सृष्टि के संहारक भगवान रूद्र ही अपने प्रिय श्री हरि की सेवा का पर्याप्त अवसर प्राप्त करने तथा कठिन कलिकाल में भक्तों की रक्षा की इच्छा से ही पवन देव के औरस पुत्र और वानरराज केसरी के क्षेत्रज पुत्र हनुमान के रूप में अवतरित हुए | फिर उनके बल, बुद्धि, पराक्रम तथा भक्ति आदि गुणों का पार पा ही कौन सकता है?
असीम बल एवं पराक्रम के स्वामी रूद्र अवतार केसरी पुत्र ने बाल लीला करते हुए उदय कालीन सूर्य को फल समझ कर भक्षण करने के लिये शून्य में छलांग लगा दी, जिससे समस्त लोकों में हाहाकार मच गया तब देवराज इन्द्र ने आवेश में आकर वज्र से इन पर प्रहार कर दिया, जिसेस इनकी ठोढ़ी टेढ़ी हो गयी और ये बड़े वेग से पृथ्वी पर गिर कर अचेत हो गये, जिससे कुपित होकर पवन देव ने सम्पूर्ण ब्राह्माण्ड में अपना संचरण रोक कर त्राहि-त्राहि मचा दी।
तब पवन देव को प्रसन्न करने के लिये ब्रह्मादि समस्त देवों ने हनुमान को समस्त दिव्य अस्त्र-शस्त्रों के प्रभाव से मुक्त कर इच्छा मृत्यु का वरदान दिया-
तत्पश्चात विद्याध्ययन के लिये कपिवर हनुमान जी ने सूर्य देव को अपना गुरू मान कर जिस आश्चर्यपूर्ण तरीके से विद्या ग्रहण किया, वह तो समस्त लोकों को चकित कर देने वाला था |
हनुमान जी का बल, बुद्धि, तेज और ओज अप्रतिम था
बल, बुद्धि, ओज, शौर्यादि गुणों में अप्रतिम पवन पुत्र हनुमान जी का श्री रघुनाथ जी के चरणों में जो प्रेम एवं भक्ति है, वह महर्षियों के लिये भी अत्यल्प अंश में ही गम्य है, अन्यत्र ऐसा उदाहरण असम्भव है। सुग्रीव के कार्य हेतु जब महावीर हनुमान जी ब्राह्माण वेष में श्रीराम के पास आये तो अत्यल्प समय में ही अपने प्रभु को पहचान कर प्रेम रस में डूब कर दास्य भाव से उनसे बोल पडे़ |
इसके बाद भक्ति रस का पूर्ण आनंद लेने के लिये तथा अपने अवतार का यथेच्छ लाभ उठाने के लिये भगवान शिव के अवतार हनुमान जी एक साधारण वानर की भांति अज्ञानी बनकर भगवान के चरण कमलों में गिर पड़े और अति संक्षिप्त शब्दों से ही उन्होंने अपनी पूरी बात कह दी |
अपने प्रेम के वशीभूत कर उन्होंने भगवान श्री राम को नर लीला छोड़ अपना स्वरूप प्रकट करने पर विवश कर दिया। हनुमान जी के हृदय में वह प्रेम देख कर जिसके वश में वे सदा रहते हैं, प्रभु श्री राम भाव विह्वल हो पडे़ |
हनुमान जी का सेवाधर्म बहुत कठोर था
इसी प्रकार समुद्र लांघते समय मैनाक पर्वत द्वारा विश्राम की प्रार्थना करने पर हनुमान जी ने जो शब्द कहे, वे उनके कठोर सेवा धर्म पालन को भली भांति दर्शाते हैं |
श्री राम जी की दास्य भक्ति के रस में कपिवर हनुमान जी इस तरह डूबे रहते हैं कि उन्हें अपने अस्तित्व, बल, स्वरूप का किंचित भी बोध नहीं रहता, जैसा कि समुद्र तट पर वानरों के विचार-मंथन के समय द्रष्टव्य है और वे जब भी अपने स्वरूप के विषय में सोचते तो केवल श्री राम के दास के रूप में।
उनकी प्रगाढ़ दास्य भक्ति के कारण स्वयं भगवान श्री राम हनुमान जी के इस प्रकार कृतज्ञ हो गये कि स्वयं को उनका आजीवन ऋणी मान लिया-
और कुछ सावधान होने पर शंकर जी के मुख से निकल ही पड़ा “हे पार्वति! जिनके चरणारविन्दयुगल का तुलसी दल आदि से पूजन कर भक्त जन अतुलनीय विष्णु पद को प्राप्त कर लेते हैं, उन्हीं श्री राम ने जिनके शरीर का आलिंगन किया, उन पवित्र कर्म करने वाले पवन पुत्र के विषय में क्या कहा जाय?”
