अपने काम में लगातार असफल रहने के बाद भी राजा विक्रमादित्य तनिक भी विचलित नहीं हुए और जा पहुंचे उस पेड़ के पास जहाँ बेताल उल्टा लटका था | वहां से उन्होंने फिर से बेताल को अपने कंधे पर लादा और निकल दिए अपने लक्ष्य की ओर | मार्ग में बेताल ने अपना मौन तोड़ा और उन्हें एक कथा सुनाना प्रारम्भ किया |
चंपा पुर नाम का एक नगर था, जिसमें चम्पकेश्वर नाम का राजा राज्य करता था। उसकी सुलोचना नाम की रानी थी और त्रिभुवनसुन्दरी नाम की एक अति सुन्दर कन्या थी । राजकुमारी यथा नाम तथा गुण थी अर्थात उसकी सुन्दरता के चर्चे दूर-दूर तक थे । जब वह बड़ी हुई तो उसका रूप सौन्दर्य यौवन के साथ और निखर गया।
अब राजा और रानी को उसके विवाह की चिन्ता हुई। चारों ओर इसकी खबर फैल गयी। बहुत-से राजाओं ने अपनी-अपनी तस्वीरें बनवाकर भेंजी, पर राजकुमारी ने किसी को भी पसन्द न किया। राजा ने अपनी पुत्री से कहा, “बेटी, कहो तो स्वयम्वर करूँ?” लेकिन राजकुमारी इसके लिए सहमत नहीं हुई। आख़िर राजा ने तय किया कि वह उसका विवाह उस आदमी के साथ करेगा, जो रूप, बल और ज्ञान, इन तीनों में बढ़ा-चढ़ा होगा।
एक दिन, राजकुमारी त्रिभुवन सुंदरी के विवाह के लिए राजा के पास चार देश के चार वर आये। एक ने अपना परिचय दे कर कहा, “मैं एक ऐसे प्रकार कपड़ा बनाना जानता हूँ जो लोगो को चमत्कृत कर देता है |
मै उसे बनाकर पाँच लाख में बेचता हूँ, एक लाख देवता को चढ़ाता हूँ, एक लाख अपने अंग लगाता हूँ, एक लाख अपनी होने वाली पत्नी के लिए रखता हूँ और एक लाख से अपने खाने-पीने का ख़र्च चलाता हूँ। इस विद्या को मेरे सिवा और कोई नहीं जानता।”
दूसरा बोला, “मैं जल-थल के पशुओं की भाषा जानता हूँ और उनसे वार्तालाप कर सकता हूँ ।” तीसरे वर ने अपना परिचय देते हुए अपनी विशेषता बतायी और कहा, “मैं इतना शास्त्र पढ़ा हूँ कि मेरा कोई मुकाबला नहीं कर सकता ।”
चौथे वर ने अपना परिचय देते हुए अपनी विशेषता बतायी और कहा, “मैं शब्दवेधी बाण चलाना जानता हूँ।” चारों की बातें सुनकर राजा सोच में पड़ गया। वे चारो युवक रूप सौन्दर्य में भी एक-से-बढ़कर एक थे। उसने राजकुमारी को बुलाकर उनके गुण और रूप का वर्णन किया, पर वह चुप रही। उसने किसी भी वर के लिए अपनी सहमती नहीं प्रदान करी | राजा के सामने फिर एक गम्भीर संकट था |
अपनी कथा को इतने पर ही रोकते हुए बेताल राजा विक्रमादित्य से बोला, “राजन्, तुम बताओ कि राजकुमारी किसको मिलनी चाहिए थी ? राजा विक्रमादित्य बेताल से बोले, “जो युवक कपड़ा बनाकर बेचता है, वह कर्म से शूद्र है।
जो पशुओं की भाषा जानता है, वह ज्ञानी है। जिस युवक ने शास्त्र पढ़ा है, वह कर्मानुसार ब्राह्मण है; पर जो शब्दवेधी बाण चलाना जानता है, वह क्षत्रिय है अतः वही राजकुमारी का सजातीय है और उसके योग्य है। राजकुमारी उसी को मिलनी चाहिए थी ।”
राजा विक्रमादित्य के उत्तर से बेताल अति प्रसन्न हुआ परन्तु अपनी प्रतिज्ञा का हवाला देते हुए बेताल वहां से गायब हो गया । राजा विक्रमादित्य बेचारे वापस लौटे और उसे लेकर चले तो बेताल ने अगली कहानी सुनायी।