बेताल ने विक्रमादित्य को अपनी प्रतिज्ञा याद दिलाते हुए अगली कहानी सुनाना प्रारम्भ किया | भोगवती नाम की एक नगरी थी । उसमें राजा अमर्त्यसेन राज करता था । उसके पास चिन्तामणि नाम का एक पालतू तोता था । एक दिन राजा ने उससे पूछा, “हमारा ब्याह किसके साथ होगा?”
तोते ने कहा, “तुम्हारा ब्याह मगध देश के राजा की बेटी चन्द्रावती के साथ होगा ।” राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर पूछा तो उसने भी यही कहा । उधर मगध देश की राज-कन्या के पास एक मैना थी । उसका नाम था मदन मञ्जरी । एक दिन राज-कन्या ने उससे पूछा कि मेरा विवाह किसके साथ होगा तो उसने कह दिया कि भोगवती नगर के राजा अमर्त्यसेन के साथ ।
दैवयोग से कुछ समय बाद दोनों को विवाह हो गया । रानी के साथ उसकी मैना भी आ गयी । राजा-रानी ने तोता-मैना का ब्याह करके उन्हें अपने शयन-कक्ष में ही रख लिया ।
एक दिन की बात है तोता-मैना में बहस हो गयी । मैना ने कहा, “पुरुष बड़ा पापी, विश्वासघाती और अधर्मी होता है।” तोते ने कहा, “स्त्री झूठी, लालची और हत्यारी होती है।” दोनों का झगड़ा बढ़ गया तो राजा ने उनसे कहा, “क्या बात है, तुम आपस में लड़ते क्यों हो?” मैना ने कहा, “महाराज, पुरुष बड़े बुरे होते हैं।” इसके बाद मैना ने एक कहानी सुनायी।
इलापुर नगर में महाधन नाम का एक सेठ रहा करता था । विवाह के बहुत दिनों के बाद उसके घर एक लड़का पैदा हुआ । सेठ ने उसका बड़ी अच्छी तरह से लालन-पालन किया, पर लड़का बड़ा होकर जुआ खेलने लगा । इस बीच सेठ मर गया। लड़के ने अपना सारा धन जुए में खो दिया। जब पास में कुछ न बचा तो वह नगर छोड़कर चन्द्रपुरी नामक नगरी में जा पहुँचा।
वहाँ हेमगुप्त नाम का साहूकार रहता था । उसके पास जाकर उसने अपने पिता का परिचय दिया और कहा कि मैं जहाज़ लेकर सौदागरी करने गया था। माल बेचा, धन कमाया; लेकिन लौटते में समुद्र में ऐसा तूफ़ान आया कि जहाज़ डूब गया और मैं जैसे-तैसे बचकर यहाँ आ गया।
उस सेठ के एक लड़की थी रत्नावती। सेठ को बड़ी खुशी हुई कि घर बैठे इतना अच्छा लड़का मिल गया। उसने उस लड़के को अपने घर में रख लिया और कुछ दिन बाद उसने उससे अपनी लड़की का विवाह कर दिया । दोनों वहीं रहने लगे । अन्त में एक दिन वहाँ से बिदा हुए। सेठ ने बहुत-सा धन दिया और एक दासी को उनके साथ भेज दिया।
रास्ते में एक जंगल पड़ता था। वहाँ आकर लड़के ने स्त्री से कहा, “यहाँ बहुत डर है, तुम अपने गहने उतारकर मेरी कमर में बाँध दो, लड़की ने ऐसा ही किया। इसके बाद लड़के ने कहारों को धन देकर डोले को वापस करा दिया और दासी को मारकर कुएँ में डाल दिया। फिर स्त्री को भी कुएँ में पटककर आगे बढ़ गया।
स्त्री रोने लगी। एक मुसाफ़िर उधर जा रहा था। जंगल में रोने की आवाज़ सुनकर वह वहाँ आया उसे कुएँ से निकालकर उसके घर पहुँचा दिया। स्त्री ने घर जाकर माँ-बाप से कह दिया कि रास्ते में चोरों ने हमारे गहने छीन लिये और दासी को मारकर, मुझे कुएँ में ढकेलकर, भाग गये। बाप ने उसे ढाढस बँधाया और कहा कि तू चिन्ता मत कर। तेरा स्वामी जीवित होगा और किसी दिन आ जायेगा।
उधर वह लड़का जेवर लेकर शहर पहुँचा। उसे तो जुए की लत लगी थी। वह सारे गहने जुए में हार गया। उसकी बुरी हालत हुई तो वह यह बहाना बनाकर कि उसके लड़का हुआ है, फिर अपनी ससुराल चला। वहाँ पहुँचते ही सबसे पहले उसकी स्त्री मिली। वह बड़ी खुश हुई। उसने पति से कहा, “आप कोई चिन्ता न करें, मैंने यहाँ आकर दूसरी ही बात कही है।” जो कहा था, वह उसने बता दिया।
सेठ अपने जमाई से मिलकर बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने उसे बड़ी अच्छी तरह से घर में रखा। कुछ दिन बाद एक रोज़ जब वह लड़की गहने पहने सो रही थी, उसने चुपचाप छुरी से उसे मार डाला और उसके गहने लेकर चम्पत हो गया। मैना बोली, “महाराज, यह सब मैंने अपनी आँखों से देखा। ऐसा पापी होता है पुरुष!”
