महाभारत युद्ध का सजीव विवरण बताते हुए संजय धृतराष्ट्र से कहते हैं-महाराज ! अर्जुन ने मंगल ग्रह की भाँति वक्र और अति-वक्र गति से चलकर बहुसंख्यक संशप्तकों का संहार कर डाला । अनेकों पैदल, घुड़सवार, रथी और हाथी अर्जुन के बाणों की मार से अपना धैर्य खो बैठे, कितने ही चक्कर काटने लगे । कुछ भाग गये और बहुत-से गिरकर मर गये । उन्होंने भल्ल, क्षुर, अर्धचन्द्र तथा वत्सदन्त आदि अस्त्रों से अपने शत्रुओं के घोड़े, सारथि, ध्वजा, धनुष, बाण, हाथ, हाथ के हथियार, भुजाएँ और मस्तक काट गिराये ।
इसी बीच में उग्रायुध के पुत्र ने तीन बाणों से अर्जुन को बींध दिया । यह देख अर्जुन ने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया । उस समय उग्रायुध के समस्त सैनिक क्रोध में भरकर अर्जुन पर नाना प्रकार के अस्त्रशस्त्रों की वर्षा करने लगे । परंतु अर्जुन ने अपने अस्त्रों से शत्रुओं की अस्त्रवर्षा रोक दी और सायकों की झड़ी लगाकर बहुत-से शत्रुओं का वध कर डाला ।
उसी समय भगवान् श्रीकृष्ण ने कहा “अर्जुन ! तुम खिलवाड़ क्यों कर रहे हो ? इन संशप्तकों का अन्त करके अब कर्ण का वध करने के लिये शीघ्र तैयार हो जाओ” । “अच्छा, ऐसा ही करता हूँ” यह कहकर अर्जुन ने शेष संशप्तकों का संहार आरम्भ किया । अर्जुन इतनी शीघ्रता से बाण हाथ में लेते, संधान करते और छोड़ते थे कि बहुत सावधानी से देखने वाले भी उनकी इन सब बातों को देख नहीं पाते थे ।
अर्जुन का हस्त-लाघव देख स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण भी आश्चर्य में पड़ गये । उन्होंने अर्जुन से कहा “पार्थ ! इस पृथ्वी पर दुर्योधन के कारण राजाओं का यह महाभयंकर संहार हो रहा है । आज तुमने जो पराक्रम किया है वैसा स्वर्ग में केवल इन्द्र ने ही किया था” । इस प्रकार बातें करते हुए श्रीकृष्ण और अर्जुन चले जा रहे थे, इतने ही में उन्हें दुर्योधन की सेना के पास शंख, दुन्दुभि, भेरी और पणव आदि बाजों की आवाज सुनायी दी ।
तब श्रीकृष्ण ने घोड़ों को बढ़ाया और वहाँ पहुँचकर देखा कि राजा पाण्ड्य के द्वारा दुर्योधन की सेना का विकट विध्वंस हुआ है । यह देख उन्हें बड़ा विस्मय हुआ । राजा पाण्ड्य अस्त्रविद्या तथा धनुर्विद्या में प्रवीण थे | उन्होंने अनेकों प्रकार के बाण मारकर शत्रु समुदाय का नाश कर डाला था । शत्रुओं के प्रधान-प्रधान वीरों ने उन पर जो-जो अस्त्र छोड़े थे, उन सबको अपने सायकों से काटकर वे उन वीरों को यमलोक भेज चुके थे ।
धृतराष्ट्र ने कहा “संजय ! अब तुम मुझ से राजा पाण्ड्य के पराक्रम, अस्त्रशिक्षा, प्रभाव और बल का वर्णन करो । संजय ने कहा “महाराज ! आप जिन्हें श्रेष्ठ महारथी मानते हैं, उन सबको राजा पाण्ड्य अपने पराक्रम के सामने तुच्छ गिनते थे । अपने साथ भीष्म और द्रोण की समानता बतलाना भी उन्हें बरदाश्त नहीं होता था ।
श्रीकृष्ण और अर्जुन से किसी भी बात में वे अपने को कम नहीं समझते थे । इस प्रकार पाण्ड्य समस्त राजाओं तथा सम्पूर्ण अस्त्रधारियों में श्रेष्ठ थे । वे कर्ण की सेना का संहार कर रहे थे । उन्होंने सम्पूर्ण योद्धाओं को छिन्न-भिन्न कर दिया, हाथियों और उनके सवारों को पताका, ध्वजा और अस्त्रों से शून्य करके पाद-रक्षकों सहित मार डाला ।
