अगर आज हम आपसे यह कहें कि एक भारतीय राग गाने से आपके चारों तरफ आग पैदा हो सकती है़ तो शायद आपको हमारी बात पर विश्वास नहीं होगा। लेकिन यह बात सच है़ कि इस राग को जब प्राचीन काल में गाया जाता था तो इस राग को गाने और सुनने मात्र से व्यक्ति जलकर राख हो सकता था। संगीत विशेषज्ञ इस राग को दीपक राग कहते हैं। कहा जाता है़ कि इस राग के गाते ही दीपक स्वयं ही जल उठते थे।
इसीलिए इस राग को दीपक राग के नाम से जाना जाता है़। आज हम जानते हैं कि इस अदभुत राग के पीछे का सच! क्या वास्तव में इस राग के गाने से अग्नि उत्पन्न हो जाती थी या फिर यह केवल कोरी कल्पना है़। हमारे प्राचीन ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है़ कि इस दीपक राग को गाने से वातावरण में इतनी गर्मी पैदा हो जाती थी कि इस राग को गाने और सुनने वाले लोग उस आग की तपिश में झुलसने लगते थे।
दीपक राग से जुड़ी एक अविश्वसनीय घटना
कभी-कभी तो दीपक राग गाने से उत्पन्न अग्नि लोगों को जलाकर राख भी कर देती थी। इस बात में कितनी सच्चाई है़ इसकी चर्चा हम आगे करेंगे। दीपक राग से जुड़ी एक कहानी बड़ी दिलचस्प और अविश्वसनीय किन्तु सत्य है़। हम जानेंगे कि किस प्रकार इस राग की आग ने सम्राट अकबर के दरबार के नवरत्नों में से एक प्रसिद्ध गायक तानसेन को मौत के मुँह में पहुँचा दिया था।
यह बात उस समय की है़ जब तानसेन का अकबर के दरबार में एक विशेष स्थान था। उनकी सुरीली आवाज से पूरा राजमहल सदा गूंजता था। तथाकथित इतिहासकार बताते हैं कि अकबर, महान संगीतकार एवं गायक तानसेन को अपने निकट ही बैठाता था।
अकबर के अन्य दरबारी तानसेन से ईर्ष्या करते थे। उनकी बस एक ही इच्छा थी कि किसी प्रकार अकबर की नजरों मे तानसेन को नीचा दिखाया जाये। एक दिन अकबर के एक मुस्लिम दरबारी का संपर्क एक शास्त्रीय गायक से हुआ। जिससे बाद उसको पता चला कि संगीत में एक ऐसा भी राग है़ जिसको गाने से इंसान जल कर राख हो सकता है़। जब यह बात उस दरबारी ने दूसरे दरबारियों को बतायी तो उन्होंने मिलकर एक योजना बनायी।
योजना के अनुसार दूसरे दिन कुछ दरबारी सम्राट अकबर के पास पहुँचे और उन्होंने अकबर को बताया कि आपके दरबार की शोभा बढ़ाने वाले तानसेन जी दीपक राग का सुंदर गायन करते हैं। लेकिन इसे अच्छा कहें या बुरा! अब तक महाराज को तानसेन ने दीपक राग नहीं सुनाया है़। तानसेन जब दरबार में उपस्थित हुये तो अकबर ने तानसेन से दीपक राग सुनने की इच्छा जाहिर की।
तानसेन तुरंत समझ गये कि यह सब दरबारियों की चाल है़। वह मुझसे दीपक राग गवाकर मेरा अहित करना चाहते हैं। गायक तानसेन ने अकबर से दीपक राग गाने से मना कर दिया। लेकिन अकबर तानसेन से दीपक राग सुनने के लिए अड़ गया। दरअसल उस समय मूढ़ अकबर को यह पता नहीं था कि दीपक राग इतना खतरनाक है़। जिसके गाते ही अग्नि वर्षा होने लगेगी।
तानसेन दीपक राग गाने को तैयार हुए
अगर हम दीपक राग को प्राचीन काल की अग्नि मिसाइल कहें तो गलत न होगा। तानसेन अजीब दुविधा में फंस गये थे कि अगर वो अकबर को मना करते हैं तो सनकी अकबर उन्हें मृत्यदंड दे देगा। और यदि वे दीपक राग गाते हैं तो उसके बाद पैदा होने वाली अग्नि उन्हें जलाकर राख कर सकती है़।
