भूतिया हॉस्पिटल की सच्ची घटना

haunted hospitalआत्माओं के इस रहस्यमय संसार को आज तक कोई जान न पाया है़। हमारे इर्द- गिर्द होने वाली अजीबोगरीब आहटें इनके होने का आभास कराती हैं। कभी-कभी कुछ ऐसी घटनायें हमारे आस-पास घट जातीं हैं। जिन पर कोई भी आसानी से विश्वास नहीं कर सकता। कुछ ऐसा ही उत्तर प्रदेश के मऊ जिले के परदहा ब्लाक के स्वास्थ्य केंद्र में हुआ। जहाँ आज भूत-प्रेतों ने अपना कब्जा जमा लिया है़।

उस अस्पताल से होने वाली तरह -तरह की आवाजों से तो ऐसा ही लगता है़ जैसे की अस्पताल के अंदर कोई डॉक्टर इलाज कर रहा हो ओर किसी मरीज का इलाज चल रहा हो। कभी किसी के इंजेक्शन लगवाने पर चीखने की आवाज आती है़ तो कभी किसी के ऑपरेशन थिएटर में लेटने की छाया।

इस स्वास्थ्य केंद्र में अचानक रौशनी के नजर आने और फिर अंधेरा हो जाने से सारा दृश्य बहुत खौफनाक लगता है़। क्योंकि सबको पता है़ कि इस अस्पताल के अंदर वर्षों से न कोई जाता है़ और न कोई आता है़। फिर भी अस्पताल सें यह दिल दहलाने वाली आवाजें हर किसी को भयभीत करतीं हैं। कितने ही लोग इस अस्पताल से निकलने वाली भूतों की आवाजें सुनकर डर के मारे इस गाँव को छोड़कर भाग गये।

बताया जाता है़ कि वर्ष 1982 में जब मऊ (उत्तर प्रदेश ) के परदहा ब्लाक में वर्षों की प्रतीक्षा के बाद यह स्वास्थ्य केंद्र बना तो गाँव के लोगों में खुशी की लहर दौड़ गयी। क्योंकि बहुत इंतजार के बाद गाँव वालों को एक अच्छा अस्पताल मिला था। अब गाँव वालों को इस बात की खुशी थी कि इलाज के लिए उन्हें शहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब गाँव वालों का शहर जाये बिना इलाज हो सकेगा। लेकिन न जाने कब उन गाँव वालों की खुशियों पर किसकी नजर लग गयी कि एक दिन ऐसी घटना घटी, जिसके बाद उस अस्पताल पर भूतों ने अपना डेरा डाल दिया।

कहा जाता है़ कि गाँव के ही सुमिरन प्रसाद (गोपनीयता की वजह से नाम बदल दिया गया है) और गया प्रसाद (गोपनीयता की वजह से नाम बदल दिया गया है) पड़ोसी थे। दोनों का पुश्तैनी जमीन को लेकर झगड़ा था। एक दिन न जाने क्या हुआ, उस दिन सुमिरन प्रसाद के तीनों भाई गाँव आये हुए थे। गया प्रसाद के भी दोनों भाई, जो काम के सिलसिले में शहर में रहते थे, उन्हीं दिनों गाँव आये हुये थे।

उस रात दोनों परिवारों में पहले कहासुनी हुई फिर झगड़े ने विकराल रूप धारण कर लिया। दोनों परिवारों के सदस्यों में एक दूसरे को जान से मार डालने का भूत सवार हो गया। फिर दोनों परिवारों में खूनी संघर्ष आरंभ हो गया। दोनों परिवारों के लोगों ने धारदार हथियार निकाल लिए। दोनों तरफ से खूनी संघर्ष शुरू हो गया।

जिसके परिणाम स्वरूप सुमिरन प्रसाद और उसके तीनों भाई और गया प्रसाद और उसके दोनों भाई बुरी तरह घायल हो गये। सभी को गाँव के उस नये स्थापित स्वास्थ्य केंद्र पर भर्ती कराया गया। दोनों परिवार के सातों लोग लगभग बेहोशी की हालत में थे। अस्पताल के डॉक्टर उनका इलाज कर रहे थे। अपनी ड्यूटी के बाद अधिकतर मेडिकल स्टाफ अपने घर चला गया।

अस्पताल के स्टाफ के जाने के बाद जो कुछ हुआ वह दिल दहलाने वाला था। अस्पताल के बेड पर एडमिट सुमिरन प्रसाद एवं गया प्रसाद और उनके भाइयों को होश आ गया। तब उन लोगों ने अस्पताल में इलाज करने वाले औजारों से ही एक दूसरे पर फिर हमला बोल दिया।

उन सभी लोगों में अस्पताल में भी खूनी संघर्ष शुरू हो गया। वे सभी एक दूसरे पर जानलेवा हमला कर रहे थे। सुमिरन प्रसाद एवं गया प्रसाद और उनके भाई लहूलुहान हो गये। उस समय अस्पताल में उनके इलाज के लिए अब कोई नहीं था। रात भर वे दर्द के मारे चीखते चिल्लाते रहे। उन सबका खून बहता रहा।

सुबह के समय उन दोनों परिवारों की सात लाशें अस्पताल में पड़ीं थीं। कुछ मृत शरीर बेड पर पड़े थे तो कुछ जमीन पर। दोनों परिवारों की नफरतों ने पूरे परिवार का खात्मा कर दिया था। उस दिन के बाद से उस अस्पताल में सन्नाटा छा गया। कुछ दिन तक तो उस अस्पताल में न कोई डॉक्टर गया और न ही कोई मरीज।

