हमारे देश में देवी माँ के मंदिरों को माता का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है़। क्योंकि ये वे मंदिर हैं जहाँ देवी माँ अपने भक्तों के लिए माता के रूप में विराजमान हैं। देश-विदेश में देवी माँ के अनगिनत मंदिर स्थापित हैं, जो भक्तों की आस्था के प्रतीक हैं। आज हम ऐसे 5 माता के मंदिर की चर्चा करने जा रहें हैं जहाँ देवी माता के चमत्कार का प्रभाव कण- कण मे दिखाई देता है।
पूर्णागिरी माता का मंदिर
अपने भीतर एक अदभुत पौराणिक गाथा को संजोया हुआ यह धाम भगवान शिव की अर्धांगिनी देवी सती की स्मृति से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है़ कि जब देवी सती ने यज्ञ कुंड में कूद कर जान दे दी तब भगवान शंकर उनके शव को अपने कंधे पर उठाकर अत्यंत शोकसंतप्त अवस्था में तीनों लोक में घूमने लगे।
ऐसे में भगवान विष्णु ने शंकर जी को उनके शोक से मुक्त करने के लिए एक उपाय निकाला। उन्होंने सोंचा कि किसी तरह भगवान शिव को उनके कंधे पर रखे देवी सती के शव से मुक्त किया जाये ताकि वह देवी सती की मृत्यु के शोक से बाहर आ सकें। इसी उद्देश्य से भगवान विष्णु ने अपना चक्र सुदर्शन चलाया।
उस चक्र ने देवी सती के मृत शरीर के टुकड़े -टुकड़े कर दिये। कहते हैं कि उस सुदर्शन चक्र ने देवी सती के शरीर के 51 टुकड़े कर दिये। वे देवी सती के शरीर के टुकड़े धरती पर जहाँ कहीं भी गिरे वहाँ एक सिद्ध शक्ति पीठ स्थापित हो गया। पूर्णा गिरी माता का मंदिर ऐसा ही एक देवी का धाम है़ जहाँ देवी सती का नाभि का हिस्सा गिरा था।
यह पावन स्थान उत्तराखण्ड राज्य के टनकपुर जिले में स्थित है़। यह धाम जमीन से लगभग 5500 फुट ऊँचाई पर अन्नपूर्णा पर्वत के शिखर पर स्थित है़। जो देवी के 108 शक्ति पीठों में से एक है़। यहाँ देवी महाकाली का भव्य मंदिर है़।
मनसा देवी माता का मंदिर
भारत के उत्तराखंड राज्य के हरिद्वार जिले में भगवान शिव की पुत्री देवी मनसा का धाम बहुत प्रसिद्ध है। जिन देवी को नागकन्या भी कहा जाता है। भक्तगण मनसा देवी को विष देवी के रूप में पूजते हैं। कहा जाता है कि यदि कोई मनसा देवी माता के 9 नामों का जाप कर ले, उसे आजीवन सर्पदंश का डर नहीं रहता।
देवी मनसा के वे चमत्कारी 9 नाम हैं:- जगदौरी, सिद्धियोगिनी, वैष्णवी, नाग भगिनी, शैवी नागेश्वरी, जरत्कारु प्रिया, आस्तिक माता, विष हरि और देवी मनसा।
भारतवर्ष में कुछ जगह ऐसा माना जाता है कि यह वही देवी मनसा हैं जिन्होंने भगवान शिव को संकट से उस समय उबारा था जब शिव जी ने समुद्र मंथन से निकलने वाला विष कंठ में धारण कर लिया था। उस समय विष पीने के कारण भगवान शिव को मूर्च्छा आ गयी थी।
कहते हैं कि तब मनसा देवी ने ही भगवान शिव को विष मुक्त करने के लिए अपने नागलोक के सम्राट, नागराज वासुकि को विष को खींच लेने का आदेश दिया था। मनसा देवी, नागराज वासुकि की बहन थी। नागसम्राट वासुकि उनको बहुत मानते थे एवं उनकी एक पिता की भांति देखभाल करते थे।
तब देवी मनसा का आदेश पाकर नाग देवता ने भगवान शिव के गले में लिपट उनके कंठ से, कुछ समय के लिए, विष को निकाल कर स्वयं धारण कर लिए था। भारत के झारखंड, बिहार और प. बंगाल आदि राज्यों में देवी मनसा का पूजन श्रावण मास में बड़े धूमधाम के साथ किया जाता है। कहते हैं कि कमल पर सवार देवी मनसा की रक्षा के लिए सर्पराज सदैव उनके साथ रहते हैं ।
मुंबा देवी माता का मंदिर
मुंबा देवी और मुंबई वासियों का वही रिश्ता है जो माँ का अपने बेटों से होता है। आज जिस समृद्ध रूप में मुंबई दिखाई देती है वह सब मुंबा देवी के ही आशीर्वाद का प्रतिफल है। मुंबई वासियों की उन्नति और विकास में माँ मुंबा देवी की असीम अनुकंपा है। जिनकी कृपा से मुंबई दिन पर दिन चमकती गई।
