श्री कृष्ण की राधा जी कौन थीं, इस सम्बन्ध में पुराणों में आख्यान बिखरे पड़े हैं | ‘अनया राधितो नूनं भगवान हरिरीश्वरः’-इस वचन के द्वारा श्री शुकदेव जी ने श्रीमद भागवत के दशम स्कन्ध में परोक्ष रूप से श्री राधिका जी के दिव्य स्वरूप का दर्शन कराया है। वास्तव में जहां कृष्ण की सत्ता है, वहां श्री राधिका की भी है। श्री राधिका ही भगवान श्री कृष्ण की आह्लादिनी शक्ति हैं |
श्री वृषभानुजा राधिका विधाता के द्वारा निर्मित सृष्टि की रचना नहीं, अपितु ब्रह्म सृष्टि बहिर्भूता हैं। सतत भगवद ध्यान परायण जगत में यदि कोई है तो वे श्री स्वामिनी जी ही हैं, जो संयोग की अवस्था में अविरल भगवद रस का आस्वादन करती हैं और वियोग की अवस्था में निरन्तर चिंतन में तल्लीन रहकर श्रृंगार रस के द्वितीय दल का अनुभव अधिगत करती हैं-‘श्यामा श्याम श्याम रटत पूछत सखियन सो श्यामा कहाँ गई री।’
‘धन’ कृष्ण हैं, जैसा कि श्री वल्लभाचार्य के शिष्य एवं अष्ट छाप के कवि परमानन्द दास ने गाया है-‘यह धन धर्म ही ते पायो…..सो धन बार-बार उर अन्तर परमानंद विचारे।।’ धन (कृष्ण) के जीवन (प्राण) का आधार (नींव) होता है ऐसे ही कृष्ण का आधार, प्राणों का स्तम्भ राधा-नाम है, जिसे वे अपनी मुरली मे स्मरण करते हैं।
श्री राधा जी श्री शुकदेव जी की इष्ट हैं, यदि वे राधा का नाम प्रकट रूप से लेते तो उन्हें समाधि लग जाती, फिर राजा परीक्षित को भागवत रस का दान कैसे होता? अतः शुकदेव मुनि ने श्रीमद भागवत में प्रकट रूप में राधा नाम नहीं लिया। ये एक रहस्य है जिसका कम ही लोगों को भान है |
महा रास लीला में श्री कृष्ण ने अनंत रूप धारण किये, लेकिन राधा की सत्ता का पार कृष्ण नहीं पाते हैं। कृष्ण स्वयं राधा का चिंतन करते हैं। जैसा कि अष्ट छाप के कवि गोविन्द स्वामी ने अपनी रचना में गाया है |
इस प्रकार राधा जी के चिंतन द्वारा ही श्री कृष्ण का चिंतन किया जा सकता है; क्योंकि सबके पालनहार वे स्वयं श्री राधिका के हृदय सरोज में विराजमान और तत्स्वरूप हैं।
श्री श्रीनाथ जी का स्वरूप बाह्य रूप से कृष्ण है एवं उनके हृदय सरोज में श्री राधिका जी ही हैं। यह स्वरूप कृष्ण-राधा की प्रीति का घनीभूत स्वरूप है। राधा पूर्ण शक्ति हैं और श्री कृष्ण पूर्ण शक्तिमान हैं।
राधा मृगमद गंध हैं, कृष्ण मृगमद है; अगर कृष्ण साक्षात अग्नि हैं तो श्री राधा उनकी दाहिका शक्ति हैं; अगर राधिका प्रकाश हैं, तो कृष्ण तेज हैं; राधा व्याप्ति हैं, तो कृष्ण आकाश है; राधा अगर ज्योत्सना हैं, तो कृष्ण पूर्णचन्द्र हैं; कृष्ण अगर सूर्य हैं तो राधा उनकी किरणें हैं; राधा तरंग हैं, कृष्ण जलनिधि हैं। इस प्रकार से वे दोनों नित्य एक स्वरूप हैं, पर लीला रस के आस्वादन के लिये नित्य ही उनके दो रूप हैं। कृष्ण-राधा एक प्राण, किंतु दो वपु हैं।