बरेली के सुभाष नगर में एक परिवार किराये पर रहता था। परिवार में पति-पत्नी और दो बच्चे थे। परिवार का मुखिया गोवर्धन एक रिक्शा चालक था। वह ऑटो रिक्शा चलाकर अपना और अपने परिवार का पालन पोषण करता था। लेकिन कोरोना वायरस के बढ़ते प्रकोप के कारण जब पूरे देश में लॉक डाउन हो गया। तब मजबूरन गोवर्धन का रिक्शा खड़ा हो गया।
गोवर्धन कभी घर के हालात देखता तो कभी अपनी खड़ी हुईं आटो देखता। वह सोंचता रहता कब लॉक डाउन खत्म होगा ओर कब वह फिर से पैसा कमाने निकलेगा? घर की आर्थिक दशा दिन पर दिन खराब होती जा रही थी। बेरोजगारी में उसके दिन बड़े मायूसियत भरे गुजर रहे थे, क्योंकि गोवर्धन को आने वाले कल की चिंता थी कि जब उसके पास रखा थोड़ा बहुत धन भी खर्च हो जायेगा, फिर उसे कौन उधार देगा?
बिना रोकड़ के लाला राशन भी नहीं देगा, और फिर परिवार का पालन पोषण कैसे होगा? अंततः वही हुआ जिसका डर था। धीरे-धीरे घर पर रखा रुपया-पैसा सब खत्म हो गया। घर का सारा राशन आदि भी समाप्त होने लगा। धीरे-धीरे भुखमरी की नौबत आ गई। घर में बनाने-पकाने के लिए कुछ भी न बचा।
उस रात गोवर्धन की पत्नी को इस चिंता में नींद नहीं आई कि कल सुबह को बच्चों को क्या खाने को देगी? घर में अन्न का एक दाना भी नहीं था। बार-बार वह अपने बिस्तर पर करवटें बदल रही थी। लेकिन आंखों से नींद गायब थी कि कल सुबह जब बच्चे भूखे होकर खाने को कुछ माँगेंगे तो वह खाने को क्या देगी? इसी चिंता में रात गुजरती जा रही थी।
काफी कोशिश के बावजूद नींद न आने पर गोवर्धन की पत्नी छत पर आ गई। रात के 3:00 बज रहे थे। एकाएक उसने अपने दोनों हाथ आसमान की तरफ उठाये ओर बोली ‘रहम करो प्रभु, हम पर। घर में कल बच्चों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है। हे भगवान् मेरी मदद करो।’ गोवर्धन की पत्नी यह सब कहते कहते फफक-फफक कर रो पड़ी।
अपनी बात खुले आसमान के नीचे कहने के बाद उसे न जाने क्यों ऐसा महसूस हो रहा था कि उसका मन अब हल्का हो गया है वह जाकर फिर अपनी चारपाई पर लेट गई। दूसरे दिन सुबह-सुबह किसी ने गोवर्धन का दरवाजा खटखटाया। गोवर्धन ने दरवाजा खोला तो देखा कि दरवाजे पर पीले वस्त्र धारण किये एक सज्जन थे।
वह मुंह पर मास्क लगाए हुए खड़े थे। उन्होंने बताया कि पीपल के पेड़ के सामने रहने वाले सेठ जी जरूरतमंदों में राशन बांट रहे हैं। यह राशन-सब्जी उन्होंने ही आपके लिए ही भेजी है। अंधे को क्या चाहिए दो आँखें। राशन पाकर गोवर्धन को लगा कि उसे गड़ा हुआ धन मिल गया है। गोवर्धन की पत्नी आगंतुक की सारी बात सुन रही थी। वह दौड़ कर छत पर गई और उसने ईश्वर को धन्यवाद दिया।
प्रभु ने ही उन्हें भूखों मरने से बचा लिया। फिर उनके परिवार के मदद का यह सिलसिला रुका नहीं। 10- 10 दिन बाद वही व्यक्ति राशन-सब्जी देकर जाने लगा। एक दिन गोवर्धन ने उसके पैर छूने चाहे, लेकिन उसने मना कर दिया और बोला कि धन्यवाद ही देना हो तो सेठ जी को देना जो यह राशन भेज रहे है।
धीरे-धीरे लॉकडाउन अनलॉक में बदल गया। आटो को सड़क पर चलने की अनुमति मिल गयी। गोवर्धन जब पहली बार अपना ऑटो रिक्शा लेकर घर से निकला तो उसने सोचा कि सबसे पहले पीपल के पेड़ के सामने वाले सेठ जी को धन्यवाद देते हैं, जिन्होंने लॉकडाउन के दौरान सहायता करके मुझे और मेरे परिवार को भूख से मरने से बचा लिया।
गोवर्धन ने पीपल के पेड़ के सामने अपना ऑटो खड़ा किया और सेठ जी को बंगले की डोर बेल बजाने लगा। काफी देर इंतजार करता रहा लेकिन उस बंगले से कोई भी नहीं निकला। वहां पास से निकलने वाले एक सज्जन ने जब बंगले की डोर बेल बजाते गोवर्धन को देखा उसने पूछा किससे मिलना है ?
गोवर्धन ने बताया कि इस बंगले के सेठ जी से मिलना है। गोवर्धन को उस व्यक्ति ने जो कुछ बताया वह चौंकाने वाला था। उसने बताया कि इस बंगले में कोई नहीं रहता 5 वर्ष पहले इस बंगले के सेठ जी लंदन में जाकर बस गए हैं। अब गोवर्धन का माथा ठनका। वह सोच रहा था कि फिर वह कौन था जो लॉकडाउन में उनके लिए भगवान बन कर आया था।