राजा विक्रमादित्य ने, तनिक भी विचलित न होते हुए, वापस पेड़ पर लौटने वाले बेताल को फिर से अपनी पीठ पर लादा और चल दिए उसी तान्त्रिक के पास, जिसने उन्हें लाने का काम सौंपा था | थोड़ी देर बाद बेताल ने अपना मौन तोड़ा और कहा “तुम भी बड़े ज़िद्दी हो राजन, खैर चलो, मार्ग आसानी से काट जाए, इसके लिए मै तुम्हे एक कहानी सुनाता हूँ |
किसी समय नेपाल देश में शिवपुरी नामक नगर मे यशकेतु नामक राजा राज करता था। उसकी चन्द्रप्रभा नाम की रानी और शशिप्रभा नाम की लड़की थी। जब राजकुमारी बड़ी हुई तो एक दिन वसन्त उत्सव देखने बाग़ में गयी। वहाँ एक ब्राह्मण का लड़का आया हुआ था। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और प्रेम करने लगे। इसी बीच एक पागल हाथी वहाँ दौड़ता हुआ आया। ब्राह्मण का लड़का राजकुमारी को उठाकर दूर ले गया और हाथी से बचा दिया। शशिप्रभा महल में चली गयी, पर ब्राह्मण के लड़के के लिए अत्यंत व्याकुल रहने लगी। उसके कोमल ह्रदय में उस ब्राह्मण पुत्र के लिए प्रेमांकुर फुट पड़े थे |
उधर प्रेम में पागल हुए उस ब्राह्मण के लड़के की भी बुरी दशा थी। कुछ दिनों बाद उससे नहीं रहा गया तो वह एक सिद्धगुरू के पास पहुँचा और अपनी इच्छा बतायी। उन सिद्ध पुरुष को उस ब्राह्मण लड़के की दशा देख कर उस पर दया आयी | उन्होंने एक योग-गुटिका अपने मुँह में रखकर ब्राह्मण का रूप बना लिया और एक गुटिका ब्राह्मण के लड़के के मुँह में रखकर उसे सुन्दर लड़की बना दिया। इसके बाद सिद्ध पुरुष ने राजा के पास जाकर कहा, “राजन मेरा एक ही बेटा है। उसके ब्याह के लिए मैं इस लड़की को लाया था, परन्तु दुर्योग से मेरा लड़का न जाने कहाँ चला गया। अब मेरी चिंता यह कन्या है | कृपया आप इसे यहाँ रख ले। मैं अपने लड़के को ढूँढ़ने जाता हूँ। मिल जाने पर इसे वापस ले जाऊँगा।”
राजा की सहमति मिलने पर सिद्ध पुरुष अपने धाम चले गए और लड़की के वेश में ब्राह्मण का लड़का राजकुमारी शशिप्रभा के पास रहने लगा। साथ रहते-रहते, धीरे-धीरे दोनों में बड़ा प्रेम हो गया। लड़की के वेश में ब्राह्मण कुमार अब, राजकुमारी शशिप्रभा की सबसे चहेती सखी बन गया | एक दिन राजकुमारी ने उससे कहा, “मेरा दिल बड़ा दुखी रहता है। एक ब्राह्मण के लड़के ने पागल हाथी से मरे प्राण बचाये थे। तबसे बस मेरा मन उसी में रमा है, मै उससे प्रेम कर बैठी हूँ।”
इतना सुनकर हर्षातिरेक में उस ब्राह्मण लड़के ने वह गुटिका अपने मुँह से निकाल ली और पलक झपकते ही वह कन्या से ब्राह्मण-कुमार बन गया । राजकुमारी शशिप्रभा पहले तो उसे देख कर भौचक्की हो गयी, उसे अपनी आँखों पर सहसा विश्वास ही न हुआ | लेकिन फिर उसे देखकर वह बहुत प्रसन्न हुई। तब से वह ब्राह्मण कुमार, रात को रोज़ गुटिका निकालकर लड़का बन जाता, और राजकुमारी के शयनकक्ष में ही रहता | दिन में वह सबके सामने लड़की ही बना रहता । दोनों ने चुपचाप गन्धर्व विवाह कर लिया। कुछ दिनों तक ऐसे ही सुखपूर्वक उनके दिन और रात कटे |
