बरमूडा ट्रायंगल के बारे में कौन नहीं जानता | आपको बहुत से ऐसे भारतीय लोग मिल जायेंगे जो बरमूडा त्रिकोण के बारे में अपने विचार और उससे सम्बंधित दुनिया भर की थ्योरी के बारें में पूरी तन्मयता से बतायेंगे लेकिन उनको उनके अपने ही देश में, एक ऐसी खूनी झील है जो अपने पास आने वाली हर चीज को निगल लेती है फिर वो चाहे कोई एक मनुष्य हो या पूरी सेना, इसके बारे में नहीं पता होगा |
जी हाँ हम बात कर रहे हैं “ए लेक ऑफ़ नो रिटर्न” की | भ्रम हो अथवा यथार्थ, रहस्य का निर्माण अक्सर इतिहास के पात्र ही करते है | ये हमारा काम है कि हम उस पर अनुसन्धान करे और उसमे छिपे हुए सत्य की खोज करें, प्रकृति हमें इसी के लिए तो प्रेरित करती है |
बहुत कम लोगों को पता होगा कि भारत वर्ष के उत्तर-पूर्व में, भारत-बर्मा की सीमा के पास, पान्गसू दर्रे के क्षेत्र में एक रहस्यमय झील है | इस झील की लम्बाई 1.4 किलोमीटर तथा अपने सबसे चौड़े हिस्से में ये 0.8 किलोमीटर चौड़ी हो जाती है | ये झील वहां लीडो-रोड (पुराने समय में इसे स्टिलवेल रोड कहा जाता था) के दक्षिण-पश्चिम में कोई ढाई किलोमीटर की दूरी पर स्थित होगी |
इस क्षेत्र में तान्गसा जनजाति रहती है | इस रहस्यमय झील को “ए लेक ऑफ़ नो रिटर्न” भी कहा जाता है | इस झील के आस-पास का भी इलाका, वीरान तथा बंजर है | इतनी खोजों के बाद भी आज तक इस झील के बारे में सही जानकारी प्राप्त नहीं सकी है | पशु-पक्षी भी इस झील से दूर-दूर तक नज़र नहीं आते |
इस क्षेत्र से पास वाले गाँव में रहने वाले स्थानीय लोगों का कहना है कि कभी-कभी यहाँ आधी रात के आस-पास विचित्र, रहस्यमय तरीके की अस्पष्ट आवाज़े सुनाई पड़ती हैं | इससे सम्बंधित एक भयानक घटना उस समय की है जब द्वितीय विश्व युद्ध अपने चरम पर था |
उन दिनों अंग्रेजो और जापानियों के संघर्ष के समय जापानी पूरे असम पर कब्ज़ा करना चाहते थे लेकिन जापानियों के दुस्साहसिक अभियान को पूरी तरह से तहस-नहस करने के लिए अंग्रेजों ने एक विशाल सेना, जिसमे सैन्य टुकड़ियों के अलावा तोपखाने व बख्तरबंद गाड़ियाँ भी थी, इसी रास्ते से बर्मा की ओर भेजीं |
लेकिन अचानक ही पूरा का पूरा सैन्य काफ़िला पान्गसू दर्रे के पास पहुँचते ही, रहस्यमय तरीके से ग़ायब हो गया | उधर दूसरी तरफ़ जापानियों की ओर से जो सेना असम पर कब्ज़ा करने के लिए भेजी गयी थी वो भी इस झील के पास पहुँचते ही ग़ायब हो गयी | किसी के समझ में नहीं आ रहा था कि दोनों तरफ़ की पूरी की पूरी सेनायें आखिर गयीं तो कहाँ गयीं?
दोनों ही देशों की तरफ़ से अपनी-अपनी सेनाओं के ग़ायब होने के कारणों की खोज की गयी लेकिन किसी को कोई सफलता नहीं मिली | लापता सैनिकों की खोज में भेजे गए हेलीकॉप्टरों के चालक दल ने अपनी रिपोर्ट में बताया था की वो झील ऊपर से एक विशाल दलदल जैसी नज़र आती है |
इन सब घटनाओं में सबसे आश्चर्यजनक बात यह है कि इस झील की फोटो खींचने का प्रयास कई बार किया गया लेकिन उसमे भी किसी को कोई सफलता नहीं मिली | कुछ विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस झील से कुछ विचित्र रहस्यमय इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगे निकलती हैं जो फोटोग्राफिक कैमरों को रोक देती हैं इसकी फोटो खींचने से |
कुछ शोधकर्ताओं, जिन्होंने इस झील का गहराई से अध्यन किया है, की राय है कि कदाचित यहाँ ब्रह्माण्ड के दूसरे ग्रहों एवं लोको से आये एलियंस का कोई संचार केंद्र (Base Station) हो तथा वो प्राणी नहीं चाहते हों की कोई मनुष्य यहाँ पहुँच कर उन पर अनुसन्धान करे और उनके बारे में किसी प्रकार की कोई जानकारी प्राप्त कर सके |
ये झील द्वितीय विश्व युद्ध में दो देशों की सेनाओं के लापता होने के समय जितनी रहस्यमयी थी उतनी ही आज भी है | समय कोई भी हो, रहस्य हमेशा उतना ही सम्मोहक बना रहता है जितना वो अपने सृजन के समय था, इतिहास की परतों पर जमीं धूल उसे धूमिल कर सकती हैं लेकिन मिटा नहीं सकती !