पुलिन्द, खस, बाह्रीक, निषाद, आन्ध्र, कुन्तल, दाक्षिणात्य और भोजदेशीय शूरवीरों को शस्त्रहीन तथा कवचशून्य करके उन्होंने मौत के घाट उतार दिया। इस प्रकार उन्हें कौरवों की चतुरंगिणी सेना का नाश करते देख अश्वत्थामा उनका सामना करने के लिये आया । उसने राजा पाण्ड्य के ऊपर पहले प्रहार किया, तब उन्होंने एक कर्णी नामक शक्ति छोड़कर अश्वत्थामा को बींध डाला ।
इसके बाद अश्वत्थामा ने मर्मस्थानों को विदीर्ण कर देने वाले अत्यन्त भयंकर बाण हाथ में लिये और राजा पाण्ड्य के ऊपर हँसते-हँसते उनका प्रहार किया । इसके बाद उसने तेज की हुई धार वाले कई तीखे नाराच उठाये और पाण्ड्य पर उनका दशमी गति से प्रयोग किया । परंतु पाण्ड्य ने नौ तीखे बाण मारकर उन नाराचों को काट डाला और उसके पहियों की रक्षा करने वाले योद्धाओं को भी मार डाला ।
अपने शत्रु की यह फुर्ती देखकर अश्वत्थामा ने धनुष को मण्डलाकार बना लिया और बाणों की बौछार करने लगा । आठ-आठ बैलों की शक्ति वाले यंत्रों से खींचे जाने वाली आठ गाड़ियों में जितने बाण लदे थे, उन सबको अश्वत्थामा ने आधे पहर में ही समाप्त कर दिया । उस समय उसका स्वरूप क्रोध से भरे हुए यमराज के समान हो रहा था ।
जिन लोगों ने उसे देखा, वे प्रायः होश-हवास खो बैठे । अश्वत्थामा के चलाये हुए उन सभी बाणों को पाण्ड्य ने वायव्यास्त्र से उड़ा दिया और उच्चस्वर से गर्जना की । तब द्रोणकुमार ने उनकी ध्वजा काटकर चारों घोड़ों और सारथि को यमलोक भेज दिया तथा अर्धचन्द्राकार बाण से धनुष काटकर रथ की भी धज्जियाँ उड़ा दीं ।
उस समय यद्यपि महारथी पाण्ड्य रथ से शून्य हो गये थे, तो भी अश्वत्थामा ने उन्हें मारा नहीं । उनके साथ युद्ध करने की उसकी इच्छा अभी बनी ही हुई थी । इसी समय एक महाबली गजराज बड़े वेग से दौड़ता हुआ वहाँ आ पहुँचा, उसका सवार मारा जा चुका था । राजा पाण्ड्य हाथी के युद्ध में बड़े निपुण थे । उस पर्वत के समान ऊँचे गजराज को देखते ही वे उसकी पीठ पर जा बैठे ।
उन्होंने हाथी को अंकुश मारकर आगे बढ़ाया और सिंहनाद करके द्रोणपुत्र के ऊपर एक अत्यन्त तेजस्वी तोमर का प्रहार किया तोमर की चोट से अश्वत्थामा के सिर का सुवर्णमय मुकुट चूर-चूर होकर खनखनाता हुआ जमीन पर जा गिरा । अब तो क्रोध के मारे द्रोणकुमार के बदन में आग लग गयी, उसने शत्रु को पीड़ा देने वाले यमदण्ड के समान भयंकर चौदह बाण हाथ में लिये ।
उनमें से पाँच बाणों से तो उसने हाथी को पैरों से लेकर सैंड तक बींध डाला, तीन से राजा की दोनों भुजाओं और मस्तक को काट गिराया तथा शेष छ: बाणों से पाण्ड्य के अनुयायी छ: महारथियों को यमलोक भेजा । इस प्रकार महाबली पाण्ड्य को मारकर जब अश्वत्थामा ने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया तो आपका पुत्र दुर्योधन अपने मित्रों के साथ उसके पास आया और बड़ी प्रसन्नता के साथ उसने उसका स्वागत सत्कार किया ।