क्या हनुमान जी अपरिमित बलशाली थे
कपि केसरी की उपाधि से विभूषित हनुमान जी श्री राम के भक्त तो हैं ही, साथ ही अतुलित बल के धाम भी हैं। वाल्मीकि रामायण (किष्किन्धा काण्ड, सर्ग 67) में हनुमान जी के उस स्वरूप का विस्तार के साथ बहुत प्रभावशाली चित्रण किया गया है, जिसका भाव इस प्रकार है “जैसे पर्वत की विस्तृत कन्दरा में सिंह अंगड़ाई लेता है, उसी प्रकार वायु देवता के औरस पुत्र ने उस समय अपने शरीर की अंगड़ाई ले-लेकर बढ़ाया।
वे वानरों के बीच से उठ कर खड़े हो गये। उनके सम्पूर्ण शरीर में रोमांच हो आया। इस अवस्था में हनुमान जी ने बड़े-बूढ़े वानरों को प्रणााम करके इस प्रकार कहा ‘श्रेष्ठ वानरों! उदयाचल से चल कर अपने तेज से प्रज्वलित होते हुए सूर्य देव को मैं अस्त होने से पहले ही छू सकता हूँ और वहां से पृथ्वी पर आकर यहां पैर रखे बिना ही पुनः उनके पास तक बड़े भयंकर वेग से जा सकता हूँ।
समुद्र को लांघते समय मेरा वही रूप प्रकट होगा, जो तीनों पगों को बढ़ाते समय वामन रूपधारी भगवान विष्णु का हुआ था। वज्रधारी इन्द्र अथवा स्वयम्भू ब्रह्मा जी के हाथ से भी मैं बलपूर्वक अमृत छीनकर सहसा यहां ला सकता हूं। समूची लंका को भी भूमि से उखाड़ कर हाथ पर उठाये चल सकता हूं-ऐसा मेरा विश्वास है’।
अपने इस स्वरूप के साथ युद्ध करने पर समस्त राक्षसों के नाश में हनुमान को कितना समय लगता? किंतु रावण-कुम्भकर्ण आदि योद्धाओं को क्षण मात्र में जीत सकने की सामर्थ्य से युक्त होने पर भी श्री राम की मर्यादा में बंधे हुए हनुमान जी ने उन्हें पूर्णरूप से हीं नहीं जीता, बल्कि कहीं-कहीं क्रोध में आकर भी अपना लेशमात्र बल ही दिखलाया।
महाबलशाली होते हुए भी हनुमान जी अत्यंत विनम्र थे
वाल्मीकि रामायण में कुम्भकर्ण द्वारा सुग्रीव को कांख में दबा लिये जाने पर महाबली हनुमान जी सोचने लगे ‘मेरे लिये जो भी करना उचित होगा, उसे मैं निःसंदेह करूंगा। पर्वत आकार रूप धारण करके उस राक्षस का नाश कर डालूँगा। युद्ध स्थल में अपने मुक्कों से मार-मारकर महाबली कुम्भकर्ण के शरीर को चूर-चूर कर दूंगा। इस प्रकार जब वह मेरे हाथ से मारा जायगा तथा वानरराज सुग्रीव को उसकी कैद से छुड़ा लिया जायगा, तब सारे वानर हर्ष से खिल उठेंगे।
परंतु फिर हनुमान जी ने सोचा कि इसके बाद तो मेरे सखा सुग्रीव दुःखी होंगे एवं उनके यश का सदा के लिये नाश हो जायगा, अतः मैं एक मुहूर्त तक इनके छूटने की प्रतीक्षा देखता हूँ। इससे स्पष्ट है कि पवन पुत्र हनुमान जी अपने प्रचण्ड स्वरूप को न प्रकट कर, सुग्रीव तथा राम-लक्ष्मण के यश की रक्षा को ध्यान में रख कर ही युद्ध करते रहे।
वे ऐसा कोई भी पराक्रम प्रकट नहीं करना चाहते थे, जिससे प्रभु श्री राम के यश-कीर्ति का क्षय हो। इसी कारण से वे महा बलवान कपि श्रेष्ठ रावण के साथ काफी समय तक जूझते रहे, उसके एवं कुम्भकर्ण के प्रहार से कुछ व्याकुल होने की उन्होंने लीला की, जिससे कि उनके प्रभु की कीर्ति का विस्तार हो सके।
श्री हरि की प्रेम मूर्ति रूप भगवान शंकर के अवतार हनुमान जी के अतिरिक्त ऐसा कौन भक्त हो सकता है, जो अपरिमित शक्ति-सामर्थ्य का भण्डार होकर भी अपने प्रभु के कार्य एवं उनके सुयश के लिये स्वयं को बंधन में डाल कर ऐसा युद्ध कर सके |
