इतिहास में कुछ ऐसी घटनाएं घटीं जो किसी चमत्कार से कम न थीं। आज हम बात करेंगे धरती के वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान और उनके राज कवि और परम मित्र चंद्रवरदाई की। इतिहास साक्षी है कि प्राचीन काल के कवि चंदवरदाई के कविता की चंद पंक्तियां, मुस्लिम आक्रांता मोहम्मद गोरी की मौत का कारण बन गई। आज हम जानेंगे कि कविवर चंदवरदाई की वह कौन सी कविता थी जिसके कारण दुष्ट मोहम्मद गोरी को अपने प्राण गंवाने पड़े? साथ ही यह भी जानेंगे कि यह इतिहास प्रसिद्ध पूरी घटना क्या थी?
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी का युद्ध
यह बात है ईस्वीं सन 1192 की, जब तराई के मैदान का दूसरा युद्ध पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच लड़ा गया था। इससे पहले वर्ष 1191 के तराई के प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को बुरी तरह से हरा दिया था। जबकि तराई की दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान स्वयं पराजित हुए। परिणाम स्वरूप मोहम्मद गोरी द्वारा पृथ्वी राज चौहान को बंदी बना लिया गया।
उसके बाद मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को तमाम यातनायें देनी शुरू कर दीं। यहां तक की लोहे की गर्म सलाखों से पृथ्वीराज चौहान को अंधा कर दिया गया। जब पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र कविवर चंद्रवरदाई को यह पता चला कि उनके महाराज पृथ्वीराज चौहान को बंदी बनाकर उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं। तो वह अपने मित्र पृथ्वीराज चौहान से मिलने के लिए बेताब हो उठे।
पृथ्वीराज चौहान और चंदवरदाई की घनिष्ठ मित्रता
दरअसल चंदवरदाई और पृथ्वीराज चौहान की घनिष्ठ मित्रता बहुत पुरानी थी। उनकी मित्रता की मिसाल इतिहास प्रसिद्ध है़। दोनों जहाँ कहीं भी जाते तो साथ-साथ ही रहते थे। युद्ध में, हिंसक पशुओं के शिकार में और सभा आदि में कविवर चंद्रवरदायी, राजा पृथ्वी राज चौहान के संग – संग ही जाते थे। पृथ्वी और चंद्रवरदाई की मित्रता फूल में सुगन्ध के समान थी।
जब कविवर चंद्रवरदायी ने मोहम्मद गोरी के कैद में बंदी अपने परम मित्र पृथ्वीराज चौहान पर होने वाली भीषण यातनाओं के बारे में सुना तो उनकी आंखों में आंसू बहने लगे। वह उस रात सो न सके। उनके मन में बस किसी तरह से अपने मित्र पर अत्याचार करने वाले मोहम्मद गोरी से बदला लेने की धुन सवार थी। वह ऐसी योजना बनाना चाहते थे जिससे की वह उस मोहम्मद गोरी का खात्मा कर सकें, जो उनके मित्र पर अत्याचार कर रहा था।
रात लगभग दो बजे उनके दिमाग में एक योजना ने जन्म ले लिया। वह उठे और अपनी लेखनी उठाई और कुछ लिखने लगे। उन चंद पंक्तियों के लिखने के बाद उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। उन्हें लगा कि उनकी लिखीं कविता की यह पंक्तियाँ दुश्मन को मारने के लिए हथियार का काम करेंगी। लेकिन अगले ही पल कविवर चंद्रवरदायी के मन में नकारात्मक विचार आने लगे।
उन्होंने सोचा कि अगर उनकी योजना सफल न हुई तो उन्हें भी जान से हाथ धोना पड़ेगा। लेकिन वह अपने परम मित्र के लिए जान देने तक के लिए तैयार थे। उन्होंने अपने मन में आने वाले नकारात्मक विचारों को हटाकर फिर सकारात्मक विचारों को पैदा किया और अपने आंसूओं को पोंछ कर कुछ संकल्प मन में लेकर अपने मित्र से मिलने चल दिए।
पृथ्वीराज चौहान और चंदवरदाई का मिलना
मोहम्मद गोरी के बंदी गृह में अपने महाराज पृथ्वी राज चौहान की दशा देखकर वह रो पड़े। मोहम्मद गोरी द्वारा अपने मित्र पृथ्वीराज चौहान को अंधा कर देने की दर्दनाक कहानी सुनकर उनके आँसू बहने लगे। उन्होंने उसी समय ठान लिया कि किसी तरह से अपने मित्र पर हुए हैं इस अत्याचार का बदला लेना ही है।
