बेताल ने विक्रमादित्य को कथा सुनाना प्रारंभ किया | प्राचीन काल में यमुना नदी के किनारे धर्मस्थान नामक एक समृद्ध नगर हुआ करता था । उस नगर में गणाधिप नाम का राजा राज्य करता था। उसी नगर में केशव नाम का एक ब्राह्मण भी रहता था । ब्राह्मण यमुना नदी के तट पर पूजा-पाठ, जप-तप किया करता था। उसकी एक ही पुत्री थी, जिसका नाम मालती था। वह बड़ी रूपवती थी। जब वह विवाह के योग्य हुई तो उसके माता, पिता और भाई को उसके विवाह की चिन्ता हुई।
संयोग से एक दिन जब ब्राह्मण अपने किसी यजमान की बारात में गया था और भाई पढ़ने गया था, तभी उनके घर में एक ब्राह्मण का लड़का आया। लड़की की माँ ने उसके रूप और गुणों को देखकर उससे कहा कि मैं तुमसे अपनी कन्या का विवाह करना चाहूंगी। संयोग की बात कि उधर ब्राह्मण पिता को भी अपनी कन्या के लिए एक दूसरा लड़का, वर के रूप में मिल गया और उसने उस लड़के को भी यही वचन दे दिया। उधर ब्राह्मण का लड़का जहाँ पढ़ने गया था, वहाँ उसने भी एक लड़के से यही वादा कर दिया ।
कुछ समय बाद बाप-बेटे अपने घर में इकट्ठे हुए तो देखते क्या हैं कि वहाँ एक तीसरा लड़का और पहले से उपस्थित है । दो युवक उनके साथ आये थे । अब क्या हो? ब्राह्मण, उसका लड़का और ब्राह्मणी बड़े सोच में पड़े। दैवयोग से हुआ क्या कि उन ब्राह्मण दंपत्ति की लड़की को एक जहरीले साँप ने काट लिया और वह मर गयी । उसके बाप, भाई और तीनों लड़कों ने बड़ी भाग-दौड़ की, विष उतारने वालों को बुलाया, पर कोई नतीजा न निकला। सब अपनी-अपनी विद्या प्रयोग करने के बाद, हार कर चले गये।
दु:खी होकर वे उस लड़की को श्मशान में ले गये और क्रिया-कर्म कर आये। तीनों लड़कों में से एक ने तो उसकी हड्डियाँ चुन लीं और सन्यासी बनकर जंगल में चला गया । दूसरे ने राख की गठरी बाँधी और वहीं झोपड़ी डालकर रहने लगा । तीसरा योगी सन्यासी होकर देश-देश घुमने लगा।
एक दिन की बात है, वह तीसरा लड़का घूमते-घामते किसी नगर में पहुँचा और एक ब्राह्मणी के घर भोजन करने बैठा। जैसे ही उस घर की ब्राह्मणी भोजन परोसने आयी कि उसके छोटे लड़के ने उसका आँचल पकड़ लिया। ब्राह्मणी से अपना आँचल छुड़ता नहीं था।
ब्राह्मणी को बड़ा गुस्सा आया। उसने अपने लड़के को झिड़का, मारा-पीटा, फिर भी वह न माना तो ब्राह्मणी ने उसे उठाकर जलते चूल्हें में पटक दिया। लड़का जलकर राख हो गया। ब्राह्मण बिना भोजन किये ही उठ खड़ा हुआ। घरवालों ने बहुतेरा कहा, पर वह भोजन करने के लिए राजी न हुआ। उसने कहा जिस घर में ऐसी राक्षसी हो, उस घर में मैं भोजन नहीं कर सकता।
इतना सुनकर वह गृहस्वामी भीतर गया और संजीवनी विद्या की पोथी लाकर एक मन्त्र पढ़ा। जलकर राख हो चुका लड़का फिर से जीवित हो गया। यह देखकर ब्राह्मण सोचने लगा कि अगर यह पोथी मेरे हाथ पड़ जाये तो मैं भी उस लड़की को फिर से जिला सकता हूँ।
इसके बाद उसने भोजन किया और वहीं ठहर गया। जब रात को सब खा-पीकर सो गये तो वह ब्राह्मण चुपचाप वह पोथी लेकर चल दिया। जिस स्थान पर उस लड़की को जलाया गया था, वहाँ जाकर उसने देखा कि दूसरे वही दोनों लड़के वहाँ बैठे बातें कर रहे थे ।
उन दोनों लडको को भी वहां इकठ्ठा देख कर उस लड़के की ख़ुशी का ठिकाना न रहा | उसने उन दोनों ब्राह्मण लड़को को यह बताया कि उसे संजीवनी विद्या की पोथी मिल गयी है और वह मन्त्र पढ़कर उस मृत लड़की को फिर से जीवित कर सकता है |
संजीवनी विद्या की पोथी देख कर बाकी दोनों लड़के भी प्रसन्न हो गये | उन दोनों ने अपने झोलों से हड्डियाँ और राख निकाली । पोथी वाले ब्राह्मण लड़के ने जैसे ही मंत्र पढ़ा, वह लड़की जी उठी । अब तीनों उससे विवाह करने के लिए आपस में झगड़ने लगे।
इतना कहकर बेताल बोला, “राजा, बताओ कि वह लड़की किसकी स्त्री होनी चाहिए?” राजा विक्रमादित्य ने जवाब दिया, “जो वहाँ कुटिया बनाकर रहा और उसकी राख को समेट कर रखा, उसकी।” बेताल ने पूछा, “क्यों?”
राजा बोला, “जिसने हड्डियाँ समेट कर रखीं, वह तो उसके बेटे के समान हुआ। जिसने विद्या सीखकर जीवन-दान दिया, वह पिता के समान हुआ। जो उस मृत स्त्री के शरीर की राख लेकर रमा रहा, वही उसका पति होने का अधिकारी है।”
राजा का यह उत्तर सुनकर बेताल बहुत प्रसन्न हुआ लेकिन अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार फिर पेड़ पर जा लटका । राजा विक्रमादित्य को उसे लेने के लिए फिर से लौटना पड़ा और जब वह उसे लेकर चला तो बेताल ने अगली कथा सुनायी।