अधिकतर लोग इस प्रश्न के उत्तर में ये तर्क देंगे कि जब उस जमाने को हमने देखा नहीं, जाना नहीं, अनुभव नहीं किया तो हम कैसे मान ले कि ऐसा होता था या ऐसा हुआ था | ऐसे लोगों का जवाब कुछ हद तक सही है लेकिन सतही है |
अधिक नहीं, आज से डेढ़ सौ साल पहले ‘तथाकथित’ विद्वान अंग्रेजों ने, इस भारत देश के महाग्रंथों (रामायण और महाभारत) में उड़ने वाले विमानों के बारें में और विमानों से हवा में हुए युद्धों के बारें में पढ़ा तो इसे कोरी कल्पना माना, लेकिन इसके बाद 70 सालों के भीतर ही वे बम-वर्षक विमानों से युद्ध कर रहे थे, द्वितीय विश्व युद्ध में |
ये प्रश्न उन सभी महानुभावों से है कि क्या आप इसे केवल संयोग मानते हैं कि जिसकी हज़ारों सालों से उन्होंने केवल कल्पना की थी, वो भारतीयों और भारतीय ग्रंथों के संपर्क में आने के सौ वर्ष के अन्दर ही साकार हो गयी ? सोचियेगा…….|
इस भारतीय उपमहाद्वीप और पूरे विश्व में बसे हिन्दुओं के रोम-रोम में बसे हैं भगवान् राम ! अधिकतर हिन्दुओं के घर में आपको रामायण भी मिल जायेगी |
इसी रामायण में एक प्रसंग आता है जब विश्वामित्र जी, दशरथ जी के दुखी होने के बावजूद राम और लक्ष्मण को, दुष्ट राक्षसों के नाश के लिए, अयोध्या से ले चलते हैं तो मार्ग में, विश्वामित्र जी के आश्रम से कुछ पहले ही, एक भयंकर जंगल पड़ता है जहाँ से विचित्र तरह की भयानक आवाज़े आ रही थी |
राम और लक्ष्मण ने विश्वामित्र जी से पूछा तो उन्होंने बताया कि किसी समय में यहाँ मलद और करुष नाम की अत्यंत समृद्ध नगरियाँ हुआ करती थीं लेकिन ताड़का नाम की यक्षिणी ने सब बर्बाद कर दिया, वो अभी भी पूरे क्षेत्र को उजाड़ रही है | फिर विश्वामित्र जी ने उन दोनों किशोरवय राजकुमारों से कहा की क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए तुम उसका वध करो |
विश्वामित्र जी से ऐसी आज्ञा पाकर, राम और लक्ष्मण ने जो विद्याएँ सीखी थीं (जैसे बला और अतिबला) तथा जो अस्त्र उनके पास थे उसका प्रयोग करके उन्होंने ताड़का जैसी हज़ारों हांथियों के बल वाली यक्षिणी का वध किया |
विश्वामित्र जी उन दोनों राजकुमारों की विनम्रता, वीरता और युद्ध कौशल से प्रसन्न हुए और संतुष्ट होकर बोले – “हे महायशस्वी राजकुमारों मै तुमसे बहुत संतुष्ट हूँ और तुमको प्रसन्नता पूर्वक सारे अस्त्र-शस्त्र देता हूँ |
इन अस्त्रों से तुम सुर, असुर, गन्धर्व और नाग आदि अपने शत्रुओं को अपने वश में कर, जीत लोगे | फिर सबसे पहले उन्होंने उनको महादिव्य दंड-चक्र दिया फिर धर्म-चक्र, कालचक्र, विष्णुचक्र और फिर ऐन्द्रास्त्र | उनके द्वारा दिए गये अस्त्रों की सूची इस प्रकार है -:
- वज्रास्त्र
- महादेवास्त्र
- ब्रह्मशिर
- एषीक
- मोदकी और शिखरी नाम की दो गदाएँ
- धर्मपाश
- कालपाश
- वरुणपाश
- शुष्क और अशनी नाम के दो वज्र (ये गदा या उसके जैसे किसी शस्त्र से भिन्न होता है)
- पैनाकास्त्र
- नारायणास्त्र
- शिखर नाम का आग्न्येयास्त्र
- प्रथम नाम का वायव्यास्त्र
- हयशिरास्त्र
- क्रौन्चारास्त्र
- कंकाल और कपाल नाम की दो भयंकर शक्तियां
- विद्याधरास्त्र
- नंदन नाम की तलवार
- गान्धर्वास्त्र
- मानवास्त्र
- प्रस्वापन
- सौर दर्पण (ये एक यंत्र था)
- संतापन
- विलापन
- मदनास्त्र
- मोहनास्त्र
- पैशाचास्त्र
- तामस (मायावी अस्त्र)
- महाबली सौमन
- संवर्त
- दुर्धर्ष
- मौशल
- सत्यास्त्र
- परम अस्त्र ‘मायाधर’
- तेजप्रभ (इसमें शत्रु का तेज़ खींचा जाता है)
- शिशिर नामक सोमास्त्र
- त्वाष्टास्त्र
- शीतेशु
