राजा विक्रमादित्य की पीठ पर सवार होते ही बेताल ने उनसे कहा “तुम भी बड़े हठी हो राजन, मैंने तुम्हे बताया है कि वो तान्त्रिक तुम्हारा शत्रु है, तुम्हारे जीवन का प्यासा है फिर भी तुम उसकी सहायता के लिए मुझे उसके पास लिए जा रहे हो, यह मेरी समझ से परे है” | “मै वचनबद्ध हूँ”, विक्रमादित्य ने उत्तर दिया |
“अच्छा चलो, मार्ग की कठिनाइयों से तुम विचलित न हो, इसके लिए मै तुम्हे एक कथा सुनाता हूँ”, बेताल ने उनसे कहा | बेताल ने कथा सुनाना प्रारम्भ किया | उज्जैन में महाबल नाम का एक राजा राज्य करता था । उसके राज दरबार में हरिदास नाम का एक दूत था जिसके महादेवी नाम की बड़ी सुन्दर सी कन्या थी।
जब वह विवाह योग्य हुई तो हरिदास को बहुत चिन्ता होने लगी। इसी बीच राजा ने उसे एक दूसरे राजा के पास भेजा। कई दिन चलकर हरिदास वहाँ पहुँचा। राजा ने उसे बड़ी अच्छी तरह से रखा। एक दिन एक ब्राह्मण हरिदास के पास आया। बोला, “तुम अपनी लड़की मुझे दे दो, मुझसे उसका विवाह करा दो।”
हरिदास ने कहाँ, “मैं अपनी लड़की उसे दूँगा, जिसमें सब गुण होंगे।” ब्राह्मण ने कहा, “मेरे पास एक ऐसा रथ है, जिस पर बैठकर जहाँ चाहो, घड़ी-भर में पहुँच जाओगे।”
हरिदास ने क्षण भर सोचा और फिर उससे बोला, “ठीक है। सबेरे उसे ले आना, मै भी उसे देखना चाहूंगा।” अगले दिन दोनों रथ पर बैठकर उज्जैन आ पहुँचे। दैवयोग से उससे पहले हरिदास का लड़का अपनी बहन को किसी दूसरे वर को और हरिदास की स्त्री अपनी लड़की को किसी तीसरे वर को देने का वादा कर चुकी थी ।
इस तरह से उस कन्या के लिए तीन वर इकट्ठे हो चुके थे । हरिदास बड़े फेर में पड़ गया, सोचने लगा कि कन्या तो एक है, और वर तीन इकठ्ठे हो चुके हैं । क्या करे! इसी बीच एक राक्षस आया और कन्या को उठाकर विंध्याचल पहाड़ पर ले गया । तीनों वरों में एक ज्ञानी था। हरिदास ने उससे पूछा तो उसने बता दिया कि एक राक्षस लड़की को उड़ा ले गया है और वह विंध्याचल पहाड़ पर है ।
दूसरे ने कहा, “मेरे रथ पर बैठकर चलो। ज़रा सी देरी में वहाँ पहुँच जायेंगे।” तीसरा बोला, “मैं शब्दवेधी बाण चलाना जानता हूँ। राक्षस को मार गिराऊँगा।” वे सब रथ पर चढ़कर विंध्याचल पहुँचे और राक्षस को मारकर लड़की को जान बचा ली । लेकिन मुख्य समस्या अब भी जस की तस थी, आखिर कन्या का पाणिग्रहण कौन करेगा? |
सारी कहानी सुनाने के बाद राजा विक्रमादित्य से बेताल बोला “हे राजन्! अब तुम बताओ, वह लड़की उन तीनों में से किसको मिलनी चाहिए, उन तीनों में कौन उसके योग्य वर हुआ?” राजा विक्रमादित्य ने बेताल से कहा, “जिसने राक्षस को मारा, कन्या उसी को मिलनी चाहिए, क्योंकि असली वीरता तो उसी ने दिखाई। बाकी दो ने तो केवल सहायता की।”
राजा विक्रमादित्य के उत्तर से बेताल अत्यंत प्रसन्न हुआ लेकिन विक्रमादित्य का इतना कहना था कि बेताल फिर से पेड़ पर जा लटका और राजा विक्रमादित्य फिर उसे लेकर आये तो रास्ते में बेताल ने अगली कहानी सुनायी।