शिव का रहस्य

शिव का रहस्य

महाशिवपुराण जैसे अनेक ग्रंथ जहाँ हमें शिव सागर की गहराइयों में ले जाते हैं। वहीं भगवान शिव के अनगिनत रहस्यों से परिचित कराते है़। आज भगवान शिव के रहस्यों से आपको हम परिचित करायेंगे। पशुपति नाथ की अदभुत लीला को जानकर हर कोई भगवान महाकाल के चरणों में नतमस्तक हो जाता है़। क्योंकि तीनों लोकों के स्वामी भगवान गंगा धर वास्तव में बहुत महिमामयी हैं।

जिनकी महिमा आज तक कोई जान न पाया। महादेव के त्रिशूल के वार से जहाँ दानव थर-थर काँपते थे। वहीं उनका तांडव नृत्य प्रलयंकारी है़ और उनके तीसरे नेत्र का खुलना तो पूरी सृष्टि के लिए विनाशकारी है़। अपना डमरू बजाकर सबको मंत्र मुग्ध करने वाले भोले बाबा आज भी  कैलाश पर्वत पर धूनी रमाये तपस्या में लीन हैं।

कैलाश पर्वत पर भगवान शिव के अवतरण की कथा

यह शाश्वत सत्य है़ कि जो जन्म नहीं लेता उसकी मृत्यु भी नहीं होती। त्रिनेत्रधारी भगवान शिव एक ऐसे ही भगवान हैं, जो अनादिकाल से अस्तित्व में हैं और अनंतकाल तक रहेंगे। यदि शिव इस धरती पर नहीं आते तो पृथ्वी पर बड़ी उथल-पुथल हो जाती। ब्रम्हा जी और विष्णु जी के सृष्टि निर्माण की सारी योजना विफल हो जाती।

भगवान शिव को धरती पर लाने के पीछे क्या उद्देश्य था ? हम उसकी चर्चा करेंगे। आखिर परम पिता परमेश्वर को भगवान शिव के रूप में प्रकट करने के पीछे ब्रम्हा जी और विष्णु भगवान की क्या मंशा थी। यह बड़ी रोचक कथा है़। भगवान शिव कब और कैसे इस धरती पर प्रकट हुये, यह पौराणिक घटना हर किसी को आश्चर्य चकित करने वाली है़।

हिन्दू धर्म के तीन प्रमुख देवताओं में ब्रह्मा, विष्णु और महेश अर्थात भगवान शिव का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। जिसमें ब्रह्मा जी को सृजक, विष्णु जी को रक्षक और भगवान शिव को संहारक कहा जाता है। कहा जाता है कि इस सृष्टि की रचना से भी पहले सर्वप्रथम परमेश्वर विष्णु जी के रूप में प्रकट हुए फिर उनके नाभिकमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई। योजना के अनुसार भगवान ब्रह्मा जी सृजन करते रहे और विष्णु जी संरक्षण प्रदान करते रहे।

लेकिन एक दिन ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने विचार किया कि यदि इसी तरह हम दोनों सृष्टि के लिए सृजन और रक्षा का कार्य करते रहे और बीच-बीच में विनाश नहीं हुआ तो यह जगत (ब्रह्माण्ड) असंतुलित हो जायेगा। इस ब्रह्माण्ड का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। इसलिए उन्हें अब ऐसे देव की आवश्यकता थी जो विनाशकारी देवता हों।

तब ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु ने आपस मे मंत्रणा की और योजना के अनुसार कैलाश पर्वत पर जाकर परमपिता परमेश्वर की तपस्या में लीन हो गये। कैलाश पर्वत पर जाकर ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु ने प्रणव यानी ॐ मंत्र का जाप करना आरंभ कर दिया। वह मंत्र पूरे कैलाश पर्वत पर गूंजने लगा। ॐ मंत्र के प्रभाव से कैलाश पर्वत पर एक इन्द्रधनुषी रंग बिखर गया। जिसकी आभा बड़ी दिव्य थी।