कविवर चंदवरदाई पृथ्वीराज चौहान से बंदी गृह में मिलने के बाद मोहम्मद गोरी के पास पहुंचे । मोहम्मद गोरी चंद्रवरदायी को देखकर हंसा। वह बोला कि तुम तो अपने महाराज को शेर की तरह बलशाली कहते थे लेकिन वह शेर आज मेरे पिंजरे में कैद है।
कविवर चंद्रवरदायी को मोहम्मद गोरी की यह बातें अच्छी नहीं लगीं। लेकिन उन्होंने कुछ नहीं कहा । बल्कि वे मोहम्मद गोरी को अपने जाल में फंसाने वाली बातें करने लगे। कविवर चंद्रवरदायी ने मोहम्मद गोरी को बताया कि हमारे महाराज पृथ्वी राज चौहान में ऐसे कुछ गुण हैं जिन्हें आप नहीं जानते।
धरती का वीर योद्धा पृथ्वीराज चौहान
हमारे महाराज शब्दभेदी बाण चला सकते हैं। मोहम्मद गोरी शब्दभेदी बाण की कला से अनभिज्ञ था। उसने अपनी जिज्ञासा कविवर चंद्रवरदायी के सामने प्रकट की कि यह शब्द भेदी बाण चलाना क्या होता है? तब कविवर चंद्रवरदायी ने बताया कि इस धनुष चलाने वाली कला में बिना देखे केवल अनुमान के आधार पर धनुष से बाण चलाया जाता है, जो ठीक निशाने पर जाकर लगता है।
कविवर चंद्रवरदायी ने मोहम्मद गोरी को बताया कि उनके महाराज पृथ्वीराज चौहान शब्द भेदी बाण चलाने की इस विशेष कला में निपुण हैं। जिसमें वह अपनी अंधी आंखों से भी केवल आवाज सुनकर अपने धनुष से बाण का निशाना लगा सकते हैं। चंद्रवरदाई ने मोहम्मद गोरी को बताया कि शब्दभेदी बाण चलाने में उनके राजा का पूरे संसार में कोई मुकाबला नहीं कर सकता।
फिर कविवर चंद्रवरदायी ने मोहम्मद गोरी से पूछा कि क्या आप मेरे महाराज पृथ्वी राज चौहान की इस कला को देखना चाहेंगे? मोहम्मद गोरी ने पहले कभी इस कला को नहीं देखा था। मोहम्मद गोरी को आँख से देखे बिना केवल आवाज के अनुमान पर किसी वस्तु पर धनुष बाण से निशाना लगाना असंभव कार्य लग रहा था। इसलिए वह अपने बंदी पृथ्वीराज चौहान की इस शब्द भेदी बाण चलाने वाली कला को देखने के लिए तैयार हो गया।
अंतिम युद्ध, जिसमे पृथ्वीराज चौहान ने मुहम्मद गोरी का वध कर दिया
मोहम्मद गोरी के किले के प्रांगण में एक आम सभा का प्रबंध किया गया। इसमें एक ऊँचे मंच पर मोहम्मद गोरी अपने सिंहासन पर बैठा था। मैदान मैं नीचे जंजीरों से जकड़े हुए पृथ्वी राज चौहान लाये गये। फिर उन्हें धनुष बाण चलाने के लिए जंजीरों से मुक्त कर दिया गया। मोहम्मद गोरी की यातनाओं से अंधे हो चुके पृथ्वी राज चौहान एक घायल शेर की तरह शब्द भेदी बाण चलाने के लिए तैयार थे।
किले के उस विशाल प्रांगण में चारों तरफ आम और खास लोग उपस्थित थे। एक घंटा बाँधा गया था जिसकी आवाज सुनकर अंधे हो चुके पृथ्वीराज चौहान को धनुष बाण से निशाना लगाना था। जैसे ही वह घंटा बजाया गया पृथ्वीराज चौहान ने अपने धनुष से अपना बाण छोड़ा, जो ठीक घंटे पर जा लगा। अंधी आंखों से बिना देखे घंटे पर निशाना लगते देखकर मोहम्मद गोरी गदगद हो गया। उसके मुंह से ‘वाह’ शब्द निकला।
मोहम्मद गोरी के इस वाह शब्द बोलते ही पृथ्वीराज चौहान को इस बात का आभास हो गया कि मोहम्मद गोरी कितनी दूरी पर और कितनी ऊंचाई पर बैठा हुआ है। फिर भी कविवर चंद्रवरदाई ने अपने महाराज की सहायता के लिए अपनी लिखी कविता की चंद पंक्तियाँ बोलीं।
कविता की उन पंक्तियों के बोलते ही पृथ्वीराज चौहान ने वह बाण चलाया जो सीधे जाकर मोहम्मद गोरी के सीने में लगा और वह मारा गया। जानते हैं वह कविता कौन सी थी जो मोहम्मद गोरी के मौत का कारण बनी! कविवर चंद्रवरदायी की वह कविता थी-
चार बांस चौबीस गज
अंगुल अष्ट प्रमाण
ता ऊपर सुल्तान है
मत चूक चौहान
इन पंक्तियों में इस बात का उल्लेख किया गया कि उस प्रांगण में मोहम्मद गोरी पृथ्वी राज चौहान से कितनी दूरी और ऊँचाई पर बैठा हुआ है। इसलिए हे पृथ्वी राज चौहान ऐसा बाण चलाओ जिससे हमारा दुश्मन मारा जाये। कविवर चंद्रवरदायी अपनी योजना में सफल रहे और मोहम्मद गोरी मारा गया।