क्या आपको मालूम है कि हमारे देश के सबसे खूबसूरत नज़ारों वाले रास्तों में से एक है कालका शिमला टॉय ट्रेन रूट और इस रेल मार्ग का सबसे खूबसूरत स्टेशन है बड़ोग। खूबसूरती तो इस स्टेशन के आस-पास इतनी है कि आप इसके नज़ारों में सम्मोहित हो जायेंगे, इस बात की गारंटी है परंतु इसी स्टेशन के लगा हुआ जो टनल है, उसमें रहता है एक अंग्रेज़ भूत! तो आइए, हम आपको इसी भूतिया टनल के बारे में विस्तार से बताते हैं।
कमाल की है ये खूबसूरत नज़ारों वाली टॉय ट्रेन यात्रा
दोस्तों अगर आप कालका से शिमला तक की रेल यात्रा कर चुके होंगे तो आपने पाया होगा कि यह दुनिया एक बहुत ही खूबसूरत रास्ता है। इस खूबसूरत रेल यात्रा में एक से बढ़ कर एक खूबसूरत नज़ारे मिलते हैं। यह रास्ता लगभग 93 किलोमीटर लंबा है और इस पूरे रास्ते में 20 के लगभग स्टेशन हैं। इस पूरी यात्रा में आपको लगभग 969 छोटे बड़े ब्रिज मिलेंगे और 103 के लगभग टनल मिलेंगी, परंतु इस पूरे रास्ते में सबसे ख़ास और सबसे लंबी टनल है बड़ोग टनल।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि इस कालका-शिमला रेल यात्रा के नाम कुछ कमाल के रिकार्ड्स दर्ज़ हैं जिनमें से सबसे ख़ास है यूनेस्को द्वारा इसे बैस्ट माउंटेन रेलवे ट्रैक के अंतर्गत हेरिटेज साइट घोषित किया जाना और गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स द्वारा इसको दिया गया ‘ग्रेटैस्ट नैरो गेज इंजीनियरिंग’ का ख़िताब।
तो आईये जानते हैं इस रेल मार्ग की सबसे ख़ास टनल नंबर 33 के बारे में
जब अंग्रेज भारत आए तो उन्होंने भारत की सबसे खूबसूरत जगह है शिमला को अपनी समर कैपिटल बना लिया यानी गर्मियों के दिनों में शिमला भारत की राजधानी हुआ करती थी। इसीलिए अंग्रेजों ने यहां काफी बिल्डिंग और सड़कें बनवाई। उनके आने-जाने तथा सामान पहुंचाने की सहूलियत के लिए यहां एक रेल मार्ग बनाया गया। साल 1898 मैं यह रेल मार्ग बनना शुरू हुआ। इस रास्ते में काफी सुरंगों से होकर रेल पटरीयाँ निकाली गई। इन सुरंगों में सबसे कठिन और सबसे लंबी थी टनल नंबर तैंतीस।
इसका टनल को बनाने का काम पूरा करने के लिए रेलवे के एक मशहूर इंजीनियर कर्नल बड़ोग को चुना गया। रेलवे को इस टनल के निर्माण की बहुत जल्दी थी और ऐसा इसलिए था क्योंकि पूरे रेल मार्ग में रेल को इस टनल से होकर गुजरना ही पड़ता और इसके निर्माण के बिना रेल मार्ग पूरा नहीं किया जा सकता था।
कर्नल बड़ोग ने काफी शोध के बाद यह निश्चय किया कि टनल पर की खुदाई दोनों ही सिरों से की जाएगी ताकि यह काम लगभग आधे समय में ही पूरा हो जाए। हालांकि कर्नल बड़ोग में काफी अनुसंधान के बाद यह निर्णय लिया था परंतु दोनों तरफ की खुदाई होने के बाद भी यह सुरंगे आपस में नहीं मिल पा रही थी।