फिर कुछ दिन बाद दैवयोग से राजा के साले की कन्या मृगांकदत्ता का विवाह राजा के दीवान के बेटे के साथ होना तय हुआ। विवाह समारोह में राजकुमारी शशिप्रभा अपने कन्या-रूपधर ब्राह्मण कुमार के साथ वहाँ गयी। संयोग से कुछ ऐसा हुआ कि दीवान का पुत्र, जिसका कि विवाह हो रहा था, वह उस बनावटी कन्या पर रीझ गया। विवाह होने पर वह मृगांकदत्ता को घर तो ले गया, लेकिन उसका हृदय उसी बनावटी कन्या के लिए व्याकुल रहने लगा | कुछ दिनों बाद उसकी दशा पागलों वाली होने लगी | उसकी यह दशा देखकर दीवान बहुत परेशान हुआ।
दुखी मन से उसने राजा को यह समाचार भेजा। राजा आया। राजा भी परेशान हुआ | अब वह धर्म संकट में फंस चुका था | उसके सामने प्रश्न यह था कि धरोहर के रूप में रखी हुई कन्या को वह किसी को कैसे दे दे? दूसरी ओर यह मुश्किल थी कि न दे तो दीवान का लड़का मर जाये। अंत में बहुत सोच-विचार के बाद राजा ने निर्णय लिया कि राजा होने के नाते, प्रजा में किसी भी व्यक्ति के प्राण बचाना उसका प्रथम कर्तव्य है अतः राजा ने दोनों का विवाह कर दिया । किन्तु विवाह से पूर्व उस बनावटी कन्या ने यह शर्त रखी कि चूँकि वह दूसरे के लिए लायी गयी थी, इसलिए उसका यह पति, अगले छ: महीने तक तीर्थ यात्रा करेगा, और तब तक वह उससे (यानी अपने पति से) बात नहीं करेगी। दीवान के लड़के ने यह शर्त मान ली।
विवाह के बाद वह दीवान पुत्र उसे अपनी ब्याहता पत्नी मृगांकदत्ता के पास छोड़ तीर्थ-यात्रा पर चला गया। उसके जाने पर दोनों आनन्द से रहने लगे। यहाँ भी वह ब्राह्मण कुमार रात में पुरुष बन जाता और दिन में कन्या बना रहता। और इस प्रकार से उसने मृगांकदत्ता से भी गन्धर्व विवाह करके सुख भोगे | इसके बाद जब छ: महीने बीतने को आये तो वह एक दिन मृगांकदत्ता को लेकर भाग गया । उधर सिद्धगुरु एक दिन अपने मित्र शशि को युवा पुत्र बनाकर राजा के पास लाये और उस कन्या को माँगा। शाप के डर के मारे राजा ने कहा, “वह कन्या तो जाने कहाँ चली गयी। आप मेरी कन्या से अपने पुत्र का विवाह कर दें।”
सिद्ध पुरुष इसके लिए सहर्ष तैयार हो गए और राजकुमारी का विवाह शशि के साथ कर दिया गया । उनके घर आने पर ब्राह्मण कुमार वहां पहुंचा और उसने कहा, “यह राजकुमारी मेरी पत्नी है। मैंने इससे गंधर्व विवाह विवाह किया है।” शशि ने कहा, “यह मेरी स्त्री है, क्योंकि मैंने सबके सामने विधि-पूर्वक आर्ष विवाह किया है।”
सारी कथा सुनाने के बाद बेताल ने राजा विक्रमादित्य से पूछा , “राजन अब तुम बताओ कि राजकुमारी शशिप्रभा इन दोनों में से किस की पत्नी है?” राजा विक्रमादित्य ने कहा, “मेरी राय में वह शशि की पत्नी है, क्योंकि राजा ने सबके सामने उसका विधिपूर्वक विवाह राजकुमारी से किया था। ब्राह्मण कुमार ने तो चोरी से गंधर्व विवाह किया था। और सत्य यह है कि चोरी की चीज़ पर चोर का अधिकार नहीं होता।”
राजा विक्रमादित्य द्वारा इस प्रकार से उत्तर दिए जाने पर बेताल अति प्रसन्न हुआ किन्तु अपनी प्रतिज्ञा की वजह से वह फिर विक्रम की पीठ पर से उठा और उड़कर वापस उसी पेड़ पर जा लटका | राजा विक्रमादित्य ने फिर से उसे पेड़ से उतारा और ले कर चल दिए | मार्ग में बेताल ने उन्हें फिर से एक कथा सुनाई |