के अनुसार, बड़े इमामबाड़े की शाही बावली में ही छुपा हुआ है अरबों रूपए का खज़ाना। ऐसा कहा जाता है कि जब 1856 में अंग्रेजों ने नवाब वाजिद अली शाह को गिरफ्तार कर लिया तो उन्हें कोलकाता भेज दिया गया। उसके बाद अंग्रेजों द्वारा उनके शाही खजाने की खोज शुरू करी गयी। कहानियों की माने तो नवाब के वफादार मुनीम शाही खजाने की चाबी और नक्शे को लेकर बावली में कूद गए थे।
अंग्रेजों द्वारा इस बावली के अंदर खजाने की चाबी और नक्शा खोजने की काफी कोशिश करी गयी परंतु उन्हें सफलता नहीं मिली। कहते हैं कि अंग्रेजों द्वारा जितने भी सिपाही या अफ़सर इस बावली के अंदर ख़ज़ाने की तलाश करने के लिए भेजे गए, वे कभी वापस ही नहीं लौटे।
कुछ लोगों का ऐसा भी मानना है कि अवध प्रांत की राजधानी पहले फैजाबाद थी और बाद में उसे लखनऊ कर दिया गया था। इस दौरान नवाब अपना पूरा खजाना फैजाबाद से लखनऊ लाए ही नहीं थे बल्कि उन्होंने उसे फैजाबाद और अयोध्या के बीच स्थित एक कब्रिस्तान में गड़वा दिया था। फैजाबाद में प्रचलित कुछ पुरानी कहानियों के मुताबिक यहां घूमने वाले चरवाहों को भी कभी-कभार कुछ अशर्फियाँ मिल जाया करती थीं, जिससे इस जगह पर खज़ाना होने की बातें लोगों में प्रचलित हुईं।
शोधकर्ताओं की नजर से
लोगों के बीच प्रचलित कहानियाँ कुछ भी हों लेकिन अगर इतिहास के शोधकर्ताओं की मानें तो सबसे अधिक शोधकर्ता इस बड़े इमामबाड़े की बावली में ही खज़ाना होने की बात को स्वीकारते हैं। शायद इसी कारण इस बावली की सुरक्षा की भी अनोखी व्यवस्था की गयी थी। इस इमामबाड़े के पूर्वी हिस्से में पांच मंजिला शाही बावली को नवाब साहब के सबसे ख़ास सैनिकों की गुप्त निगरानी में रखा जाता था। ये जो पूर्वी हिस्सा था वो ऐसा बनाया गया था कि सैनिक वहां बने झरोखे में बैठ कर आने या जाने वालों पर नज़र रख सकते थे। इसको बनाने की कला और डिज़ाइन का कमाल देखिए कि आने वाले हर व्यक्ति की छाया बावली के पानी पर स्पष्ट दिखती थी जिससे सैनिक चौकन्ने हो जाते थे और यदि कोई ग़लत इरादे से आ रहा हो तो वहीं से उस आगंतुक पर अपने तीर या बंदूक से निशाना साध सकते थे।
लखनऊ में स्थित, सैकड़ों साल पुराना, मरी माता का यह पावन स्थल अद्भुत है
लखनऊ के नवाब साहब और उनका रहस्यमयी इमामबाड़ा
कहते हैं कि एक बार अवध क्षेत्र में बड़ा ही भीषण अकाल पड़ा जिससे चारों तरफ भुखमरी फैल गई। मुस्लिम शासकों के शासन काल में अक्सर स्थिति बड़ी अराजक होती थी। मुस्लिम आक्रांता, तत्कालीन हिन्दू जनता के धन संपत्ति का येन-केन प्रकारेण, अपहरण करने का ही प्रयास करते रहते थे। इन सबके परिणाम स्वरूप ही, गरीबी, भुखमरी और अकाल जैसी परिस्थितियाँ देखने को मिलती थी।
ये अकाल लगभग 3-4 सालों तक चला और लोगों के पास अपनी आजीविका का कोई भी साधन ना बच पाया। अधिकांश जनता गरीब हो गयी। आधुनिक वामपंथी इतिहासकार लिखते हैं कि उस समय लखनऊ के तत्कालीन नवाब आसिफ उद्दौला ने बड़े इमामबाड़ा का निर्माण करवाया। उनके स्वतः स्फूर्त दावे के अनुसार इसका निर्माण कराने का सिर्फ एकमात्र उद्देश्य था कि लोगों को रोजी-रोटी कमाने का जरिया मिल सके।भावनाओं की अतिरेकता में कहा तो यहाँ तक भी जाता है कि इसका निर्माण बिना किसी नक्शे को बनाए शुरू कर दिया गया था क्योंकि नवाब साहब सिर्फ यह चाहते थे कि लोगों को मेहनत करके अनाज कमाने का मौका मिल सके। यह निर्माण कार्य काफी वर्षों तक चला।
आधुनिक इतिहासकारों के अनुसार नवाब आसिफ उद्दौला के इस लोगों को मदद करने के लिए बनाये गए भवन ने उस समय के भीषण अकाल के समाप्त होने तक समाज के हर वर्ग के लगभग 30,000 से अधिक लोगों को रोजगार दिया। उसके बाद जब अकाल ख़त्म हुआ तो इसका निर्माण आख़िरकार पूरा करा दिया गया।
यहां पर बिना किसी भेदभाव के लोगों को काम करने को मिलता था और समान रूप से ही उचित पारिश्रमिक भी मिलता था। आज यह सत्य किसी से छिपा नहीं है कि देश के स्वतंत्र होने के पश्चात् वामपंथी इतिहासकारों द्वारा लिखी गयी इतिहास की पुस्तकों में वास्तविक तथ्यों से काफी छेड़ छाड़ की गयी है। किन्तु इन्ही वास्तविक तथ्यों के कुछ अंश रहस्य का आवरण लपेटे हुए इतिहास की अँधेरी गलियों में कहीं गुम हैं। उन्ही में से एक है ये खज़ाना।
ये खज़ाना है तो ज़रूर क्योंकि इतिहासकार और शोधकर्ता इस बारे में एकमत हैं कि अंग्रेज़ों के कब्ज़ा करने से पहले नवाब साहब के पास अथाह दौलत थी, जो अंग्रेज़ों के भी हांथ नहीं आयी तो खज़ाना गया कहां?