शायद कर्नल बड़ोग की कैलकुलेशंस में कुछ कमी रह गई थीऔर दोनों तरफ की टनल का एलाइनमेंट सही नहीं हो रहा था। इसी कारण कर्नल बड़ोग बहुत चिंता में रहने लगे। जब ब्रिटेन के आला अफसरों को इसकी खबर पहुंची तो वह बड़े ही नाराज हुए और उन्होंने कर्नल बड़ोग पर एक रुपए की पेनाल्टी लगाई। आप सब को इस बात का अंदाजा तो होगा ही कि उस समय एक रुपए की कीमत कितनी अधिक होती थी।
बाबा भालकु की सिद्ध शक्तियां
आला अफसरों ने नाराज़ हो कर इस टनल को बनाने के काम से कर्नल बड़ोग को हटा भी दिया। कर्नल काफी निराश थे और उस टनल में काम करने वाले उनके जूनियर्स तथा मज़दूरों ने भी उनका बहुत मजाक उड़ाया। इन सब घटनाओं से कर्नल बड़ोग डिप्रेशन का शिकार हो गए। एक दिन सुबह जब वह अपने पालतू कुत्ते को उसी टनल में घुमाने ले गए तो वहीं पर उन्होंने अपने आप को गोली मार ली। जिस दूसरे इंजीनियर को इस टनल को पूरा करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गयी थी, वह भी बहुत ही मुश्किल में था क्योंकि उसे भी समझ में नहीं आ रहा था कि उस टनल का एलाइनमेंट कैसे सही करें और उसका निर्माण कार्य कैसे पूरा किया जाए। तब वहां के कुछ मजदूरों और नागरिकों ने उनसे बाबा भालकु से मदद लेने को कहा।
वहां के लोगों का ऐसा विश्वास था कि बाबा भालकु के पास काफी सिद्ध शक्तियां हैं और इन शक्तियों से वह नेचुरल इंजीनियरिंग करने में बड़े ही सक्षम थे। उन्होंने उस चीफ इंजीनियर से टनल के एक तरफ से ही खुदाई पूरी करा कर उसे दूसरी तरफ खुलवाया। यह टनल लगभग 1144 मीटर लंबी है और रेल से इस को पार करने में करीब 2 मिनट और 50 सेकंड का समय लगता है। अंत में1903 मैं यह टनल बनकर तैयार हुई और इंजीनियरिंग की बेहतरीन मिसाल वाला यह कालका शिमला रेल मार्ग शुरू हुआ।
क्यों मानी जाती है ये टनल भूतिया?
दूसरी तरफ से खोदी गई अधूरी टनल अभी भी वैसी ही है और जिसमें कर्नल बड़ोग ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या की थी। ऐसा माना जाता है कि तब से कर्नल बड़ोग की आत्मा इस टनल मैं रहती है। यहां रहने वाले लोगों का मानना है कि इस टनल से अक्सर ही किसी अंग्रेज आदमी के तेज़ आवाज़ में बात करने की आवाज़ें आती हैं। वहाँ आस-पड़ोस में रहने वाले लोगों का यह भी मानना है कि कर्नल बड़ोग की आत्मा किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती और कई लोगों ने तो इस टनल में जाकर उनसे बात करने के अनुभव का भी दावा किया है।
सरकार ने इस अधूरी टनल के मुहाने पर एक लोहे का गेट लगाकर ताला बंद कर दिया था परंतु वह गेट थोड़े ही समय में अपने आप खुल गया और फिर वहां कोई गेट दोबारा नहीं लगाया जा सका। हालांकि अंग्रेज सरकार कर्नल बड़ोग से इस मामले में काफी नाराज थी परंतु रेलवे में उनके पहले के योगदान को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस टनल के पास वाले स्टेशन का नाम बड़ोग स्टेशन रख दिया था।
अगली बार जब इस बेहतरीन नज़ारों वाली इस कालका-शिमला रेल यात्रा पर जायें तो इस ख़ास बड़ोग टनल को ध्यान से देखें, इस भूतिया टनल और इसके अच्छे भूत कर्नल बड़ोग की सच्ची कहानी की याद आते ही आप रोमांच से भर उठेंगे।