- मानव (इस नाम का अस्त्र)
- ब्रह्मास्त्र
इन सब अस्त्र-शस्त्रों को देने के बाद उन्होंने इन दोनों राजकुमारों से कहा कि इन शक्तियों को सूक्ष्म रूप से अपने अन्दर धारण करो फिर पूर्व की ओर मुख करके उन सम्पूर्ण अस्त्रों के मन्त्र (अर्थात चलाने और रोकने की विधि) बताये, जिन सब अस्त्रों का प्राप्त होना देवताओं के लिए भी दुर्लभ था |
फिर जैसे ही विश्वामित्र जी उन सारे मंत्रास्त्रों का उच्चारण किये, वे सारी शक्तियां अपना साक्षात रूप धारण करके उन दोनों के सामने हांथ जोड़कर सामने आ खड़ी हुईं और कहने लगीं – हे राघव हम आपके कार्य के लिए तत्पर हैं आप जो कार्य हमसे लेना चाहेंगे हम वही करेंगे तब राम ने उनको अपने हांथ से छुआ और बोले “मै जब तुम्हारा स्मरण करूँ तुम आकर मेरा कार्य कर जाना” फिर दोनों भाइयों ने महातेजस्वी विश्वामित्र जी को प्रणाम किया और फिर तीनो आगे बढ़े |
रास्ते में राम प्रसन्न होकर विश्वामित्र जी से बोले कि “हे भगवन आपके अनुग्रह से वे सारे अस्त्र-शस्त्र जो सुर और असुरों के लिए भी दुष्प्राप्य हैं हमें मिल गए, और उनको चलाने की विधि भी मालूम पड़ गयी अब कृपया हमें आप इनके संहार (अर्थात अस्त्र चलाकर उसे वापस लेने की विधि) की विधि भी बता दीजिये |
फिर विश्वामित्र जी ने उनका संहार भी उन दोनों को बताया और फिर उन दोनों को कुछ और मंत्रास्त्रों को चलाना सिखाया | उनके नाम इस प्रकार है -:
- सत्यवत
- सत्यकीर्ति
- धृष्ट
- रभस
- प्रतिहारतर
- परान्ग्मुख
- अवान्ग्मुख
- लक्ष्य
- अलक्ष्य
- दृढ़नाभ
- सुनाभ
- दशाक्ष
- शतवक्र
- दशशीर्ष
- शतोदर
- पद्मनाभ
- महानाभ
- दुन्द्नाभ
- ज्योतिष
- कृशन
- नैराश्य
- विमल
- योगंधर
- हरिद्र
- दैत्य प्रमथन
- शुचिर्बाहू
- महाबाहु
- निश्कुल
- विरुचि
- सार्चिमाली
- धृतिमाली
- वृत्तिमान
- रुचिर
- पित्र्य
- सौमनस
- विधूत
- मकर
- करवीरकर
- कामरूप
- कामरूचि
- मोह
- आवरण
- जृम्भक
- सर्वनाभ
- वरुण
विश्वामित्र जी कहने लगे “हे राम और लक्ष्मण ये सब कृशाश्व के पुत्र बड़े तेजस्वी और कामरूपी हैं | इनको तुम ग्रहण करो क्योकि तुम इनको ग्रहण करने के योग्य हो, तुम्हारा कल्याण हो !” तब दिव्य रूप, देदीप्यमान, मूर्तिमान और सुखप्रद वे सारे अस्त्र दोनों भाइयों के सामने उपस्थित हुए | उनमे कोई तो दहकते हुए अंगारे के समान था और कोई धुंए के समान रंग वाला, धुएं के जैसा था |
कोई सूर्य और चन्द्र के सामान थे और कोई हांथ जोड़े हुए थे | वे राम से बड़ी विनम्रता से बोले “हे राघव हम उपस्थित हैं, क्या आज्ञा है ?” इस पर राम ने उनसे कहा कि मेरे मन में वास करो और कार्य पड़ने पर मेरी सहायता करना, इसके बाद तुम जहाँ चाहे जा सकते हो |
रामचंद्र से ऐसा सुनकर उन्होंने उनकी प्रदक्षिणा की और “बहुत अच्छा” कहकर वे जहाँ, जिस लोक से आये थे वहीँ चले गए | इस प्रकार से विश्वामित्र जी से इन अस्त्रों को पाकर राम और लक्ष्मण अत्यन्त प्रसन्न हुए |
दिखने, पढ़ने में ये रोचक कहानी जैसी मालूम पड़ सकती है लेकिन इस कहानी में इतिहास छुपा हुआ है | इतिहास उस चरित्र का जिसके आदर्शों को लोग इस सृष्टि के अंत तक याद रखेंगे |
राम इतिहास के पहले ऐसे पात्र के रूप में हमें दिखाई देते हैं जिन्होंने आतंकवाद का न सिर्फ विरोध किया बल्कि उसे नष्ट भी किया | उन्होंने आतंकवाद के सबसे बड़े पनाहगार से न सिर्फ़ लड़ाई लड़ी बल्कि उसे उसके खानदान समेत मिटटी में मिला दिया |
ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम का इतिहास है ये……….सिर्फ कहानी नहीं है !