बेताल ने राजा विक्रमादित्य को कथा सुनाने का क्रम जारी रखा | कर्मपुर नाम की एक नगरी थी। उसमें कर्मशील नाम का राजा राज्य करता था। उसके दरबार में अन्धक नाम का दीवान था । एक दिन दीवान ने कहा, “महाराज, एक अटला देवी का मन्दिर बनवाकर उसमे देवी की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर उनकी पूजा की जाए तो बड़ा पुण्य मिलेगा।”
राजा कर्मशील को दीवान की सलाह पसंद आई और उन्होंने ऐसा ही किया । एक दिन देवी ने प्रसन्न होकर उनसे वर माँगने को कहा । राजा को कोई सन्तान नहीं थी। उन्होंने देवी से अपने लिए पुत्र माँगा। देवी माँ उनसे बोली, “अच्छी बात है, तुम्हे एक बड़ा ही प्रतापी पुत्र प्राप्त होगा।”
कुछ दिन बाद राजा के यहाँ एक लड़का हुआ। सारे नगर में बड़ी धूमधाम से खुशी मनायी गयी। एक दिन की बात है एक धोबी अपने मित्र के साथ उस नगर में आया । उसकी निगाह देवी के मन्दिर में पड़ी। उसने देवी को प्रणाम करने का इरादा किया।
उसी समय उसे एक धोबी की लड़की दिखाई दी, जो बड़ी सुन्दर थी। उसे देखकर वह इतना पागल हो गया कि उसने मन्दिर में जाकर देवी से प्रार्थना की, “हे देवी! मुझ पर कृपा करो, इस कन्या से मेरा विवाह करा दो। अगर यह कन्या मुझे मिल गयी तो मैं अपना शीश तुझ पर चढ़ा दूँगा।”
इसके बाद वह धोबी हर घड़ी बेचैन रहने लगा । उसके मित्र ने उसके पिता से सारा हाल कहा। अपने बेटे की यह हालत देखकर उसका पिता उस लड़की के पिता के पास गया और उसके अनुरोध करने पर दोनों का विवाह हो गया।
विवाह के कुछ दिनों के उपरान्त लड़की के पिता के यहाँ उत्सव हुआ। इसमें शामिल होने के लिए लड़के वालों के यहाँ न्यौता आया। अपने मित्र को साथ लेकर वे दोनों चले। रास्ते में उसी देवी का मन्दिर पड़ा तो लड़के को अपना किया हुआ वादा याद आ गया। उसने अपने मित्र और स्त्री को थोड़ी देर रुकने को कहा और स्वयं जाकर देवी को प्रणाम कर के इतने ज़ोर-से तलवार मारी कि उसका सिर धड़ से अलग हो गया।
देर हो जाने पर जब उसका मित्र मन्दिर के अन्दर गया तो देखता क्या है कि उसके मित्र का सिर धड़ से अलग पड़ा है। उसने सोचा कि यह दुनिया बड़ी बुरी है। कोई यह तो समझेगा नहीं कि इसने अपने-आप शीश चढ़ाया है। सब यही कहेंगे कि इसकी सुन्दर स्त्री को हड़पने के लिए मैंने इसकी गर्दन काट दी। इससे कहीं मर जाना अच्छा है। यह सोच उसके मित्र ने भी वहाँ पड़ी तलवार लेकर अपनी गर्दन उड़ा दी।
उधर बाहर खड़ी-खड़ी स्त्री हैरान हो गयी तो वह मन्दिर के भीतर गयी। देखकर चकित रह गयी। सोचने लगी कि दुनिया कहेगी, यह बुरी औरत होगी, इसलिए दोनों को मार आयी इस बदनामी से मर जाना अच्छा है। यह सोच उसने भी वहां पड़ी तलवार उठाई और जैसे ही गर्दन पर मारनी चाही कि देवी ने प्रकट होकर उसका हाथ पकड़ लिया और कहा, “मैं तुझपर प्रसन्न हूँ। जो चाहो, सो माँगो।”
स्त्री बोली, “हे देवी! इन दोनों को जिला दो।” देवी ने कहा, “अच्छा, तुम दोनों के सिर मिलाकर रख दो।” घबराहट में स्त्री ने सिर जोड़े तो गलती से एक का सिर दूसरे के धड़ पर लग गया। देवी ने दोनों को जिला दिया। अब वे दोनों आपस में झगड़ने लगे। एक कहता था कि यह स्त्री मेरी है, दूसरा कहता मेरी।
बेताल बोला, “हे राजन्! बताओ कि वह स्त्री किसकी होगी?”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “नदियों में गंगा उत्तम है, पर्वतों में सुमेरु, वृक्षों में कल्पवृक्ष और अंगों में सिर। इसलिए जिस शरीर पर पति का सिर लगा हो, वही पति होना चाहिए।” राजा विक्रमादित्य से इस प्रकार से उत्तर सुन कर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा ने उसे फिर लाया तो उसने अगली कहानी कही।