राजा ने तोते से कहा, “अब तुम बताओ कि स्त्री क्यों बुरी होती है?” इस पर तोते ने यह कहानी सुनायी । कंचनपुर में सागरदत्त नाम का एक सेठ रहता था। उसके श्रीदत्त नाम का एक लड़का था। वहाँ से कुछ दूर पर एक और नगर था श्रीविजयपुर। उसमें सोमदत्त नाम का सेठ रहता था। उसके एक लड़की थी, जयश्री | वह श्रीदत्त को ब्याही थी। ब्याह के बाद श्रीदत्त व्यापार करने परदेस चला गया।
बारह बरस हो गये और वह न आया तो जयश्री व्याकुल होने लगी। एक दिन वह अपनी अटारी पर खड़ी थी कि एक आदमी उसे दिखाई दिया। उसे देखते ही वह उस पर मोहित हो गयी। उसने उसे अपनी सखी के घर बुलवा लिया। रात होते ही वह उस सखी के घर चली जाती और रात-भर वहाँ रहकर दिन निकलने से पहले ही लौट आती। इस तरह बहुत दिन बीत गये।
इस बीच एक दिन उसका पति परदेस से लौट आया। स्त्री बड़ी दु:खी हुईं अब वह क्या करे? पति हारा-थका था। जल्दी ही उसकी आँख लग गई और स्त्री उठकर अपने दोस्त के पास चल दी। रास्ते में एक चोर खड़ा था। वह चोर कौतूहल वश देखने लगा कि स्त्री कहाँ जाती है। धीरे-धीरे जयश्री सहेली के मकान पर पहुँची । चोर भी पीछे-पीछे गया। संयोग से जयश्री के पुरुष मित्र, उस आदमी को साँप ने काट लिया था और वह मरा पड़ा था।
जयश्री ने समझा कि वह सो रहा है । वहीं आँगन में पीपल का एक पेड़ था, जिस पर एक पिशाच बैठा यह लीला देख रहा था। उसने उस आदमी के मृत शरीर में प्रवेश करके उस स्त्री, जयश्री की नाक काट ली औरा फिर उस आदमी की देह से निकलकर पेड़ पर जा बैठा । स्त्री रोती हुई अपनी सहेली के पास गयी। सहेली ने कहा कि तुम अपने पति के पास जाओ ओर वहाँ बैठकर रोने लगो। कोई पूछे तो कह देना कि पति ने नाक काट ली है।
उसने ऐसा ही किया। उसका रोना सुनकर लोग इकट्ठे हो गये। उसका पति जाग उठा। उसे सारा हाल मालूम हुआ तो वह बड़ा दु:खी हुआ। लड़की के बाप ने कोतवाल को ख़बर दे दी। कोतवाल उन सबको राजा के पास ले गया। लड़की की हालत देखकर राजा को बड़ा गुस्सा आया। उसने कहा, “इस आदमी को सूली पर लटका दो।”
संयोग से राजा जब उसे सजा सूना रहा था, वह चोर भी वहाँ खड़ा था। जब उसने देखा कि एक बेक़सूर आदमी को सूली पर लटकाया जा रहा है तो उसने राजा के सामने जाकर सब हाल सच-सच बता दिया। बोला, “अगर मेरी बात का विश्वास न हो तो जाकर देख लीजिए, उस आदमी के मुँह में स्त्री की नाक है।”
राजा ने दिखवाया तो बात सच निकली। इतना कहकर तोता बोला, “हे राजा! स्त्रियाँ ऐसी होती हैं! राजा ने उस स्त्री का सिर मुँडवाकर, गधे पर चढ़ाकर, नगर में घुमवाया और शहर से बाहर छुड़वा दिया।” यह कहानी सुनाकर बेताल बोला, “राजा, बताओ कि दोनों में ज्यादा पापी कौन है?”
राजा विक्रमादित्य ने कहा, “स्त्री।” बेताल ने पूछा, “कैसे?” राजा ने कहा, “मर्द कैसा ही दुष्ट हो, उसे धर्म का थोड़ा-बहुत विचार रहता ही है। स्त्री को नहीं रहता। इसलिए वह अधिक पापिन है।” राजा के इतना कहते ही बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा लौटकर गया और उसे पकड़कर लाया। रास्ते में बेताल ने अगली कहानी सुनायी।