भगवद्वचनों के अनुसार अधर्म में विशेष वृद्धि के कारण जगतरूपी भगवदीय बगीचा जब समय से पूर्व ही उजड़ने लगता है तो करूणावरूणालय प्रभु श्री राम कभी अदिति नन्दन, कभी देवहूति नन्दन, कभी कौशल्या नन्दन तो कभी यशोदा नन्दन के रूप में अवतरित होकर अपने बगीचे को उजाड़ने वाले को दण्डित करते हैं तथा जो जन इसको सदाचार आदि सदगुणों से सींच कर पल्लवित एवं पुष्पित करते हैं , उनको अपने दिव्य मंगलमय नाम, रूप, लीला एवं धाम का अनुभव करा कर शाश्वत शान्ति प्रदान करते हैं।
जो प्रभु चौबीस अवतारों के रूप में अवतरित होकर अपनी लीलाओं द्वारा जगत का कल्याण करते हैं, वे ही प्रभु जब शस्त्र की अपेक्षा शास्त्र की आवश्यकता देखते हैं तो आचार्य के रूप में अवतरित होते हैं।
शास्त्रों के माध्यम से संसार को उपदेश देकर जगत के उच्छृंखल प्राणियों को सन्मार्ग पर प्रतिष्ठित कर संसार – सागर से उद्धार के सरलतम मार्ग – शक्ति प्रपत्ति का दिग्दर्शन कराते हैं।
ऐसी ही घटना श्री रामोपासनापरायण अनादि वैदिक श्री सम्प्रदाय में घटी, जिसके मध्यमवर्ती आचार्य के रूप में भगवान श्री राम ही हिन्दू धर्मोद्धारक जगद गुरू श्री रामानन्दाचार्य के रूप में अपने परम प्रिय द्वादश महा भागवतों के साथ अवतरित हुए।
यथा – किसी समय जगद गुरू की गुरूतर उपाधि से विभूषित भारत देश का मध्यकालिक इतिहास बर्बर विदेशी लुटेरों एवं तात्कालिक जनता भ्रांत मान्यताओं के कारण दुर्दिनता को प्राप्त हुआ।
उस समय ऊँच – नीच की भावनाएं इतनी गहरी हो गयी थीं कि अधिकांश लोगों के बीच से सदगुण – सदाचार पलायित हो चुके थे,जिसके परिणाम स्वरूप बर्बर, पैशाचिक और नीच विदेशी आक्रान्ताओं व लुटेरों ने हिन्दू जनता एवं राजाओं की पारस्परिक फूट तथा संघाभाव का लाभ लेते हुए , इस सनातन धर्म तथा संस्कृति का समूलोच्छेदन करने का दुष्प्रयास किया। इन लोगों के द्वारा सनातन धर्म के ध्वजा स्वरूप विविध मंदिरों को विध्वंसित किया गया।
ऐसी विषम परिस्थिति में भक्तों की करूण पुकार से द्रवित हो घनघोर अंधकारमय वातावरण में त्रिवेणी संग के पावन तट पर स्थित नगर प्रयागराज की शरण में निवास करने वाले मनु – शतरूपा के समान भक्ति भावना से पूरित अन्तःकरण वाले ब्राह्मण दम्पती श्री पुण्य सदन एवं श्री सुशीला – देवी जी के पुण्यपुंज स्वरूप उनके घर में श्री राम जी माघ कृष्ण सप्तमी विक्रम संवत् 1356 ई0 में सूर्य के समान श्री रामानन्द के रूप में अवतरित हुए।
अध्ययन आदि के कार्य को पूरा कर आपने पंचगंगा घाट स्थित श्री मठ के आचार्य श्री वसिष्ठ अवतार श्री राघवानन्दाचार्य जी से विरक्त दीक्षा ग्रहण कर श्री बोधायनाचार्य प्रभृति पूर्वाचार्यों के द्वारा प्रतिष्ठित श्री राम भक्ति एवं षडक्षर श्री राम मंत्र की परम्परा का विशेष रूप से संवर्धन किया।
जैसे कि श्री भक्तमालकार श्री नाभा गोस्वामी जी लिखते हैं कि श्री रामानन्दाचार्य जी ने बताया है कि जगत्प्रभु के पदपद्मों में समर्थ, असमर्थ सभी प्रपत्ति के अधिकारी हैं, इसमें न तो उत्तम कुलकी, न पराक्रम की, न काल विशेष की और न शुद्धता की ही अपेक्षा है। इस प्रकार आपने भगवत्पादपद्मों में शरणापन्न होने के लिये समस्त जीवों को अर्हता प्रदान की।
