विक्रमादित्य द्वारा पिछली कथा के प्रश्न का उत्तर देने के बाद बेताल उनके कंधे से फिर उठ गया | बेताल के फिर से उड़कर वृक्ष पर जा लटकने के बाद भी विक्रमादित्य ने अपना धैर्य नहीं खोया और धीरज बनाये रखा | विक्रम फिर से गए, बेताल को उस वृक्ष से उतारा, शव के अंदर समाये बेताल को अपने कंधे पर लादा और चल दिए तांत्रिक के पास | कुछ समय बाद बेताल ने भी अपना मौन व्रत तोड़ा और विक्रम के धैर्य की प्रशंसा करते हुए उन्हें एक और कथा सुनाई |
कथा के अनुसार किसी समय कलिंग देश में शोभावती नाम का एक नगर हुआ करता था । उसमें राजा प्रद्युम्न राज करता था । राजा प्रद्युम्न धार्मिक वृत्ति का राजा था | वह अपनी प्रजा का उचित रीति से पुत्रवत पालन करता था | उसी शोभावती नगरी में एक ब्राह्मण भी रहता था, जिसके देवसोम नाम का बड़ा ही योग्य पुत्र था । यद्यपि वह ब्राह्मण निर्धन था किन्तु फिर भी संतोषी स्वभाव वाले उस ब्राह्मण का जीवन प्रसन्नता से बीत रहा था |
किन्तु काल की गति बड़ी ही क्रूर होती है, ऐसी प्रसन्नता अक्सर उससे देखी नहीं जाती | जब ब्राह्मण का पुत्र देवसोम सोलह वर्ष का हुआ और सारी विद्याएँ सीख चुका तो एक दिन दुर्भाग्य से वह मर गया । बूढ़े माँ-बाप पर मानो दुखों का पहाड़ टूट पड़ा । चारों ओर शोक की लहार दौड़ गयी । उसके अंतिम संस्कार के लिए जब लोग उसे लेकर श्मशान घात में पहुँचे तो रोने-पीटने की आवाज़ सुनकर वही रहने वाला एक योगी अपनी कुटिया में से बाहर निकलकर आया।
सब कुछ देखने समझने के बाद पहले तो वह योगी खूब ज़ोर से रोया, फिर खूब हँसा, फिर एकांत में जा कर अपने योग-बल से उसने अपना शरीर छोड़ दिया और परकाया प्रवेश की विद्या से वह उस लड़के के शरीर में घुस गया । कुछ देर पहले जो लड़का मृत हो कर अर्थी पर पड़ा था वह अचानक से जीवित हो कर उठ खड़ा हुआ । उसे जीवित देखकर वहां उपस्थित सब बड़े प्रसन्न हुए ।
किन्तु आश्चर्य जनक रूप से जीवित हुए उस लड़के ने अपने माँ बाप को इसके लिए मना लिया कि वह वहीँ रुक कर तपस्या करेगा और सिद्धि प्राप्त करेगा | माँ बाप तो पुत्र के जीवित होने पर ही प्रसन्नता से विभोर हुए जा रहे थे अतः लड़के की हठ के आगे मान गए | अब वह लड़का वही तपस्या करने लगा।
इतनी कथा सुना कर बेताल बोला, “राजन्, अब यह बताओ कि वह योगी पहले क्यों रोया, फिर क्यों हँसा?” राजा विक्रमादित्य ने बेताल से कहा, “इसमें क्या बात है! वह योगी रोया इसलिए कि जिस लड़के के शरीर को उसके माँ-बाप ने पाला-पोसा और जिससे उसने बहुत-सी शिक्षाएँ प्राप्त कीं, उसे उस लड़के की जीवात्मा छोड़ रही थी | हँसा इसलिए कि वह स्वयं नये शरीर में प्रवेश करके और अधिक सिद्धियाँ प्राप्त कर सकेगा।”
राजा विक्रमादित्य का यह उत्तर सुनकर बेताल फिर से पेड़ पर जा लटका । राजा विक्रमादित्य जा कर उसे फिर से लाये तो मार्ग में बेताल ने कहा, “हे राजन्, मुझे इस बात की बड़ी प्रसन्नता है कि बिना जरा-सा भी हैरान हुए तुम मेरे प्रश्नो का उत्तर देते रहे हो और बार-बार आने-जाने की परेशानी उठाते रहे हो । आज मैं तुमसे एक बहुत भारी प्रश्न करूँगा। सोच विचार कर उत्तर देना।”
इसके बाद बेताल ने अगली कथा सुनायी।