मुंबा देवी का मंदिर वर्ष 1737 में स्थापित हुआ। जिसके स्थान में ब्रिटिश काल में कुछ परिवर्तन हुआ। मुंबई का यह मुंबा देवी मंदिर भारत के धनी मंदिरों में से एक है़। यहाँ इस मुंबा देवी माता के मंदिर में आने वाले पॉलीटिशियन, फिल्म स्टार, उद्योगपति और अन्य भक्तगण दान के रुप में भारी धनराशि अर्पित करते हैं।
इस मंदिर में अपनी मनोकामना पूर्ण कराने के लिए अर्जी लगाने की कुछ निराली ही परंपरा है। अपनी इच्छा पूर्ण कराने के लिए इस मंदिर में रखी गयी लकड़ी पर भक्तगण अपने सिक्कों को कीलों से जड़ देते हैं। बताया जाता है़ कि यह कीलों पर जड़े हुए सिक्के रात्रि के समय देवी मुंबा के पास पहुंच जाते हैं।
ये सिक्के फरियादी की फरियाद को सुनाते हैं। जिन फरियाद को सुनकर मां मुंबा देवी अपने भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर देती है। आज मुंबा देवी मंदिर महाराष्ट्र में ही नहीं पूरे विश्व में देवी भक्तों का प्रमुख आस्था का केंद्र है।
मां चामुंडा देवी माता का मंदिर
जोधपुर का माँ चामुंडा देवी माता का मंदिर राजस्थान के निवासियों के विश्वास का प्रतिबिंब है। इतिहासकारों के अनुसार यह मंदिर लगभग 550 वर्षों से अधिक पुराना है। अपने आरंभिक काल में यह मंदिर छोटा सा था जो आस्था बढ़ने के साथ-साथ भव्य स्वरूप लेता चला चला गया। इतिहासकारों का मत है कि चामुंडा देवी माता का मंदिर राजस्थान के राजपूत राजाओं द्वारा बनवाया गया था।
यह मंदिर प्राचीन काल से ही आस्था का प्रमुख केंद्र रहा है। कहते हैं कि जो भी राजा- महाराजा माँ चामुंडा देवी के शरण में आया उसका उद्धार हुआ। माँ चामुंडा देवी ने जोधपुर में शासन करने वाले राजाओं का महल धन- वैभव से भर दिया था। चामुंडा का अर्थ होता है चंड मुंड का नाश करने वाली देवी।
चामुंडा देवी मंदिर में माँ दुर्गा की आराधना की जाती है। जिनकी शक्ति के प्रभाव से भक्तगण अपने आप को सुरक्षित पाते हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि जब वर्ष 1965 में भारत- पाकिस्तान के मध्य युद्ध हुआ तब राजस्थान राज्य के निवासियों ने अपनी सुरक्षा के लिए मां चामुंडा से विनती की। माँ चामुंडा देवी ने अपने भक्तों की पर आँच नहीं आने दी।
वैष्णो देवी माता का मंदिर
भारत के प्रमुख देवी माता के मंदिरों में से वैष्णो देवी माता मंदिर का स्थान शीर्ष पर है। जमीन से लगभग 5200 फ़ीट ऊंचे पहाड़ों पर बसी माँ वैष्णो देवी अपने सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण करने वाली माता रानी के रूप में जानी जाती हैं। वैष्णो देवी माता का मंदिर भारत के जम्मू जिले के कटरा नगर में स्थित है। जहाँ माँ वैष्णो देवी महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के रूप में विराजमान है।
कहते हैं कि इस स्थान पर माता रानी स्वयं प्रकट हुई थी, जो आज भी पिंडी के रूप में अपने भक्तों को दर्शन दे रही हैं। इस मंदिर का एक अद्भुत सत्य है कि लगभग 5200 फीट की ऊंचाई पर पहुंचने के लिए जब भक्तगण 12 किलोमीटर यात्रा कर रहे होते हैं तब उन्हें मार्ग में कहीं न कहीं माता रानी के दर्शन अवश्य मिलते हैं।
माता रानी अपने मंदिर में पहुंचने वाली भक्तों को मार्ग में ही दर्शन दे देती हैं। वह चाहे नन्ही लड़की के रूप में हो, युवती के रूप में हो अथवा किसी वृद्ध महिला के रूप में। यह भक्तों की श्रद्धा है कि वह माता रानी को पहचान पाता है या नहीं ।