भगवान श्री राम ने जैसे अपने अवतार काल में निषादराज गुह, केवट, शबरी, गीध एवं वानरों को गले से लगाया, उसी प्रकार उन्हीं के अवतार श्री रामानन्द जी ने घूम – घूम कर उपर्युक्त आदर्शों को कथा में नहीं बल्कि यथार्थ में पल्लवित, पुष्पित एवं फलयुक्त किया।
इसके लिये द्वादश महाभागवतों ने भी भगवदीय इच्छा का अनुसरण करने के लिये विभिन्न नाम – रूपों में जन्म लेकर श्री रामानन्द जी का शिष्यत्व ग्रहण किया और श्री रामानन्दाचार्य के मत ‘प्रपत्ति’ का प्रचार – प्रसार किया।
भागवत धर्मवेत्ता द्वादश महा भागवतों का वर्णन श्रीमद भगवत महापुराण (6।3।20-21) में श्री यमराज जी ने अपनेे दूतों से इस प्रकार किया है। “भगवान के द्वारा निमित्त भागवत धर्म परम शुद्ध और अत्यन्त गोपनीय है। उसे जानना बहुत ही कठिन है।
जो उसे जान लेता है , वह भगवत्स्वरूप को प्राप्त हो जाता है , दूतो ! भागवत धर्म का रहस्य हम बारह व्यक्ति ही जानते हैं – ब्रह्मा जी, देवर्षि नारद, भगवान शंकर, सनत्कुमार, कपिल देव, स्वायम्भुव मनु, प्रहलाद, जनक, भीष्म पितामह, बलि, शुक देव जी और मैं (धर्मराज)।
भागवत धर्मवेत्ता इन्हीं ब्रह्म आदि द्वादश भागवतों ने भी भगवान की आज्ञा को सानन्द शिरोधार्य कर विविध देशकाल एवं जातियों में अवतार लिया और फिर रामानन्दाचार्य से दीक्षा ग्रहण कर भगवद्धर्म का प्रचार किया।
इन द्वादश महा भागवतों ने किस – किस नाम – रूप में अवतार लिया, इसका यहां संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत है। श्री ब्रह्मा जी ही योग निष्ठ सदाचार परायण श्री अनंतानन्दाचार्य जगदाचार्य श्री रामानन्दाचार्य जी के शिष्य हुए।
आपका जन्म कृत्तिका नक्षत्रयुक्त कार्तिक पूर्णिमा शनिवार के दिन धनु लग्न में अयोध्या के निकट महेशपुर ग्राम निवासी श्री विश्वनाथ मणि त्रिपाठी के घर में वि0सं0 1363 में हुआ।
आपके शिष्य – प्रशिष्यों के द्वारा खूब भक्ति का प्रचार हुआ, जिसका विशद वर्णन भक्तमाल में उपलब्ध है। द्वितीय महा भागवत श्री नारद मुनि भी श्री सुरसुरानन्द के रूप में लखनऊ के निकट परखम ग्राम निवासी श्री सुरेश्वर जी शर्मा की परम भक्तिमती श्री देवी जी के गर्भ से वैशाख कृष्ण नवमी गुरूवार के दिन वृष लग्न में अवतरित हुए।
ऐसे ही भगवान शंकर भी उज्जैन नगर के निकट किरीटपुर ग्राम के रहने वाले श्री त्रिपुर भटट जी की गृहिणी श्री गोदावरी बाई जी के गर्भ से वैशाख शुक्ल नवमी को शतभिषा नक्षत्र शुक्रवार के दिन तुला लग्न में श्री सुखानन्द के रूप में अवतरित हुए।
आप जन्मजात योग सिद्ध थे, आपने रामानन्दाचार्य जी से दीक्षा ग्रहण कर भक्ति को प्रचारित किया। इसके साथ आपने सुखसागर जैसे दिव्य ग्रंथ का भी सृजन किया।
श्री नरहरियानन्द जी श्री सनत्कुमार जी के अवतार हैं। वैशाख मास की कृष्ण तृतीया, व्यतीपात योग, अनुराधा नक्षत्र, मेष लग्न, शुक्रवार को श्री नरहरियानन्द जी अवतरित हुए। इनके पिता का नाम श्री महेश्वर मिश्र जी एवं माता का नाम श्रीमत अम्बिका देवी था।
आपको भी श्री रामानन्द जी से दीक्षा मिली, जिसके बाद के संस्कार श्री अनंतानन्दाचार्य जी ने दिए। श्री नरहरियानन्दाचार्य ने अपनी दिव्य शक्तियों से संसार में भक्ति का खूब प्रचार किया। आपके जीवन चरित्र का वर्णन भक्तमाल एवं द्वादश महा भागवत में विस्तारपूर्वक किया गया है।
