भारत ही नहीं, पूरा विश्व अनेक चमत्कारों से भरा पड़ा है। कुछ चमत्कार पौराणिक गाथाओं में पढ़ने को मिलते हैं तो कुछ आज भी हमें प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। आज हम उन देवी माँ के चमत्कारिक धाम की बात करने जा रहें हैं जहाँ देवी माँ, अग्नि की ज्वाला के रूप में प्रकट होती हैं।
जी हां, यह भारत की वह पहाड़ों वाली माता हैं, जो आग की लपटों के रूप में अपने दर्शन देती हैं। यह बड़े अचरज की बात है लेकिन है बिल्कुल सच। यह वह अदभुत मंदिर है जहाँ देवी माँ, अग्नि की ज्वाला के रूप में भक्तों के सामने आती हैं।
यह माता का वह धाम है जहाँ माह में दो बार स्वयं ही अग्नि प्रज्वलित होती है और यह आग की यह लपटें 20 फीट तक ऊँची हो जाती हैं। जब इस मंदिर में देवी, अग्नि की ज्वाला के रूप में प्रकट होतीं हैं तो यहाँ का यह दृश्य बहुत रहस्यमय लगता है।
कहते हैं कि ज्वाला के रूप में प्रकट होने वाली देवी अपने भक्तों के सारे दुखों, रोगों को जलाकर राख कर देती हैं। यहाँ दर्शन को आने वाले दर्शनार्थी उस समय का बेचैनी से इंतजार करते हैं कि कब माता अपने विकराल रूप में आ कर धधकती हुई अग्नि के रूप में सामने आती हैं।
कहाँ है यह मंदिर
यह अदभुत मंदिर उदयपुर शहर से लगभग 60 किलोमीटर दूर कुराबड़ बम्बोरा मार्ग पर अरावली की विस्तृत पहाड़ियों के मध्य स्थित है। माता के इस धाम को ईणाना माता के मंदिर के नाम से जाना जाता है। यह मंदिर मेवाड़ के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। संपूर्ण मेवाड़ ईणाना माता को अपनी इष्ट देवी मानता हैं।
राजपूत और भील जनजाति के लोग ईणाना माता को अपना संरक्षक मानते हैं। मंदिर में अचानक स्वयं उत्पन्न होने वाली ऊंची-ऊंची लपटें इस धाम को रहस्यमय बनाती हैं। कहा जाता है कि हज़ारों वर्षों पूर्व अरावली पहाड़ी पर कोई साधु तपस्या करते थे, जो देवी के अनन्य भक्त थे।
क्या है इस मंदिर की कहानी
इस स्थान पर तपस्या करने वाले साधुओं को इस क्षेत्र के आसपास विचरण करने वाले असुर जाति के लोग बहुत सताते थे। तब बहुत दुखी होकर उन साधु ने देवी माँ से प्रार्थना की कि हे माँ, हमारी इन असुरों से रक्षा करो।
देवी माँ ने उन साधु की विनती सुन ली। जब साधु की तपस्या को भंग करने के लिए असुर वहाँ आये तो एक चमत्कार हुआ। उन साधु के आस-पास अचानक स्वयं ही उँची-उँची विकराल ज्वाला निकलने लगी।
जिसे देखकर उन साधु की तपस्या को भंग करने लिये आये सभी असुर जाति के लोग अत्यंत भयभीत हो गये। इससे पहले की वह इधर-उधर भागते। उन अचानक निकली भीषण आग की लपटों नें उन असुरों को जलाकर भस्म कर दिया।
साधु ने अपनी रक्षा के लिये माता का धन्यवाद किया और उनसे विनती की कि हे माँ, आप इसी तरह बीच-बीच में अग्नि के रूप में प्रकट होती रहो ताकि हम साधु गण इन असुरों के अत्याचार से बचे रहें।