देवताओं के लिये भी दुर्जय वानरों में हनुमान जी उसी प्रकार श्रेष्ठ थे, जैसे गजराजों में सिंह। पवन पुत्र के अतिरिक्त कौन वानर वीर समुद्र लांघने, लंका से गृह सहित सुषेण को लाने तथा अत्यल्प समय में ही संजीवनी लाकर लक्ष्मण को पुनर्जीवन देने में सक्षम था? जाम्बवान ने समस्त वानरों के दुःखी होने पर हनुमान जी से जो वचन कहे, उससे उनकी श्रेष्ठता का बोध होता है।
जांबवन्त जी ने हनुमान जी के शक्ति के बारे में बिलकुल सत्य कहा
जांबवन्त जी ने कहा “हे वानर जगत के वीर! तथा सम्पूर्ण शास्त्र वेत्ताओं में श्रेष्ठ हनुमान जी! तुम एकान्त में आकर चुप क्यों बैठे हो? कुछ बोलते क्यों नहीं? हनूमन्! तुम तो वानरराज सुग्रीव के समान पराक्रमी हो तथा तेज एवं बल में श्रीराम और लक्ष्मण के तुल्य हो। कश्यप जी के महाबली पुत्र और समस्त पक्षियों में श्रेष्ठ जो विनतानन्दन गरूड़ हैं, उन्हीं के समान तुम भी विख्यात एवं तीव्रगामी हो।
महाबली महाबाहु पक्षिराज गरूड़ को मैंने समुद्र में कई बार देखा है, जो बड़े-बड़े सर्पों को वहां से निकाल लाते हैं। उनके दोनों पंखों में जो बल है; वही बल, पराक्रम तुम्हारी इन दोनों भुजाओं में भी है। इसलिये तुम्हारा वेग एवं विक्रम भी उनसे कम नहीं है। वानर शिरोमणे! तुम्हारा बल, बुद्धि, तेज और धैर्य भी समस्त प्राणियों से बढ़ कर है। फिर तुम अपने-आपको ही समुद्र लांघने के लिये क्यों नहीं तैयार करते?
हनुमान जी की अत्यंत विकसित मेधा शक्ति, उनके ज्ञान-विज्ञान तथा भाषा शैली से भगवान राम अत्यंत प्रभावित थे
कपि प्रवर वीरवर हनुमान जी अपने बल के साथ विशाल बुद्धि विज्ञान के भी सागर हैं, जैसा कि तुलसीदास जी ने भी कहा है वाल्मीकि रामायण (4।3।28-30)-में सुग्रीव के कार्य हेतु जब हनुमान जी राम जी के पास जाते हैं, तब उनकी भाषा-शैली देख कर श्री राम जी इतने प्रभावित हुए कि लक्ष्मण जी से उनकी बड़ाई स्वयं अपने श्री मुख से करते हुए कहने लगे “जिसे ऋग्वेद की शिक्षा नहीं मिली, जिसने यजुर्वेद का अभ्यास नहीं किया तथा जो सामवेद का विद्वान नहीं, वह इस प्रकार सुंदर भाषा में वार्तालाप नहीं कर सकता। निश्चय ही इन्होंने सम्पूर्ण व्याकरण का कई बार स्वाध्याय किया है; क्योंकि बहुत सी बातें बोल जाने पर भी इनके मुख से कोई त्रुटि नहीं हुई। सम्भाषण के समय इनके मुख, नेत्र, ललाट, भौंहों तथा अन्य सभी अंगों से भी कोई दोष प्रकट हुआ हो, ऐसा कहीं ज्ञात नहीं हुआ।
अर्थात् जिसके कार्य साधक दूत ऐसे उत्तम गुणों से युक्त हों, उस राजा के सभी मनोरथ दूतों की बातचीत से ही सिद्ध हो जाते हैं। अध्यात्म रामायण (4।1।17-18) में भी ऐसा लिखा है, तब श्री रामचन्द्र जी ने लक्ष्मण जी से इस प्रकार कहा “लक्ष्मण! इस ब्रह्मचारी को देखो। अवश्य ही इसने सम्पूर्ण शब्द शास्त्र कई बार भली-भांति पढ़ा है। देखो, इसने इतनी बातें कहीं, किंतु इसके बोलने में कहीं कोई एक भी अशुद्धि नहीं हुई।”
इस प्रकार स्प्ष्ट है कि हनुमान जी में अनंत बल, पराक्रम के साथ-साथ जो अनंत बुद्धि, ज्ञान है, वह अलौकिक है। इन गुणों को धारण करने वाले हनुमान जी बाल ब्रह्मचारी रहकर आजीवन जिस ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते रहे, वह उच्च कोटि के तपोनिष्ठ योगियों में भी दुर्लभ हैं |
