जब तुलसीदास जी ने पेड़ के प्रेत को प्रसन्न कर लिया और हनुमान जी के दर्शन किये |

जब तुलसीदास जी ने पेड़ के प्रेत को प्रसन्न कर लिया और हनुमान जी के दर्शन किये जी हाँ, हम उन्हीं गोस्वामी तुलसी दास जी की बात कर रहे हैं जिन्होनें श्री राम चरित मानस की रचना की थी। यदि यह कहा जाये कि श्री राम चरित मानस वह कालजयी रचना है जिसे पढ़ने मात्र से कलयुग में भी चमत्कार होने लगते हैं तो अतिशियोक्ति नहीं होगी।

इस महान रचना को सृजित करने के लिये तुलसी दास जी को अपने प्रभु श्री राम जी एवं पवनसुत हनुमान जी से प्रेरणा मिली थी। क्या आपको मालूम है़ कि तुलसी दास जी को हनुमान जी के दर्शन कराने में एक प्रेत ने उनकी सहायता की थी? जिस प्रेत ने उनकी सहायता की, वह एक पेड़ पर रहता था।

यह एक बड़ी दिलचस्प कहानी है। जब तुलसी दास जी से एक पेड़ का प्रेत प्रसन्न हो गया। तब उस प्रेत ने तुलसीदास जी की कई मनोकामनायें पूर्ण करायीं। वह किस पेड़ का प्रेत था जिसे तुलसीदास जी ने प्रसन्न किया?

आखिर वह क्या बात थी जिसके कारण उस पेड़ का प्रेत इतना प्रसन्न हुआ कि उसने तुलसी दास जी को भगवान के दर्शन करा दिये? आइये जानते हैं कि क्या है वह अदभुत कथा। गोस्वामी तुलसीदास जी नित्य प्रातः भ्रमण के लिए घर से निकलते थे।

एक दिन भ्रमण करते समय उन्होंने देखा कि रास्ते में बबूल की तरह दिखने वाला एक पेड़ सूख रहा है। उन्हें उस सूखते हुए पेड़ को देखकर बड़ा कष्ट हुआ। उन्होंने सोचा कि इस पेड़ को जीवनदान दिया जाना चाहिए। दरअसल वह पेड़ जल न मिलने के कारण सूख रहा था।

तुलसी दास जी ने निश्चय किया कि वह इस सूखते हुये वृक्ष को फिर से हरा-भरा करेंगे। उस पेड़ के आस पास जल का कोई स्रोत नहीं था। तब उन्होनें निश्चय किया कि वह अपने घर से जल लाकर उस सूखते हुये पेड़ को सींचेगे।

अब तुलसीदास जी जब भी नित्य भ्रमण के लिए निकलते तो वह अपने साथ एक जल का कमंडल भी रखते थे। यह जल उनके भ्रमण मार्ग के उस वृक्ष के लिए था, जो सूख रहा था। वह नित्य उस सूखते हुये वृक्ष को जल देने लगे।

उन्होंने उस पेड़ के आसपास की गंदगी और झाड़-झंकाड़ भी हटा दी। कुछ ही दिनों में गोस्वामी तुलसीदास जी की मेहनत रंग लायी और वह सूखा हुआ पेड़ फिर से हरा-भरा होने लगा। उस पेड़ के हरा-भरा होने पर पता चला कि वह पेड़ कीकर का था। उस पेड़ पर एक प्रेत रहता था। गोस्वामी जी के अच्छे आचरण के कारण वह प्रेत उन पर प्रसन्न हो गया था।

कहते हैं कि एक दिन प्रातःकाल के समय गोस्वामी तुलसीदास जी जब उसी वृक्ष के निकट ही बैठे थे कि तभी उस पेड़ का प्रेत गोस्वामी तुलसीदास जी के सामने आ गया। वह तुलसी दास जी से बोला कि हे महात्मा, मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ।

मैं इसी कीकर के पेड़ पर रहता हूं। पानी के अभाव में यह पेड़ लगभग मृतप्राय हो गया था, लेकिँन आप की देखभाल से इसने पुनः जीवन पा लिया। हे महात्मा, आपने मेरा आवास नष्ट होने से बचा लिया।

मैं आपसे बहुत प्रसन्न हूँ, यदि आपकी कोई मनोकामना हो तो मुझे बतायें। मैं आपका मनोरथ सिद्ध करने में आपकी सहायता करना चाहता हूँ। तुलसी दास जी ने उस प्रेत से कहा कि तुम मेरी सहायता किस प्रकार कर सकते हो? तुम तो खुद ही प्रेत योनि में भटक रहे हो? तब उस प्रेत ने बताया कि मैं मनुष्य योनि में एक सिद्ध साधु था, हो सकता है़ कि मेरी पूजा-पाठ का लाभ आपको मिल जाये।

प्रेत की बात सुनकर तुलसी दास जी को यह विश्वास हो गया कि यह प्रेत कोई भली आत्मा है़, हो सकता है़ वह मुझे मेरे प्रभु दर्शन का कोई मार्ग दिखा दे। इसीलिए तुलसी दास जी ने अपने मन की बात उस प्रेत को बता दी। गोस्वामी तुलसीदास जी ने उस प्रेत को बताया कि वह श्री राम और हनुमान जी के परम भक्त हैं। उन्होंने उस प्रेत से भगवान श्री राम और हनुमान जी के दर्शन कराने की बात कही।

उस प्रेत ने तुलसीदास जी से कहा कि हे महात्मा, मैं आपकी इस मनोकामना को अवश्य पूर्ण कराऊंगा। कहते हैं कि उस प्रेत ने गोस्वामी तुलसीदास जी की हनुमान जी के दर्शन कराने में सहायता की।

तुलसीदास जी को जब हनुमान जी के दर्शन हुए। तब हनुमान जी से उन्होंने श्री राम जी के दर्शन कराने की बात कही। जिसके बाद गोस्वामी तुलसीदास जी को श्री राम जी के भी दर्शन हुए। भगवान के दर्शन होने के पश्चात उन्हें श्री रामचरितमानस की रचना करने की प्रेरणा प्राप्त हुई।

आपको जानकर यह आश्चर्य होगा कि भगवान श्री राम से प्रेरणा पाकर लिखी जाने वाली पुस्तक राम चरित मानस दैवीय प्रभाव दिखाती है। किसी संकट के समय इसका पाठ करने से भगवान राम उससे मुक्ति दिलाते हैं। ब्रिटिश काल में भारत से मॉरीशस भेजे जाने वाले मजदूर अपने साथ जिस पुस्तक को ले गये थे वह राम चरित मानस ही थी।

उस अपरिचित नये देश में राम चरित मानस ही उन मजदूरों की सच्ची मित्र थी। जब भी वहाँ उन मजदूरों का मनोबल टूटता था तो वह इसी तुलसी दास जी के द्वारा रचित राम चरित मानस की चौपाइयाँ गाया करते थे। जिससे उन्हें उन दुख भरे पलों में मानसिक बल और आत्म सुख मिलता था।

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