तानसेन ने बहुत विचार के बाद एक उपाय निकाला ताकि दीपक राग गाने से वातावरण में उत्पन्न होने वाली आग से बचा जा सके। तानसेन ने दीपक राग गाते समय अपनी बेटियों को भी दरबार में बुलाया। उनकी बेटियाँ अपने पिता तानसेन को किस प्रकार दीपक राग गाने से निकलने वाली आग से बचा सकतीं थीं। यह बात हम आपको बाद में बताएंगे।
दिन और समय निश्चित किया गया। जिस दिन गायक तानसेन को दीपक राग सुनाना था। उस दिन दरबार लोगों से भरा हुआ था। तानसेन की बेटियाँ भी दरबार में उपस्थित थीं। निश्चित समय पर तानसेन ने दरबार में दीपक राग गाना आरंभ किया। वह जैसे- जैसे दीपक राग गाते जा रहे थे। वैसे -वैसे दरबार में चारों तरफ गर्मी बढ़ती जा रही थी। शीत काल में भी ग्रीष्म का आभास हो रहा था।
दरबार में सभी लोग पसीने-पसीने हो रहे थे। दीपक राग के प्रभाव से वातावरण में ऊष्मा इतनी अधिक थी कि राजमहल के दीपक स्वयं जल उठे। अकबर सहित दरबार के सभी लोग दीपक राग के गायन का चमत्कार देखकर आश्चर्य चकित रह गये। अब दीपक राग के गाने से चारों तरफ उत्पन्न आग की तपिश लोगों के लिए असहनीय हो रही थी ।
अकबर के दरबार में तानसेन ने जिस राग को गाया था उसके प्रभाव को कम करने के लिए उनकी पुत्री ने कौन सा राग गाया था
दरबारी दीपक राग से वातावरण में पैदा होने वाली गर्मी से बैचैन हो रहे थे। दीपक राग गाने वाले तानसेन के शरीर के अंदर भी अग्नि प्रज्वलित हो चुकी थी। वह दीपक राग की आग में झुलसते जा रहे थे। उनका शरीर काला पड़ता जा रहा था कि तभी तानसेन की बेटियों ने राग मेघ मल्हार गाना आरंभ कर दिया। कहा जाता है़ कि राग मेघ मल्हार गाने से वर्षा होने लगती है़।
जैसे ही तानसेन की बेटियों ने राग मेघ मल्हार गाना शुरू किया। वैसे ही आसमान में बादल उमड़ने घुमड़ने लगे और मूसलाधार बारिश होने लगी। मेघ मल्हार गाने से होने वाली वर्षा ने सारे वातावरण को शीतल कर दिया और इस दीपक राग के कारण जलते हुये तानसेन की जान बच गयी। दरबार में तानसेन और उनकी बेटियों की वाह -वाह होने लगी। तानसेन से ईर्ष्या रखने वाले दरबारियों के मंसूबों पर राग मल्हार ने पानी फेर दिया था।
इतिहास साक्षी है़ कि भारतीय गीत-संगीत की उत्पत्ति बहुत जप-तप के बाद हुई है़। इसीलिए हमें उसका चमत्कारिक प्रभाव देखने को मिलता है़। कहा जाता है़ कि दीपक राग की उत्पति भगवान शिव के मुख से हुई है़। वैसे तो संगीत के रचयिता ही भगवान्ब शिव हैं। बताया जाता है़ कि दीपक राग दीपावली के दिन दोपहर के बाद गाया जाता था। जिससे प्रभाव से राजमहल में सजाये गये दीपक स्वयं जगमगा उठते थे।
लेकिन कुछ समय बाद दीपक राग से होने वाले दुष्प्रभाव को देखते हुये उसे गाना बंद कर दिया गया । कहा जाता है़ तानसेन इस राग को गाने वाले अंतिम व्यक्ति थे। यह भी कहा जाता है़ दरबार में दीपक राग गाये जाने से तानसेन की भीतरी काया में आग लग चुकी थी। जिससे उनकी सेहत गिरती गयी। दीपक राग उनके लिए काल का फांस बन गया। कहा जाता है़ कि तानसेन की मौत का कारण दीपक राग ही था। सात सुरों से निर्मित यह राग वास्तव में जान लेवा था।