लगभग महीने भर बाद से उस अस्पताल में फिर से डॉक्टर और मरीज आने लगें। लेकिन अब वहाँ पहले जैसी बात नहीं थी। वहाँ अब अनहोनी घटनाएं घटने लगीं थीं। अब उस अस्पताल में इलाज के लिए आने वाला कोई मरीज जिंदा नहीं बचता था। इस बात का आभास अब गाँव वालों को भी होने लगा था। उन्हें लगने लगा था कि इस अस्पताल में भूत-प्रेतों का साया कायम हो गया है़।

अब गाँव वालों को लगने लगा की आपसी खूनी संघर्ष में मरने वाले उन भाइयों की आत्माएं अस्पताल में ही भटक रहीं हैं। एक बार की बात है़ की डॉक्टर विश्वास अपने एक मरीज की आँखे टॉर्च से चेक कर रहे थे कि तभी उन्हें लगा कि पीछे से किसी ने उन्हें तेजी से धक्का दिया, जिसके कारण उन डॉक्टर साहब की टॉर्च मरीज की आँख को चोटिल कर गयी और खून छलक उठा।

इसी प्रकार अस्पताल की लाइटें कर्मचारी द्वारा बंद कर देने के बाद भी रात के बारह बजे से एक बजे के बीच फिर से जल उठतीं थीं और लोगों के चीखने चिल्लाने की आवाजें आने लगतीं थीं। कुछ लोगों का कहना था कि सुमिरन प्रसाद एवं गया प्रसाद और उनके भाईयों के भूत आज भी आपस में लड़ा करते हैं। जिनकी आवाजें अस्पताल में सुनाई देतीं हैं।

एक बार जब एक मरीज को ग्लूकोज़ चढ़ाया जा रहा था तो उसकी बोतल का ग्लूकोज़ ब्लड में बदल गया। इन अजीबोगरीब घटनाओं के बाद गाँव वालों ने इस अस्पताल में जाना ही छोड़ दिया। इस स्वास्थ्य केंद्र पर काम करने वाले डॉक्टर और सपोर्टिंग स्टाफ यहाँ से दूसरी जगह चले गये। लोग इस स्वास्थ्य केंद्र से इतना डर गये थे कि रात के समय इस अस्पताल के पास वाली सड़क पर भूल से भी नहीं गुजरते थे। यह अस्पताल भुतहा अस्पताल के नाम से जाना जाने लगा।

एक बार की बात है़ कि एक परदेसी व्यक्ति अपनी कार से इस गाँव में आया था। उसे इस भुतहा अस्पताल के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। उस व्यक्ति को गाँव के किसी व्यक्ति के घर जाना था। परदेसी को उस व्यक्ति का सही एड्रेस पता नहीं था। गाँव के बाहर स्थित इस अस्पताल में लाइटें जल रही थी। परदेसी ने सोचा कि संभवतः इस अस्पताल में कोई व्यक्ति होगा, चलो उसी से एड्रेस पूछते हैं।

उस अजनबी को क्या पता था कि वह व्यक्ति अनजानवश उस वीरान अस्पताल में भूतों के चंगुल में फंसने जा रहा था। शहर से आये उस परदेसी व्यक्ति ने गाँव के उस रहस्यमय स्वास्थ्य केंद्र पर पहुँचकर जो कुछ देखा तो हैरान रह गया। अस्पताल के अंदर कुछ भयानक चेहरे वाले कई लोग एक दूसरे पर चीख-चिल्ला रहें थे। अस्पताल के अंदर एक दूसरे से लड़ने वाली आकृतियाँ विचित्र तरह की थीं। उन लोगों की आँखे तो बिल्लियों की तरह चमक रहीं थीं, लेकिन शरीर के रंग स्याह थे।

वह भयानक सी दिखने वाली आकृतियाँ एक दूसरे की गर्दन पकड़कर मार पीट कर रहीं थीं। जब उस परदेसी ने यह खौफनाक मंजर देखा तो बहुत डर गया। वह तेजी से वापस अपनी कार की तरफ भागा और उसमे बैठकर कार स्टार्ट कर वहाँ से भागा। उसे लग रहा था कि उस अस्पताल में लड़ने वाली एक आकृति, अभी भी उसका पीछा कर रही थी। उसने अपनी कार तेजी से दौड़ा दी और गाँव पहुँचकर ही साँस ली।

परदेसी वाली इस घटना को जानकर गाँव वाले इस भुतहे स्वास्थ्य केंद्र से और अधिक डर गये। वह अब किसी तरह इस स्वास्थ्य केंद्र को भूतों के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे। इसलिए गाँव वाले कई बार तंत्र- मंत्र को जानने वाले तांत्रिकों को लेकर आये। लेकिन गाँव वालों का यह प्रयास सफल नहीं रहा। एक बार तो उन भूतों ने एक तांत्रिक को ही पकड़ लिया। फिर किसी तरह वह तांत्रिक अपने तंत्र-मंत्र की विद्या से उन भूत- प्रेत के चंगुल से छूट सका।

आज मऊ जिले का यह स्वास्थ्य केंद्र भूतों का डेरा बन चुका है़। कुछ भाइयों के झगड़े ने उनके अपने परिवार का ही नहीं उस अस्पताल का भी बेड़ा गर्क कर दिया। जो अस्पताल लोगों के इलाज के लिए बनाया गया था वह आज खुद अदृश्य शैतानी शक्तियों के कारण भूत -प्रेत की छाया से ग्रस्त हो गया है़। अब लोगों को इंतजार है़ उस पल का, जब वह स्वास्थ्य केंद्र भूत -प्रेत की बाधा से मुक्त हो फिर गाँव वालों के भले के लिए काम करने लगे।

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