उत्तराखण्ड का एक भूतिया स्कूल, जहाँ रात बारह बजे के बाद पढ़ाई शुरू होती है

haunted school

आज हम आपको ऐसे रहस्यमय स्कूल ले चलेंगे जहाँ रात बारह बजे के बाद पढ़ना- पढ़ाना शुरू होता है। जी हाँ यह रहस्यमय स्थान है़ उतराखंड राज्य में, जिन्होंने भी यह बात अपनी आँखो से देखी है़ वो आश्चर्य चकित रह गये हैं। आइये जानते कि यहाँ ऐसा क्यों है़? इस विचित्र स्कूल में आधी रात के बाद पढ़ाई क्यों शुरू होती है?

दरअसल डरावना सच यह है़ कि कई वर्ष पहले इस स्थान पर मरने वाले लोगों की आत्मायें छात्र और शिक्षक के रूप में लोगों को नजर आती हैं। यह टीचर और स्टूडेंट लोग कौन हैं, जिनकी ये आत्माएं नज़र आतीं हैं? इस स्कूल के रहस्यमय बनने के पीछे क्या कारण है़ ? किस तरह यह सामान्य लोगों के स्कूल से भूतों के स्कूल में बदल गया? अब यहाँ भूत-प्रेत कब किस -किस रूप में नज़र आ रहें हैं? आइए जानते हैं विस्तार से इस रहस्यमय डरावने स्थान के बारे में ।

घटना काफी पुरानी है 

लगभग 60-65 साल पुराना किस्सा है। एक दिन श्वेतकेतु नाम के व्यक्ति अपनी दुकान बंद करके देर रात गए अपने घर लौट रहे थे कि अचानक उन्होंने बस्ती के निकट एक ही स्थान पर लाइट जलती हुई नजर आई। श्वेतकेतु नाम के उन व्यक्ति को यह सब देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। क्योंकि उन्होंने उस बस्ती में उस स्थान पर कभी लाइट जलती हुई नहीं देखी थी।

दरअसल वास्तविकता यह थी कि उस स्थान पर अब तक सरकार द्वारा विद्युत व्यवस्था पहुंची ही नहीं थी। न बिजली के खंबे लगे थे और न ही इलेक्ट्रिक के तार वहाँ तक पहुँचे थे। श्वेतकेतु नाम के उन व्यक्ति को देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि एक ही दिन में उस बस्ती से दूर उस छोटे से स्थान पर लाइट की व्यवस्था कैसे हो गई? उन्हें कौतूहल हुआ कि इतनी रात गए इस स्थान पर कैसी आवाज आ रही है?

जो कुछ दिखा वह बहुत रहस्यमय था

दबे पांव श्वेतकेतु उस स्थान की ओर बढ़ने लगे, जिस ओर से आवाज आ रही थी। श्वेतकेतु ने सोचा कहीं चोर- डाकू तो नहीं जो अपने साथ लाइट वगैरह लाये हुये हों और बस्ती को लूटने का प्लान बना रहे हो? श्वेतकेतु नाम के वह व्यक्ति धीरे-धीरे उस खंडहर बने भवन तक पहुँच गये। वहाँ पहुँचकर उन्होंने जो कुछ देखा वह बहुत रहस्यमय था।

उस पुराने खंडहर हो चुके पुराने जर्जर भवन में कुछ लोग पढ़ते और कुछ लोग पढ़ाते हुए नजर आये। ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई स्कूल चल रहा हो। लेकिन वहाँ पढ़ने और पढ़ाते हुये दिखने वाले लोग बेहद, बेहद डरावने लग रहे थे। क्षीण काया वाले वे भी इंसान जैसे दिखने वाले पर उन लोगों की आंखें बिल्लियों तरह चमक रही थी। वे आपस में चीखते और चिल्लाते हुये पढते और पढ़ाते हुए नजर आ रहे थे।

श्वेतकेतु ने समझ लिया कि जिन आत्माओं और भूत व प्रेत की किस्से वह सुना करते थे वे आज उन भूत प्रेतों को अपनी आँखो से देख रहे थे। श्वेतकेतु नाम के वे व्यक्ति, वह डरावना दृश्य देखकर दिसंबर की ठंड में भी पसीने -पसीने हो रहे थे। उन्होंने किसी तरह अपने अंदर से निकलती हुई चीख को रोका और अब उन्होंने वहां से भागना शुरू किया।

वह वहाँ से लगातार लगभग दो किलोमीटर तक दौड़ते रहे। उसके बाद ही चैन की सांस ली। श्वेतकेतु जब अपने घर पहुंचे तो रात के 2:30 बज रहे थे। अब उनकी आंखों में नींद कहां थी? भूत प्रेतों के स्कूल का पूरा नजारा उनकी आंखों के सामने नाच रहा था? लेकिन वह बात उन्होंने रात के समय में घर को किसी व्यक्ति को बताना उचित नहीं समझा। किसी तरह करवटें बदलते हुये रात काटी।

