सम्राट विक्रमादित्य ने, बिलकुल भी विचलित न होते हुए, तथा अपने धर्म का पालन करते हुए, वापस पेड़ पर लौटने वाले बेताल को फिर से अपनी पीठ पर लादा और चल दिए उसी तान्त्रिक के पास, जिसने उन्हें लाने का काम सौंपा था | कुछ समय बाद बेताल ने अपना मौन तोड़ा और राजा विक्रमादित्य से कहा “तुम भी बड़े हठी हो राजन, लेकिन चलो, यदि तुम अपने वचन के पक्के हो तो मै भी उसका सम्मान करूँगा और मार्ग आसानी से कट जाए, इसके लिए मै तुम्हे एक कथा सुनाता हूँ |
एक समय की बात है विशाला नाम की नगरी में पदमनाभ नाम का एक राजा राज करता था। उसी नगर में अर्थदत्त नाम का एक साहूकार भी रहता था। अर्थदत्त की अनंगमंजरी नाम की एक सुन्दर कन्या थी । उसका विवाह साहूकार ने एक धनी साहूकार के पुत्र मणिवर्मा के साथ कर दिया। मणिवर्मा अपनी सुन्दर पत्नी को बहुत चाहता था, पर उसकी पत्नी उसे प्यार नहीं करती थी।
एक बार की बात है | मणिवर्मा कहीं गया हुआ था । पीछे अनंगमंजरी की राजपुरोहित के लड़के कमलाकर पर निगाह पड़ी तो वह उस के रूप सौंदर्य व विनम्र स्वभाव पर मोहित हो गयी और ह्रदय से उसे चाहने लगी। पुरोहित का लड़का भी अनंगमंजरी के रूप सौन्दर्य पर मोहित हो गया | वह भी अनंगमंजरी को चाहने लगा।
राजपुरोहित के लड़के कमलाकर के कामपाश से बेधित हुई अनंगमंजरी ने महल के बाग़ मे जाकर चंडीदेवी को प्रणाम कर कहा, “यदि मुझे इस जन्म में कमलाकर पति के रूप में न मिले तो अगले जन्म में वह मुझे पति रूप में मिले।”
यह कहकर वह उसी बाग़ के अशोक के पेड़ से दुपट्टे की फाँसी बनाकर मरने को तैयार हो गयी। तभी उसकी सखी आ गयी और उसे आत्महत्या से बचाने के लिए उसे यह वचन देकर ले गयी कि वह उसे कमलाकर से मिला देगी। दासी सबेरे कमलाकर के यहाँ गयी और दोनों के बगीचे में मिलने का प्रबन्ध कर आयी।
अनंगमंजरी के प्रेम में पीड़ित कमलाकर आया और उसने अनंगमंजरी को देखा। वह बेताब होकर मिलने के लिए दौड़ा। अपने सामने अपने प्रियतम को देख कर मारे खुशी के अनंगमंजरी के हृदय की गति रुक गयी, उसे हृदयाघात हुआ और वह वहीँ मर गयी। उसे मरा देखकर कमलाकर का भी दिल फट गया और वह हृदयाघात से वह भी मर गया।
उसी समय अनंगमंजरी का पति मणिवर्मा वहां आ गया और अपनी स्त्री को पराये आदमी के साथ मरा देखकर बड़ा दु:खी हुआ। वह अपनी स्त्री को इतना चाहता था कि उसका वियोग न सहने से उसके भी प्राण निकल गये। एक साथ तीनों के मरण से चारों ओर हाहाकार मच गया। मंदिर में ही चंडीदेवी प्रकट हुई और उन्होंने सबको जीवित कर दिया।
इतना कहकर बेताल राजा विक्रमादित्य से बोला, “राजन्, यह बताओ कि इन तीनों में सबसे ज्यादा विराग और प्रेम में अंधा कौन था?”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “मेरे विचार में मणिवर्मा था, क्योकि वह अपनी पत्नी को पराये पुरुष को प्यार करते देखकर भी शोक से मर गया । अनंगमंजरी और कमलाकर तो अचानक मिलने की खुशी से मरे। उसमें अचरज की कोई बात नहीं थी।”
विक्रमादित्य का यह सटीक सुन कर बेताल पहले तो अत्यंत प्रसन्न हुआ फिर पेड़ पर जा लटका और राजा को वापस जाकर उसे लाना पड़ा। रास्ते में बेताल ने फि र एक कहानी कही।