वृन्दावन, मथुरा एवं द्वारकापुरी में जो-जो अवतार लीलाएं हुई हैं तथा प्राचीन मुनि-ऋषियों के द्वारा सूचित प्रतियुगोचित जो-जो लीला अवतार समूह इस धरती पर हुए हैं, उनके विस्तार-प्रसारपूर्वक् जो वेदवेद्य अवतारी भगवान अपने नित्यधाम श्री पुरूषोत्तमपुरी क्षेत्र में समुपविष्ट हैं, वे ही श्री नीलांचल विहारी मुरारि सदैव हमारे अन्तःकरण मे स्फुरित हों।
अखण्ड, सत्-चित्-आनंद, इन्द्रियों से अग्राह्य एवं अद्वितीय, त्रिगुणातीत, निराकार, परब्रह्म, परमात्मा ही सत्पुरूषों की रक्षा तथा दुष्ट जनों का संहार करने के निमित्त युग-युगान्तर से सगुण-साकार स्वरूप में अवतार ग्रहणपूर्वक सनातन धर्म का संस्थापन करते आ रहे हैं। भगवान के अवतार का प्रयोजन भक्ति, ज्ञान, वैराग्य और सदाचारपूर्ण दिव्य लीलाओं से अपने भक्तों को अपनी ओर आकृष्ट करके उनको अनुप्राणित करना और संसार सागर से उनका समुद्धार करना है।
वास्तव में भगवान की अवतार-कथाओं के तत्व रहस्य को जानना, समझना केवल उनकी कृपा से ही संभव है। जब संसार के लोग विषयों के मोह में पड़ कर भगवान को भूल जाते हैं और उनकी स्वाभाविक विषमता के कारण पाप के ताप से झुलसने लगते हैं तब उन्हें दुःख से बचाने के लिये, अनंत शान्ति देने के लिये और उनका महान अज्ञान मिटा कर अपने स्वयं अपने स्वरूप का बोध कराने एवं अपने में मिला लेने के लिये भगवान स्वयं आते हैं और अपने आचरणों, उपदेशों तथा अपने दर्शन, स्पर्श आदि से जगत के लोगों को मुक्त हस्त से जो कल्याणकारी है, उसको प्रदान करते हैं।
यदि वे स्वयं आकर जीवों की रक्षा-दीक्षा की व्यवस्था नहीं करते, जीवों को अपनी बुद्धि के बल पर सत्य-असत्य का निर्णय करना होता और अपने निश्चय के बल पर चल कर उद्धार करना होता तो ये करोड़ों कल्पों में भी अपना उद्धार कर सकते या नहीं, इसमें संदेह है, परंतु भगवान अपने इन नन्हें-नन्हें शिशुओं को कभी ऐसी अवस्था में नहीं छोड़ते, जब वे भटक कर गडढे में गिर जाएँ।
जब कभी ये अपने हाथ में कुछ जिम्मेदारी का काम लेना चाहते हैं और इसके लिये उनसे प्रार्थना करते हैं, तब बहुत समझा-बुझाकर सृष्टि का रहस्य स्पष्ट करके उन्हें अपने सामने कुछ काम दे देते हैं।
भगवान के जन्म-कर्म की दिव्य अलौकिक अवतार-लीला कथाओं को जो तत्वतः जानता है अथवा भगवत स्मरणपूर्वक इस संसार में पद्मपुत्र की भांति रहता है, वह अन्ततः भगवान को ही प्राप्त होता है।
यह स्थूल जगत वस्तुतः उनकी अनिवर्चनीय लीला का ही एक रूप है। उनकी अन्तरंग अवतार लीलाएं भी उसमें निहित हैं, जो दिव्यातिदिव्य एवं गुह्यतम भी हैं। अपने परिकरों के साथ भगवान नित्य लीला-विहार करते हैं, भगवान के अनन्य भक्त ही भगवदीय अन्तरंग-अवतार कथाओं को जानते हैं।
भगवान की नित्य अवतार-लीला अब भी चल रही है, उसका कहीं विराम नहीं होता। वैकुण्ठ, साकेत, गोलोक तथा कैलास आदि परम धामों मे उनकी मधुरराति मधुर अवतार कथाओं का रसा स्वादन उनके अनन्य भक्तों को सुलभ होता रहता है। भगवत्कथा-चिन्तन, अवतारों का निदिध्यासन ही भगवत्प्राप्ति का अमोघ साधन है।
सचराचर विश्व-ब्रह्माण्ड के स्वामी श्री भगवान की त्रिगुणात्मिका अवतार कथा अपरम्पार है। तत्वतः सृष्टि के प्रत्येक कण में अनुक्षण उनकी अवतार लीला ही चल रही है। भगवान की योग माया का यह चमत्कार ही है जो हमें प्रतिक्षण नचा रहा है और हम समझते हैं कि अपनी प्रसन्नता और स्वानन्द के लिये हम स्वयं नृत्यरत हैं। सृष्टि के प्रशस्त रंगमंच पर सर्वत्र ही विस्मयोत्पादक लीला चल रही है।
श्री रामायण, महाभारत, पुराण आदि सर्व शास्त्रों ने यह प्रमाणित किया है कि भगवान अधर्म की अभिवृद्धि होने पर धराभार निवारणार्थ मनुष्य लोक में अवतार-ग्रहण कर के अधर्म का नाश करते हैं।
आज हिंसा-प्रति हिंसा, अधर्म-अत्याचार, छल-कपटाचार तथा प्राणियों में परस्पर वैर-विरोध से पृथ्वी देवी भयाक्रान्त हो रही हैं। अधर्माचार, कलह, विद्वेष अग्नि, युद्ध और भोग-तृष्णा की पैशाचिक-ताण्डव लीला से सारा संसार विनाश की ओर गति कर रहा है। अतः इस समय भगवान की अवतार कथाओं का प्रचार-प्रसार अपरिहार्य है।