पूरी घटना इस प्रकार से थी 

सुबह के समय श्वेतकेतु ने अपने पिता को बस्ती के बाहर की भूतों की पूरी कहानी सुनायी। तब उनके पिता ने, उनको जो कहानी सुनाई वह और भी अधिक चौंकाने वाली थी। श्वेतकेतु ने बताया कि वर्ष 1952 में समाज सेवक एम. राघवन ने छोटे बच्चों के एक स्कूल को बनाने लिए चंदा एकत्र कर बस्ती से बाहर एक छोटा सा भवन बनवाया, ताकि जिसमें बस्ती के छोटे बच्चों की पढ़ाई लिखाई के लिए एक अच्छी व्यवस्था हो जाए और उन्हें पढ़ने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़े।

समाजसेवी एम.राघवन का यह सपना साकार हो गया। स्थानीय लोगों की आर्थिक सहयोग से स्कूल बनकर तैयार हो गया और उसमें पढ़ाई लिखाई भी शुरू हो गई । लेकिन एक दिन कुछ ऐसा हुआ जो बहुत दर्दनाक था। श्वेतकेतु के पिताजी ने बताया कि मुझे याद है उस दिन स्कूल का वार्षिक उत्सव था। स्कूल के सारे स्टाफ और छात्र -छात्राएं एनुअल फंक्शन की तैयारी में लगे हुये थे कि दोपहर बारह बजे के लगभग तीव्र गति का भूकंप आ गया और दुर्भाग्यवश स्कूल की छत नीचे आ गिरी। जिसके कारण स्कूल के कई अध्यापक, कर्मचारी और बच्चे स्कूल की छत के नीचे दब कर मर गये।

यह दर्दनाक दृश्य बहुत भयानक था। लगभग दसों की संख्या में बच्चे -बड़े मारे गए। कुछ घायल भी हुये। उसके बाद स्कूल की छत को रिपेयर कराया गया। कुछ दिनों बाद उस विद्यालय में पढ़ाई -लिखाई फिर शुरू हो गई। लेकिन भूकंप की उस दुर्घटना के कारण वहां होने वाली उन अकाल मौतों के बाद विद्यालय में अनहोनी घटनायें शुरू हुई।

स्कूल में शुरू हुईं भूतिया घटनाएं 

एक बार उस स्कूल में एक बच्चा लंच कर रहा था। उस समय वह क्लास में अकेला ही था। छोटी क्लास में पढ़ने वाले उस बच्चे को ऐसा लगा कि अचानक किसी ने उसका लंच बॉक्स उठाकर उसके सर पर दे मारा। इससे उसके सिर पर गहरी चोट आ गई। दर्द से चीखते हुए उस बच्चे को अस्पताल में भर्ती कराया गया।

इसी तरह एक दिन उस स्कूल में अध्यापक अपनी क्लास में पढ़ा रहे थे कि उन्हें लगा कि कोई उनके क्लास में घुसा और उनके कंधे पर सवार हो गया और बाद में उन अध्यापक के कान पकड़कर खींचने लगा। मास्टर साहब दर्द के मारे करहाने लगे। इन जैसी तमाम घटनाओं के कारण स्कूल में लोगों ने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए भेजना बंद कर दिया।

लोगों को विश्वास हो गया कि भूकंप के कारण छत गिरने से मरने वालों की आत्माएं भूत बनकर कर स्कूल में रहने लगीं है ,जो लोगों को आघात पहुंचा रहीं हैं। धीरे-धीरे उत्तराखण्ड का वह भूतिया स्कूल खंडहर में बदल गया। अब वह स्थान लोगों के लिए उपेक्षित एरिया बन गया है़। आम लोग वहां जाने से डरने लगे हैं।

एक बार एक गाय भैंस को चराने वाला व्यक्ति अनजानवश उस भूतिया स्कूल की तरफ पहुंच गया। उसकी गाय स्कूल के अंदर चली गई। स्कूल के अंदर पहुंचकर वह गाय तेज तेज चिल्लाने लगी जैसे उसे कोई पीट रहा हो। चरवाहा दौड़ा- दौड़ा स्कूल के अंदर गया पर वहां कोई नहीं था। लेकिन उसकी गाय की पीठ पर पीटे जाने के निशान इतनी गहरे थे कि उसमें से खून छलक आया था।

इस घटना के बाद लोग उस भुतहा स्कूल से और अधिक डरने लगे। लोगों ने उस भूतिया स्कूल के आसपास की सड़क से भी आना -जाना भी छोड़ दिया। क्योंकि बस्ती और आसपास सभी लोगों को पता लग गया था कि स्कूल पर आत्माओं ने अपना डेरा डाल दिया है। अब किसी को अपनी जान गंवानी हो तो उस ओर जाये।

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