देवी भुवनेश्वरी ने हमेशा विविध प्रकार के अवतार – लीलाओं के द्वारा दुष्ट दैत्यों का शर्वनाश करके इस संसार को सदैव ही विनाश से बचाया है। देवी भुवनेश्वरी ने आर्तजनों को हमेशा ही कष्ट से दूर किया है। शुम्भ निशुम्भ आदि जैसे महान दैत्यों से त्राण पाने के बाद देवता लोग भगवती कात्यायनी की स्तुति करते हुए कहते है “हे देवि! आप ही इस जगत का एकमात्र आधार हो। इस संसार की सम्पूर्ण विद्याएं आप की ही भिन्न-भिन्न रूप हैं।
आपने ही इस समस्त विश्व को व्याप्त कर रखा है। हे नागमणि! आप सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी और कल्याण दायिनी शिवा हो। सब पुरूषार्थों को सिद्ध करने वाली , शरणागत वत्सला तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो , आपको हम सभी देवतागण नमन करते है – हे जगन्मातः! हे अम्बिके ! आप अपने रूप को अनेक भागों में विभक्त कर, जिस प्रकार से नाना प्रकार के लीला – रूप धारण करती हो , वैसा अन्य कोई नहीं कर सकता है।
इसलिये हे परमेश्वरि! आप सबके लिये वरदान देने वाली हो” स्तुति से प्रसन्न होकर देवी ने अनेक लीला – रूपों में आर्विर्भूत होकर दुष्टों से त्राण दिलाने का वर देवताओं को प्रदान किया। उस समय देवी ने अपने रक्त दन्तिका नामक लीला – अवतार के विषय में बताया।
देवी ने बताया की वह अत्यन्त भयंकर रूप में पृथ्वी पर अवतार लेकर वैप्रचित्त नाम वाले सभी दानवों का वध करेंगी। देवी ने बताया की उन भयंकर महा दैत्यों का भक्षण करते समय उनका दांत दाडिम (अनार) – के फल की भांति लाल हो जायेगा , तब स्वर्ग में देवता और मत्र्यलोक में मनुष्य सदा उनकी स्तुति करते हुए उन्हें ‘ रक्त दन्तिका ’ कहेंगे। देवी रक्त दन्तिका का यह स्वरूप देखने में बहुत भयंकर है , किंतु वह केवल दुष्टों को अपना यह रूप दिखाती है।
भक्तों के लिये देवी अपना सौम्य , शांत एवं मनोरम लीला वाला रूप ही प्रकट करती है। देवी का स्मरण सब प्रकार के भयों को दूर कर देता हैं। वह लाल रंग के वस्त्र धारण करती हैं। उनके शरीर का रंग भी लाल ही है और अंगों पर लटके एवं बंधे समस्त आभूषण भी लाल रंग के हैं। उनके सभी अस्त्र-शस्त्र , नेत्र , सिर के बाल , तीखे नख और दांत – सभी रक्त वर्ण के हैं। देवी को इसीलिये रक्ताम्बरा , रक्त वर्णा , रक्त केशा , रक्ता युधा , रक्त नेत्रा , रक्त दर्शना तथा रक्त दन्तिका आदि विभिन्न नामों से पूजा एवं स्मरण किया जाता है।