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कैलाश पर्वत पर ध्यान मुद्रा में बैठकर ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने लगभग 21 वर्षों तक ओम का उच्चारण किया। देखते ही देखते आसमान में घटायें  घिरने लगीं। बिजली कड़कने लगी। आकाशीय बिजली की आवाज इतनी तेज थी कि कैलाश पर्वत की जीव- जंतु वहाँ से भाग निकले। चारों तरफ एक भयभीत कर देने वाला वातावरण उत्पन्न हो गया था। अब तक जो  वहाँ इन्द्रधनुषी रंग बिखरा हुआ था। वह  गायब हो चुका था।

उसका स्थान नील वर्ण ने ले लिया था। अब आकाश का नीला रंग था जिसमें एक चमकदार रौशनी छिटकी हुई थी। अब कैलाश पर्वत पर कोई नहीं था। केवल ब्रह्मा जी और विष्णु जी आश्चर्य से आकाश की तरफ देख रहे थे। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि आज क्या होने वाला है। तभी आसमान में एक विशालकाय आकृति ने अपना रूप लेना आरंभ कर दिया।

इस विशालकाय आकृति के केश इतने बड़े थे कि नभ में चारों तरफ अंधेरा छा गया, क्योंकि परमपिता परमेश्वर, देवों के देव महादेव के रूप में, ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु के सामने प्रकट हो चुके थे। ब्रम्हा जी और भगवान विष्णु के मुख पर प्रसन्नता की लहर दौड़ गयी। ब्रह्मा जी और भगवान विष्णु की अपेक्षा के अनुकूल भगवान शिव की उत्पत्ति हो चुकी थी।

लेकिन भगवान शिव के केशों के कारण चारों ओर अंधकार था। तब भगवान विष्णु ने चंद्रदेव को आदेश दिया कि भगवान शिव के मस्तक पर धारण हों जायें। चंद्रदेव भगवान विष्णु का आदेश पाकर शिव के मस्तक पर धारण हो गये, जिससे चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश हो गया। यह प्रकाश था एक अभूतपूर्व शक्ति का जिसकी सृष्टि के लिए नितांत आवश्यकता थी। इस प्रकार भगवान शिव की उत्पत्ति ॐ से हुई।

देवी सती क्यों चाहती थीं कि उनका विवाह भगवान शिव से हो ?

देवी सती दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। वह बहुत सुंदर और बुद्धिमान थीं। एक दिन उन्हें स्वप्न में कैलाश पर्वत दिखाई दिया। उस कैलाश पर्वत पर भगवान शिव विराजमान थे। उनका भव्य स्वरूप देखकर देवी सती उन पर मोहित हो गईं और उन्हें ही अपना स्वामी बनाने की बात सोंची। एक दिन देवी सती ने इस बात जिक्र अपने पिता दक्ष से किया। लेकिन उनके पिता को भगवान शंकर का फक्कड़ स्वरूप पसंद नहीं था।

लेकिन सती न मानी। क्योंकि वह मन ही मन भगवान शिव को अपना वर मान चुकीं थीं। इसलिए देवी सती ने भगवान शिव की आराधना आरंभ कर दी। जब उनके पिता दक्ष प्रजापति को इस बात की जानकारी मिली तो वह अत्यंत क्रोधित हुये। उन्होंने अपनी बेटी सती को बहुत समझाने का प्रयास किया । लेकिन सती टस से मस न हुईं। वे रात- दिन भगवान शिव की तपस्या में लीन रहने लगीं।

