खतरनाक परग्रही प्राणी, एक छलावा या यथार्थ

खतरनाक परग्रही प्राणी, एक छलावा या यथार्थ
खतरनाक परग्रही प्राणी, एक छलावा या यथार्थ

आज बहुत से ऐसे स्वयंभुव ज्ञानी महात्मा मिल जायेंगे जो भारतीय धर्मग्रंथों में वर्णित हुई घटनाओं एवं तथ्यों को ‘प्रतीकात्मक’ अथवा मनगढ़ंत बताने में अपने को गौरवान्वित अनुभव करते हैं | इनके हिसाब से स्वर्ग और नर्क जैसी कोई चीज नहीं होती, इन सब चीजों की, केवल अपनी बात कहने के लिए, प्राचीन काल के लोगों ने कल्पना की थी |

थोड़ा रूचि लेकर अगर आप इन लोगों से बात करेंगे तो आगे आपको ये, रामायण और महाभारत की घटनाओं को भी प्रतीकात्मक और काल्पनिक बताने से नहीं हिचकेंगे | लेकिन सनातन धर्म के पौराणिक ग्रंथों में वर्णित सभी चीजे प्रतीकात्मक या काल्पनिक नहीं है | इन ग्रंथों में दूसरी दुनिया व इनमे रहने वाले असामान्य प्राणियों का जो ज़िक्र हुआ है वह सत्य है | आज भी आम जनमानस को कभी-कभी उनका अनुभव हो जाता है |

यह घटना सन 1967 की है, जिसे बाद में कल्याण ने प्रकाशित भी किया | उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में सनातन धर्म सम्मेलन हो रहा था | वहां हिन्दू धर्म के शास्त्रों एवं पुराणों में दी गयी घटनाओं की सत्यता के सम्बन्ध में चर्चा छिड़ी तो हापुड़ के वयोवृद्ध नेता एवं भूतपूर्व यू पी विधान परिषद के सदस्य बाबू श्री लक्ष्मी नारायण जी ने श्री रामशरण जी से कहा “देखिये रामशरण दास जी मैं विशेष तो आपके शास्त्र पुराणों की बातों को जानता नहीं हूं, क्योंकि मैंने बहुत उनका अध्ययन नहीं किया है |

मैं तो बहुत समय तक राजनीतिक गतिविधियों में व्यस्त रहा | हाँलाकि जितना मुझसे बन सका, मैंने निस्वार्थ भाव से देश की सेवा की | लेकिन मैंने अपने जीवन में एक ऐसी घटना अवश्य देखी है जिसे अपनी आंखों से देखकर मुझे भी अपने शास्त्र पुराणों में लिखी हुई बातों के प्रति श्रद्धा उत्पन्न हुई | वहाँ उपस्थित सभी उस घटना के बारे में जानने को उत्सुक थे |अंततः उनसे पूछा गया कि “क्या देखी है आपने अपने जीवन में आश्चर्यजनक घटना?” |

उन्होंने बताया “मैंने जो महान भयंकर विशालकाय काली शक्ल वाले दो व्यक्ति देखे थे, वे भूत थे या यमराज के भेजे हुए दूत थे यह तो मैं नहीं जानता, पर आज भी मुझे उनका भूल से भी कभी स्मरण हो जाता है तो मैं बड़ा भयभीत हो जाता हूं” |

फिर बात को उन्होंने विस्तार से बताना शुरू किया “यह सन 1927- 28 की बात है | मैं उस समय कांग्रेस में काम करता था | सुप्रसिद्ध कांग्रेसी नेता श्री महावीर त्यागी जी के बड़े भाई प्रोफेसर धर्मवीर त्यागी उस समय मेरठ कॉलेज के गणित विभाग में प्रोफेसर थे | अचानक प्रोफेसर धर्मवीर त्यागी जी गंभीर रूप से बीमार पड़ गए | उन्हें बराबर हिचकियों पर हिचकियां आती रहती थी |

मेरठ के डॉक्टर करौली का इलाज कराया गया | जब हालात बहुत बिगड़ गए तो उनकी देखभाल करने की बड़ी आवश्यकता आन पड़ी | आदमियों की कमी थी, इसलिए हम लोग हापुड़ से उनकी देखभाल करने के लिए मेरठ गए | उस समय प्रोफेसर साहब मकान के ऊपर की दूसरी मंजिल में शिफ्ट थे | हमें उनकी देखभाल करने का जो काम सौंपा गया, हम उसे सेवाभाव से करने लगे |

लेकिन दो-तीन दिन के पश्चात प्रोफेसर साहब की हालत पहले से और भी ज्यादा बिगड़ गई | डॉक्टर करौली जब प्रोफेसर साहब को देखने के लिए आए तो उन्होंने हम लोगो को सावधान करते हुए कहा “आज की रात प्रोफेसर साहब के लिए बड़े खतरे की है | आज इनकी देखभाल करने की विशेष आवश्यकता है” | यह बात सुनकर हम सभी को बड़ी चिंता हुई |

हमारी सब की ड्यूटी लगा दी गई कि आज रात को उनकी बराबर देखभाल की जाए | हम सब की ड्यूटी तीन-तीन घंटे की थी | मेरी ड्यूटी धर्मवीर त्यागी की धर्म पत्नी के साथ रात्रि 12:00 से 3:00 बजे तक की लगाई गई थी | ड्यूटी के समय मुझे एक बार लघु शंका के लिए जाना पड़ा | उन दिनों आज की तरह बिजली तो थी नहीं |

रोशनी के लिए मैं अपने हाथ में लालटेन लेकर और बहन जी से कहकर बाहर आ गया | बाहर आकर लघुशंका करने के लिए ज्यों ही मै नाली की तरफ गया, मैंने देखा कि दो विचित्र भयंकर शक्लों वाले विशालकाय व्यक्ति खड़े हुए हैं जो मेरे ख्याल से 8 फुट से भी अधिक लंबे रहे होंगे | उनका सारा शरीर एकदम काला था और शरीर से वे बड़े ताक़तवर दिख रहे थे | उनकी पोशाकें भी विचित्र थीं |

उनकी लाल दहकती आँखों को देखकर मैं डर गया और थर-थर कांपने लगा | मै जल्दी से भाग कर के कमरे में घुस गया | अपने पूरे जीवन में इससे पहले कभी भी इतने विशालकाय काले भुजंग प्राणी, मैंने न तो कभी देखे थे और ना ही उस दिन के बाद फिर कभी देखा मैंने | कमरे में घुसने के कुछ ही सेकंड्स के बाद मैंने चुपके से दरवाजा खोल कर देखा वे दोनों वहां से अदृश्य हो चुके थे |

सबसे आश्चर्यजनक घटना यह हुई कि ठीक उसी समय से प्रोफेसर धर्मवीर त्यागी को आराम होना प्रारंभ हो गया | डॉक्टर करौली भी यह देखकर बड़े चकित हुए” |

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