अरावली पर्वत पर बसने वाली ईणानी माता ने उन साधु की इस विनती को सहर्ष स्वीकार कर लिया। उस दिन के बाद से इस स्थान पर अग्नि की ज्वाला स्वयं प्रकट होने लगी। लोगों का मानना है कि यह अग्नि माता की स्वरूप हैं जो आग की लपटों के रूप में हमें दर्शन देती हैं, और आसुरी प्रवृत्ति के लोगों को, इस स्थल से दूर रहने की चेतावनी भी देती हैं।
यहाँ माता के आशीर्वाद से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है
ऐसी मान्यता है कि जब कोई भी भक्त इन आग की लपटों के निकट पहुँच कर उसकी ऊष्मा को ग्रहण करता है तो माता के आशीर्वाद से उन भक्तों के सारे रोग-शोक नष्ट हो जाते हैं। इस चमत्कारिक धाम पर उस समय भारी भीड़ एकत्र हो जाती है जब माता अग्नि के रूप में दर्शन देती हैं।
उस समय दूर-दूर के लोग, जो किसी रोग से पीड़ित हैं अपनी उपस्थिति अवश्य दर्ज कराते हैं। ऐसी मान्यता है कि अचानक उत्पन्न होने वाली अग्नि की ज्वाला के सम्मुख जो कोई भक्त खड़ा हो जाता है तो माँ उस पर अपनी कृपा अवश्य बरसाती है।
उस प्रकट हुई अग्नि की चमत्कारिक ऊष्मा से उसके बुरे ग्रह कट जाते हैं और वह रोग-शोक से मुक्त हो जाता है। अरावली पहाड़ियों पर स्थित ईणाना माता को यदि हम मनौती पूर्ण करने वाली माता कहें तो अधिक अच्छा होगा।
यहाँ त्रिशूल और झूला चढ़ाने की मान्यता है
ऐसा कहा जाता है कि जो कोई भक्त माता के दर्शन को आता है तो इक्यावन दिनों के अंदर उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है। यहाँ मनौती पूरी होने पर त्रिशूल चढ़ाने की परंपरा है। इस शक्तिपीठ पर लगे लाखों त्रिशूल भक्तों की माता के प्रति अपनी श्रद्धा को दर्शाते हैं।
यहां यह असंख्य त्रिशूलों के मध्य से निकलने वाली आग की लपटों का दृश्य बहुत आश्चर्य से भरा होता है। यह वह समय होता है जब भक्त अपनी माता के चमत्कार को देखकर नतमस्तक हो जाते हैं । इस धाम की ममतामयी माता अपने उन भक्तों का भी कल्याण करती हैं जो संतानविहीन हैं।
शक्तिपीठ में आने के पश्चात उनके घरों में खुशियां आ जाती हैं क्योंकि उन्हें अपने मनौती के अनुसार संतान की प्राप्ति हो जाती है। संतान प्राप्ति की मनौती पूरी होने के पश्चात यहां झूला चढ़ाने की परंपरा है। इस धाम में माँ को उपहार स्वरूप चढ़ाये गये झूलों सें पूरा मंदिर भरा पड़ा है।
इस स्थान पर माता खुले आसमान के नीचे विराजमान है क्योंकि इस धाम में हर महीने आग की ऊँची-उँची लपटें निकलने के कारण देवी को मंदिर में स्थापित नहीं किया जा सका है।
समय-समय पर अग्निमाता के रूप में प्रकट होने के कारण यहाँ भक्तों द्वारा चढ़ायी गयीं भेंटें, माँ भस्म के रूप में स्वीकार करती हैं। यह माँ का प्रताप ही है कि ईणाना माता को अपनी इष्ट देवी मानने वाले मेवाड़ के लोग धन और यश से परिपूर्ण हैं।
अरावली के पहाड़ों पर प्रकट होने वाली यह माता अपने भक्तों के कल्याण के लिये ही आयीं हैं। इस अरावली पर्वत पर आग की ज्वाला का अचानक प्रकट होना वास्तव में आश्चर्य का विषय है।
वैज्ञानिकों ने भी इस अचानक उत्पन्न होने वाली अग्नि के कारणों की तलाश करने की बहुत कोशिश की लेकिन नाकाम रहे। उन्होंने भी इसे ऊपर वाले का चमत्कार मान लिया जिसके इशारे पर यह सृष्टि चल रही है ।