बड़ा विचित्र है यहाँ सब कुछ, इस मंदिर में एक नाग रोज शिवलिंग के दर्शन के लिए आता है। वह नाग यहाँ आता ही नहीं, बल्कि घंटों इस मंदिर के भगवान के सामने बैठा रहता है जैसे की वह भगवान शिव से अपनी कोई बात कह रहा हो। लोगों को आश्चर्य लगता है कि यह नाग कौन है? कहाँ से आता है? क्यों आता है? इसके पीछे क्या रहस्य है?
यह वह अदभुत मंदिर है जहाँ भक्तों के दर्शन को पाँच घंटों के लिये इसलिये रोक दिया जाता है। क्योंकि उन पाँच घंटों के दौरान एक नाग रोज शिव मंदिर में आता है।
वह काफी समय तक शिव मंदिर में बैठा रहता है ऐसा लगता है जैसे कि वह भगवान शिव की पूजा कर रहा हो और फिर चला जाता है। यह एक दिन का किस्सा नहीं, इस मंदिर की रोज की घटना है। लोग अचंभित हैं कि इस रहस्यमय नाग के पीछे का सच क्या है?
कहाँ है यह अद्भुत मंदिर
यह अदभुत मंदिर उत्तर प्रदेश के आगरा के सैय्या थाना क्षेत्र के सलेमाबाद गाँव में स्थित है। लोग इस शिव मंदिर को नाग वाले मंदिर के नाम से भी जानते हैं। बड़ा ही विचित्र होता है यहाँ का नज़ारा, जब इस मंदिर के भगवान के दर्शन करने आये लोग उस नाग को भी प्रणाम करते हैं जो यहाँ रोज आता है।
स्थानीय लोगों के अनुसार इस नाग से संबंधित तरह-तरह की कहानियाँ प्रचलित हैं। कुछ ग्रामवासी इस मंदिर में आने वाले नाग की बड़ी दिलचस्प कथा सुनाते हैं। वे कहते हैं कि हमारे बाप-दादा बताते हैं कि इस शिव मंदिर में नाग के आने का सिलसिला बहुत पुराना है।
आरंभ में पहले दिन जब यह नाग मंदिर में आया तो यहाँ लोगों में हड़कंप मच गया। दूर-दूर तक गाँव में हल्ला मच गया कि एक नाग शिव मंदिर आया है। लेकिन उसके दूसरे दिन से वह नाग रोजाना मंदिर आने लगा।
क्या है इस नाग और मंदिर की कहानी
स्थानीय लोगों के मन में डर बैठ गया कि कहीं यह नाग लोगों का अहित न कर दे। यह नाग इस मंदिर में रोज क्यों आता है इस बात को जानने के लिये दूर गाँव से एक संत बुलाये गये। वे संत उस नाग को देखकर उसकी वास्तविकता जानने के लिये ध्यान मुद्रा में बैठ गये।
वे संत लगभग पाँच घंटों तक ध्यान मुद्रा में बैठे रहे। ध्यान के पश्चात उन्होनें ग्रामवासियों को उस नाग से संबंधित जो कथा सुनाई वह आश्चर्य से भरी हुई थी।
उन संत ने बताया कि प्राचीन काल में इस शिव मंदिर के पुजारी पंडित दया शंकर नाम के व्यक्ति हुआ करते थे। वह दिन-रात भगवान शंकर की पूजा में तल्लीन रहते थे। उन्होंने इस मंदिर के करीब ही अपनी कुटिया बना ली थी। एक दिन आँधी आयी और उनकी कुटिया का छप्पर हवा से उड़ गया।
पुजारी पंडित दया शंकर अपनी कुटिया का नया छप्पर बनाने के लिए जंगल से कुछ लकड़ियाँ, घास-फूस आदि तोड़ लाये। बड़ी मेहनत-मशक्कत के बाद उन्होंने अपनी कुटिया का छप्पर तैयार कर लिया। उसे बस अब कुटिया के ऊपर लगाना था।
पुजारी को अपना छप्पर बनाते-बनाते सुबह से रात हो चली थी। अंधेरा होने लगा था जिसके कारण पुजारी पंडित दया शंकर को अब कुछ कम दिखाई दे रहा था। लेकिन उन्होनें सोंचा कि आज ही अपनी कुटिया ठीक कर लूं।
उन्होनें तैयार किये गये छप्पर को कुटिया के ऊपर लगाया। अब छप्पर बांधने के लिए एक मोटी रस्सी की आवश्यकता थी। उन्हें आसपास कोई रस्सी नजर नहीं आ रही थी कि तभी उनकी नज़र एक मोटी काली रस्सी पर पड़ी।
उन्होंने वह रस्सी उठा ली और उसी से अपना छप्पर कसकर बांध दिया। सुबह होने पर जो कुछ उन्होंने देखा तो आश्चर्यचकित रह गये। छप्पर बांधने के लिए उन्होंने जिस काली मोटी रस्सी का उपयोग किया था वह रस्सी नहीं बल्कि एक नाग था।
जिसे उन्होंने रात के अंधेरे में रस्सी समझकर बांध दिया था। वह नाग मर चुका था तभी आकाशवाणी हुई कि पुजारी तुमने जिस नाग को मार डाला है वह कोई साधारण नाग नहीं बल्कि नागों का देवता था।
पुजारी का श्राप
तुमने उसे मारने का पाप किया है, इसलिये तुम्हें श्राप दिया जाता है कि तुम भी अगले जन्म में नाग योनि में जन्म लोगे। पुजारी पंडित दया शंकर मंदिर में जाकर बहुत रोये।
उन्होनें अपने किये की क्षमा मांगी कि अनजाने में मुझसे नाग देवता के मारने का पाप हो गया लेकिन प्रभु का निर्णय अटल था। श्राप के अनुसार इस मंदिर के पुजारी पंडित दयाशंकर ने अगले जीवन में सर्प योनि में जन्म लिया।
शिव मंदिर में आने वाला नाग दरअसल पुजारी पंडित दया शंकर हीं हैं जो पूर्व जन्म की भांति इस मंदिर में आते हैं और पूजा अर्चना करते हैं। वह भगवान शिव के शिवलिंग से लिपट कर घंटों रोते हैं कि हे प्रभु मुझे इस नाग योनि से मुक्त कर दो। हे भगवान, मुझे अपने श्राप से मुक्ति दे दो ताकि मैं फिर मनुष्य योनि प्राप्त कर सकूं।
रहस्य अभी तक है अनसुलझा
इस संत वाली कथा को सच मानें या झूठ लेकिन इस शिव मंदिर में एक ही नाग का नित्य मंदिर आना और शिवलिंग के पास घंटों रुकना ; यह बताता है कि इस मंदिर का नाग से रिश्ता पुराना है। जिस लगाव के कारण ही वह नाग यहाँ रोज आता है। दूर-दूर से लोग, भक्तगण इस मंदिर के अदभुत दृश्य को देखने आते हैं। इस मंदिर में भगवान और भक्त का अदभुत मिलन देखते ही बनता है।
कुछ लोगों का यह कहना है कि यह नाग उस दिन तक इस मंदिर की चौखट पर अपना माथा टेकेगा जब तक की उसे मनुष्य योनि का वरदान नहीं मिल जाता। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि मंदिर में आने वाले नाग ने अभी तक किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया।
लोगों की इस नाग के प्रति भी श्रध्दा उत्पन्न हो गयी है। लोग इस नाग को शिव जी का परम भक्त मानते हैं। इस मंदिर में आने वाले श्रध्दालु इस नाग के समक्ष नतमस्तक हो जाते हैं।