श्री कपिल जी का अवतार श्री योगानन्द जी के रूप में वैशाख कृष्ण सप्तमी , परिघयोग युक्त मूल नक्षत्रीय कर्क लग्न में बुधवार के दिन गुजरात प्रान्तीय सिद्धपुर क्षेत्र के निवासी मणिशंकर शर्मा के घर वि0सं0 1456 में हुआ।
आपके बारे में लिखा है – आप महान योगी थे और हमेशा योग में निरत रहते थे। सज्जन लोग आपके चरणों की पूजा किया करते थे। आपने हमेशा वैष्णव धर्म का उपदेश करते हुए वैष्णवता का खूब प्रचार किया ।
भक्तमालकार भी कहते हैं – श्री मुन जी महाराज कलियुग में धर्म प्रचार के लिये राजस्थान प्रान्त के गांगरोनगढ़ के राज घराने में वि0सं0 1416 की चैत्रीय पूर्णिमा उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र , ध्रुवसंज्ञक योग में बुधवार के दिन श्री पीपा जी के रूप में अवतरित हुए।
श्री नाभा जी कहते हैं – भक्त शिरोमणि श्री प्रहलाद जी का अवतार श्री कबीरदास जी के रूप में चैत्र कृष्ण अष्टमी , मंगलवार शोभन योग सिंह लग्न में हुआ। आपने अपनी वेदान्त निष्ठा के साथ विशेष रूप से काशी क्षेत्र निवासी होकर बहुत लोगों को सद्धर्मपरायण किया।
महात्मा श्री भावानन्द जी को जनक का ही अवतार कहा गया है। आपके पूर्वज मिथिला निवासी थे, जो कालान्तर में पण्ढरपुर के निकट आलिन्दी ग्राम निवासी हो गये। वहीं पर वैशाख कृष्ण षष्ठी, मूल नक्षत्र , परिघ योग, कर्क लग्न सोमवार के दिन श्री रघुनाथ मिश्र के घर आपका जन्म हुआ।
आप सदा रामसेवा परायण रहे। श्री भीष्म का अवतार वघेल खण्ड मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ में सेनभक्त के रूप में हुआ। आपका जन्म वैशाख कृष्ण द्वादशी, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र, तुला लग्न शुभा योग रविवार को हुआ। आपने स्वामी जी की आज्ञा से भक्तों की सेवा को प्रधानता दी।
महा भागवत श्री बलि जी महाराज साक्षात धन्नाजाट के रूप में वैशाख कृष्ण अष्टमी, पू0षा0 नक्षत्र, शिव योग, वृश्चिक, लग्न, शनिवार के दिन अवतरित हुए। आप भक्ति सेवापरायण हुए। आपका जन्म राजस्थान के टोंक इलाके के धुवन गांव में हुआ था।
भगवत्स्वरूप श्री व्यास नन्दन श्री शुक देव जी श्री गालवानन्द के रूप् में सिंधु प्रान्तीय पवाया नामक ग्राम में श्री साम्बमूर्ति शर्मा के घर में चैत्र कृष्ण एकादशी वृष , लग्न , शुभ योग में सोमवार के दिन वि0सं0 1375 को अवतरित हुए। आप परिपक्व ज्ञान की अवस्था से युक्त वेद वेदान्तनिरत भगवद्रतियुक्त महान योगी थे।
काशी वासी रघूनायक के घर में श्री यमराज जी ही रमादास (जिन्हे संत रैदास भी कहा जाता है) के रूप में चैत्र शुक्ल द्वितीया , मेष लग्न हर्षण योग , शुक्रवार के दिन अवतरित हुए। इस प्रकार श्री रामावतार श्री रामानन्दाचार्य के समय में उपर्युक्त महा भागवतों ने विभिन्न नामों से अवतरित होकर भगवान की भक्ति का प्रचार किया , जिनका विस्तृत चरित्र संस्कृत एवं हिन्दी साहित्य में उपलब्ध है।
संस्कृत एवं हिन्दी गद्य – पद्यात्मक महाकाव्य आचार्य श्री के वैशिष्ट्य का प्रमाण है। गद्य में श्री हरिकृष्ण शास्त्रीकृत ‘श्री आचार्य विजय’ एवं पद्य में स्वामी भगवताचार्यकृत ‘श्री रामानन्द दिग्विजय’ आदि मुख्य हैं। आचार्य चरित्र के साथ – साथ द्वादश महा भागवतावतारों का उज्जवल चरित्र प्रकाशित होता है।