मंदिरों का गढ़ उत्तर प्रदेश का ज़िला प्रयागराज, जहां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम-स्थल की ओर स्नान करने के लिये जाते समय बढ़ते हुए कदम पल भर को ठिठक कर रुक जाते हैं, क्योकि रास्ते में कुछ ऐसा मंजर दिखाई देता है जो अदभुद है और आश्चर्य से भरा हुआ है। यहाँ दिखाई देता है एक ऐसा हनुमान मंदिर, जहाँ बजरंग बली धरती पर लेटे हुये हैं।
हनुमान जी यहाँ ऐसी अवस्था में क्यों नज़र आ रहे हैं? उनके साथ ऐसी क्या घटना घटी कि वह पृथ्वी पर लेट गये? लेटे हुये हनुमान जी की मूरत देखकर मन अनेक जिज्ञासाओं से भर उठता है, क्योंक़ि भारत वर्ष में हनुमान जी के जो भी मंदिर हैं उसमें पवनसुत या तो खड़े हुये हैं अथवा बैठी हुई दशा में उनकी मूर्ति स्थापित है।
लेकिन यहां प्रयागराज में संगम तट के निकट बजरंगबली हनुमान जी शयन अवस्था में हैं। देश भर के अनेकों मंदिरों में दर्शन के पश्चात जब हम यहाँ हनुमान की लेटी हुईं मूर्ति देखते हैं, तो मन में अनेकों सवाल उठते हैं। जैसे यहां इस प्रकार मंदिर में हनुमान जी की विशालकाय मूर्ति धरती पर क्यों पड़ी हुई है?
यहाँ पल भर के लिये हनुमान जी की मूर्ति को इस दशा में देखकर मन विचलित हो उठता है, कि सर्वशक्तिमान मारुति नंदन यहाँ शक्तिहीन होकर क्यों लेटे हुये हैं? इसके पीछे की क्या कहानी है? क्या वास्तविकता है?
ऐसा तो नहीं है कि यहाँ हनुमान जी की लेटी हुईं मूरत की स्थापना ही की गयी हो या शायद कुछ अलग करने की मंशा के कारण मंदिर में मूर्ति को खड़ी न स्थापित कर उसे लेटा दिया गया हो अथवा नदियों के सैलाब ने मूर्ति की यह दशा कर दी हो।
जब हमने स्थानीय जानकारों से विस्तार से तफ्तीश की तब मामले के तह तक पहुँच सके। इस मंदिर में हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा के कारण की कथा सचमुच बड़ी अविश्वसनीय लगती है, क्योंकि लेटे हुये हनुमान जी के रहस्य के पीछे जो कहानी छिपी हुई है वह कहानी अनोखी है। यह वह कहानी है जब संकट मोचन हनुमान जी खुद संकटग्रस्त हो गये थे। उनके प्राण संकट में पड़ गये थे।
बात उस समय की है जब भगवान् श्री राम लंका पर विजय हासिल कर वापस प्रयाग संगम तट पर आये थे। लंका पर अपनी विजय का परचम लहराने के बाद श्री राम, लक्ष्मण जी, सीता जी और हनुमान जी सहित प्रयाग में ऋषि भारद्वाज के आश्रम पर आये थे। यहां आने के बाद हनुमान जी बहुत अस्वस्थ हो गये और अत्यंत शारीरिक पीड़ा से ग्रस्त हो गए।
उनकी पीड़ा इतनी तीव्र थी कि वे मरणासन्न होकर धरती पर गिर पड़े। बजरंगबली की ऐसी अवस्था देखकर श्री राम जी और सीता जी अत्यंत चिंतित हो उठे। क्योंकि उनके सामने ही उनके परम भक्त हनुमान असहनीय दर्द से कराह रहे थे। पीड़ा सहते-सहते हनुमान जी मरणासन्न अवस्था में पहुँच गये थे।
तो प्रभु को उनके प्राण बचाने के लिये कोई तो मार्ग अपनाना ही था। तब सीता जी को एक उपाय सूझा उन्होंने अपने सुहाग के प्रतीक सिंदूर को औषधि के रूप में प्रयोग किया। सीता जी ने मरणासन्न पड़े हनुमान जी पर लाल सिंदूर को छिड़क दिया। हनुमान जी पर सिंदूर छिड़कते ही चमत्कार हो गया।
हनुमान जी पीड़ा मुक्त हो गए और उनकी उखड़ती हुईं सांसे वापस लौट आयी। इस प्रकार यह है यहाँ के लेटे हुए हनुमान जी की कहानी, जिसमें सीता जी ने अपनी चुटकी भर सिंदूर से हनुमान जी का इलाज कर दिया। यह कहानी यहां के जनमानस में रच- बस गई है। आज भी लोग यहां लेटे हुए हनुमान जी को सिंदूर चढ़ाते हैं और अपनी भक्ति की अभिव्यक्ति करते हैं।
लोग- बाग बताते हैं कि हनुमान जी की इस प्रकार लेटी हुईं प्रतिमा लोगों को रास नहीं आयी। न जाने कितने भक्तों ने कितनी बार बजरंगबली की इस लेटी हुई प्रतिमा को खड़ा करने का प्रयास किया, लेकिन मूर्ती अपनी जगह से टस से मस न हुई। तब हार कर लोगों ने भगवान की इसी अवस्था की मूर्ति को आत्मसात कर लिया।
मुगल शासन काल में लुटेरे औरंगजेब ने तो गजब ही कर डाला। उसने सैकड़ों सैनिकों की सहायता से बजरंगबली की लेटी हुई प्रतिमा को यहाँ से हटाने का बहुत कुत्सित प्रयास किया लेकिन वह भी असफल रहा।
बताते हैं कि सर्वशक्तिमान लेटे हुये इन बजरंग बली को हर वर्ष नदियां स्वयं नहलाने के लिये खुद मंदिर तक चलकर आती हैं और हनुमान जी को स्नान करा कर वापस चली जाती है। यहाँ नदियों के बहाव के कारण मंदिर का कुछ भी नुकसान नहीं होता है।
लेटे हुए हनुमान जी का यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। जो अपने भक्तों को लेटे- लेटे ही आशीर्वाद दे रहे हैंl केवल दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाओं की पूर्ति इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है। लोग दूर -दूर से यहाँ आते हैं।