योगियों ऋषियों से भी प्रचण्ड ब्रह्मचर्य था हनुमान जी का
रावण के अन्तःपुर में सीता जी की खोज करते समय अस्त-व्यस्त स्थिति में पड़ी हुई स्त्रियों को देख कर हनुमान जी विचार करने लगे कि ‘दूसरों की स्त्रियों को इस अवस्था में देखने से तो मेरे धर्म का ही लोप हो जायेगा’। परंतु उन्होंने फिर विचार किया इसमें संदेह नहीं कि रावण की स्त्रियाँ निःशंक सो रही थीं और उसी अवस्था में मैंने उन्हें अच्छी तरह देखा तथापि मेरे मन में कोई विकार उत्पन्न नहीं हुआ। सम्पूर्ण इन्द्रियों को शुभ और अशुभ अवस्थाओं में लगने की प्रेरणा देने में मन ही कारण है, किंतु मेरा मन पूर्णतः स्थिर है।
इतना महान और अखण्ड ब्रह्मचर्य सुर, नर, नाग, गंधर्व आदि में कौन धारण कर सकता है? निश्चय ही हनुमान जी में बल, बुद्धि, ओज, ब्रह्मचर्य एवं भक्ति आदि समस्त गुणों का जो महानतम संगम विराजमान है, वह रूद्र अवतार के अतिरिक्त और कोई नहीं धारण कर सकता है।
वाल्मीकीय रामायण (7।36।44)-में स्पष्ट कहा गया है “संसार में ऐसा कौन है जो पराक्रम, उत्साह, बुद्धि, प्रताप, सुशीलता, मधुरता, नीति-अनीति के विवेक, गम्भीरता, चातुर्य, उत्तम बल और धैर्य में हनुमान जी से बढ़ कर हो।” अपने इन्हीं गुणों के कारण भक्तराज हनुमान जी, श्री राम जी के सर्वाधिक प्रिय रहे एवं अंत समय तक अपने साथ रखने के पश्चात भगवान श्री राम ने इन्हें धर्म एवं भक्तों के रक्षार्थ सदेह पृथ्वी पर रूकने के लिये कहा “हरीश्वर! जब तक संसार में मेरी कथा का प्रचलन रहे, तब तक तुम भी मेरे आज्ञा का पालन करते हुए प्रसन्नतापूर्वक विचरते रहो।”
तभी से रूद्र अवतार हनुमान जी सर्व व्यापक रूप से पृथ्वी पर विराजमान रहते हुए भक्तों का कल्याण करते हैं | श्रीमद भागवत में वेद व्यास जी ने बताया है कि किम्पुरूष वर्ष में रहते हुए श्री हनुमान जी अपने आराध्य श्री राम के मंत्र का जप करते हुए भक्तों के कल्याण के लिये सदा ही तत्पर रहते हैं। अब यह किम्पुरूष वर्ष धरती के मानचित्र पर आज कहाँ है, ये एक रहस्य है |
आज भी हनुमान जी अपने भक्तों पर कृपा करते हैं
कलियुग में आज भी पवन कुमार की कृपा से अनेक भक्त सर्व स्वतंत्र एवं निर्भीक रहते हैं। तंत्र ग्रंथों में हनुमान जी के पंचमुखी, सप्तमुखी एवं एकादशमुखी स्वरूप का भी वर्णन है तथा उसकी साधना-सामग्री से तंत्र शास्त्रों का एक बृहत् भाग भरा हुआ है। हनुमान जी की कृपा होने पर समस्त व्याधियों से छुटकारा प्राप्त होता है एवं असम्भव कार्य भी सुगम होते देखे जाते हैं। भयंकर से भयंकर तंत्र, मंत्र, यंत्र, भूत-प्रेतादि भी हनुमान जी के आन के सम्मुख टिक नहीं पाते |
इस कलियुग में समस्त सिद्धियों के दाता हनुमान जी ही हैं। अपने भक्तों के रक्षक हनुमान जी की शरण प्राप्त कर लेने पर संसार की कोई भी व्याधि तथा कर्म सिद्धांत का जाल आड़े नहीं आता।
प्रलयकाल में जिनके कोप से सम्पूर्ण सृष्टि नष्ट हो जाती है, जिनकी क्रोध अग्नि त्रैलोक्य को दग्ध कर देती है, ऐसे रूद्र के अवतार उन हनुमान जी से बढ़कर हो ही कौन सकता है?