एक दिन जब सती भगवान शिव की पूजा में तल्लीन थीं। तब उनके पिता दक्ष प्रजापति ने सोंचा कि आज वह स्वयं उनकी तपस्या भंग कर देंगे। यह सोच कर वह उस स्थान पर पहुँचे जहाँ सती आराधना कर रहीं थीं। लेकिन उस स्थान पर पहुँच कर राजा दक्ष प्रजापति ने जो कुछ देखा तो आश्चर्य चकित रह गये। उन्होंने देखा कि उनकी बेटी सती जिस स्थान पर भगवान शिव के ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का जाप कर रही है़,

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उसके चारों ओर सैकड़ों त्रिशूलों का एक गोल घेरा बना हुआ है़ और उन त्रिशूलों में से आग की ज्वाला निकल रही है़। यह दृश्य देखकर राजा दक्ष प्रजापति अत्यंत भयभीत हों गये और वापस अपने राजमहल लौट आये। कहते हैं कि सती की आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने सती को दर्शन दिये। देवी सती ने भगवान शिव से विवाह का प्रस्ताव रखा। जिसे भगवान शिव ने सहर्ष स्वीकार कर लिया और इस तरह देवी सती भगवान शिव की अर्धांगिनी बन गयीं।

तांडव नृत्य करने की प्रेरणा भगवान शिव को कहाँ से मिली ?

तांडव क्रोधित अवस्था में नृत्य करने की एक अदभुत उग्र अभिव्यक्ति है़। कहा जाता है़ कि जब भी भगवान शिव क्रोधित अवस्था में होते थे तो वह तांडव नृत्य करने लगते थे। भगवान शिव को ही तांडव नृत्य का जनक माना जाता है। अब मन में यह प्रश्न उठता है कि भगवान शिव को क्रोधित अवस्था में तांडव नृत्य करने की प्रेरणा कहां से मिली ?

वैसे तो भगवान शिव ही संगीत विद्या के जनक हैं और इसका पुराणों में खूब उल्लेख मिलता है़। इसलिए उनसे जुड़ा हुआ ॐ का शब्द स्वयं संगीत का वृहद आधार है़। फिर भगवान शिव के हाथों में डमरू स्वयं एक नाद साधना है़। भगवान शिव को तांडव नृत्य करने की प्रेरणा प्रकृति से मिली। तेज आँधी-तूफान आने के समय ऐसा लगता है़ कि प्रकृति क्रोधित हो चुकी है और उस समय वृक्षों की शाखाओं का तीव्र गति से हिलते हुये देख कर ऐसा लगता है कि प्रकृति तांडव कर रही हो ।

भगवान शिव ने नंदी बैल को ही अपना वाहन क्यों चुना ?

बहुत सारे पशु पक्षी इस धरती पर पाये जाते हैं। ऐसे में कभी-कभी मन में यह प्रश्न हो उठता है कि भगवान शिव ने नंदी बैल को ही अपना वाहन क्यों बनाया ? भगवान शिव के द्वारा नंदी बैल को ही अपने वाहन बनाने का क्या कारण था ? दरअसल भगवान शिव के द्वारा नंदी बैल को अपना वाहन चुने जाने के पीछे एक दिलचस्प कथा है। एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर घोर तपस्या में लीन थे कि तभी उसी समय दानव त्रिपुरासुर वहाँ आ गया।

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नंदी बैल ने देखा दानव त्रिपुरासुर हाथ में अस्त्र लिए भगवान शिव की ओर बढ़ रहा है। इससे पहले कि दानव त्रिपुरासुर भगवान शिव के निकट पहुँचता, नंदी बैल तेज गति से दानव त्रिपुरासुर की ओर दौड़ा । उस दिन दानव त्रिपुरासुर और नंदी बैल में घमासान युद्ध हुआ।

नंदी ने अपने सींगों के द्वारा दानव त्रिपुरासुर को बुरी तरह घायल कर दिया। दानव त्रिपुरासुर अपनी जान बचाकर भाग गया। बाद में जब भगवान शंकर को इस बात का पता लगा तो वह नंदी बैल से बहुत प्रसन्न हुए और उसे अपना वाहन बनने का सम्मान दिया ।

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