सिंहासन बत्तीसी की उन्तीसवीं पुतली मानवती ने राजा भोज को बताया कि राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) वेश बदलकर रात में, अपने राज्य में, घूमा करते थे । ऐसे ही एक दिन घूमते-घूमते नदी के किनारे पहुँच गए । चाँदनी रात में नदी का जल चमकता हुआ बड़ा ही मनोहर दृश्य प्रस्तुत कर रहा था । विक्रमादित्य चुपचाप नदी तट पर खड़े थे तभी उनके कानों में “बचाओ-बचाओ की तेज आवाज पड़ी ।
राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) का युवती के प्राण बचाना
वे आवाज की दिशा में दौड़े तो उन्हें नदी की वेगवती धारा से जूझते हुए दो मनुष्य दिखाई पड़े । उन्होंने ध्यान से देखा तो उन्हें पता चला कि एक युवक और एक युवती तैरकर किनारे आने की चेष्टा में हैं, मगर नदी की धाराएँ उन्हें बहाकर ले जाती हैं । विक्रम ने बड़ी फुर्ती से नदी में छलांग लगा दी और तैरने में माहिर विक्रमादित्य दोनों को पकड़कर किनारे ले आए ।
युवती के अंग-अंग से यौवन छलक रहा था । वह अत्यन्त रूपसी थी । उसका रूप देखकर अप्सराएँ भी लज्जित हो जातीं । कोई तपस्वी भी उसे पास पाकर अपनी तपस्या छोड़ देता और गृहस्थ बनकर उसके साथ जीवन गुज़ारने की कामना करता ।
दोनों कृतज्ञ होकर अपने प्राण बचाने वाले को देख रहे थे । युवक ने बताया कि वे अपने परिवार के साथ नौका से कही जा रहे थे । नदी के बीच में वे भंवर को नहीं देख सके और उनकी नौका भंवर में जा फँसी । भंवर से निकलने की उन लोगों ने लाख कोशिश की, पर सफल नहीं हो सके । उनके परिवार के सारे सदस्य उस भंवर में समा गए, लेकिन वे दोनों किसी तरह यहाँ तक तैरकर आने में कामयाब हो गए।
राजा ने उनसे उनका परिचय पूछा तो युवक ने बताया कि वे दोनों भाई-बहन है और सारंग देश के रहने वाले हैं । विक्रम ने कहा कि उन्हें सकुशल अपने देश भेज दिया जाएगा । उसके बाद उन्होंने उन्हें अपने साथ चलने को कहा और अपने महल की ओर चल पड़े । राजमहल के नजदीक जब वे पहुँचे तो विक्रम को प्रहरियों ने पहचानकर प्रणाम किया ।
उन युवक-युवती को तब जाकर मालूम हुआ कि उन्हें अपने प्राणों की परवाह किए बिना बचाने वाला आदमी स्वयं महाराजाधिराज विक्रमादित्य (raja vikramaditya) थे। अब तो वे और कृतज्ञताभरी नज़रों से महाराज को देखने लगे । महल पहुँचकर उन्होंने नौकर-चाकरों को बुलाया तथा सारी सुविधाओं के साथ उनके ठहरने का प्रबंध करने का निर्देश दिया । अब तो दोनों का मन महाराज के प्रति और अधिक आदरभाव से भर गया ।
वह मनोहर युवक अपनी बहन के विवाह के लिए काफी चिन्तित रहता था । उसकी बहन राजकुमारियों से भी अधिक सुन्दर थी, इसलिए वह चाहता था कि किसी राजा से उसकी शादी हो । मगर उसकी आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी और वह अपने इरादे में सफल नहीं हो पा रहा था । जब संयोग से राजा विक्रमादित्य से उसकी भेंट हो गई तो उसने सोचा कि क्यों न विक्रम को उसकी बहन से शादी का प्रस्ताव दिया जाए ।
यह विचार आते ही उसने अपनी बहन को ठीक से तैयार होने को कहा तथा उसे साथ लेकर राजमहल उनसे मिलने चल पड़ा । उसकी बहन जब सजकर निकली तो उसका रूप देखने लायक था । उसके दिव्य रूप पर तो देवता भी मोहित हो जाते मनुष्य की तो कोई बात ही नहीं थी ।
राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) का युवती को अपनी बहन बना लेना
जब वह युवक राजमहल आया तो राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) ने उससे उसका हाल-चाल पूछा तथा कहा कि उसके जाने का समुचित प्रबन्ध कर दिया गया है । उसने राजा की कृतज्ञता जाहिर करते हुए कहा कि उन्होंने जो उपकार उस पर किये उसे आजीवन वह नहीं भूलेगा । उसके बाद उसने विक्रम से एक छोटा-सा उपहार स्वीकार करने को कहा । राजा ने मुस्कुराकर अपनी अनुमति दे दी ।
राजा को प्रसन्न देखकर उसने सोचा कि वे उसकी बहन पर मोहित हो गए हैं । उसका हौसला बढ़ गया । उसने कहा कि वह अपनी बहन उनको उपहार स्वरुप देना चाहता है । विक्रम ने कहा कि उसका उपहार उन्हें स्वीकार है । युवक अत्यंत प्रसन्न था | अब उसको पूरा विश्वास हो गया कि विक्रम उसकी बहन को रानी बना लेंगे ।
तभी राजा ने कहा कि आज से तुम्हारी बहन राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) की बहन के रूप में जानी जाएगी तथा उसका विवाह वह कोई योग्य वर ढूँढकर पूरे धूम-धाम से करेंगे । वह विक्रम का मुँह ताकता रह गया । उसे सपने में भी नहीं अंदेशा था कि उसकी बहन की सुन्दरता को अनदेखा कर विक्रम उसे बहन के रुप में स्वीकार करेंगे । क्या कोई ऐश्वर्यशाली राजा विषय-वासना से इतना ऊपर रह सकता था ।
राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) द्वारा उदयन के पास अपनी बहन का विवाह प्रस्ताव भेजना
छोड़ी देर बाद उसने संयत होकर विक्रमादित्य से कहा कि उदयगिरि का राजकुमार उदयन उसकी बहन की सुन्दरता पर मोहित है तथा उससे विवाह की इच्छा भी व्यक्त कर चुका है । राजा ने एक पंडित को बुलाया तथा बहुत सारा धन भेंट के रुप में देकर उदयगिरि राज्य विवाह का प्रस्ताव लेकर भेजा ।
पंडित उसी संध्या लौट गए और उनके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं । पूछने पर उसने बताया कि राह में कुछ डाकुओं ने घेरकर सब कुछ लूट लिया । सुनकर राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) स्तब्ध रह गए । उन्हें आश्चर्य हुआ कि इतनी अच्छी शासन-व्यवस्था के बावजूद भी डाकू लुटेरे उनके राज्य में कैसे सक्रिय हो गए । इस बार उन्होंने पंडित को कुछ अश्वरोही सैनिकों के साथ धन लेकर भेजा ।
राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) की डाकुओं से मुठभेड़
उसी रात विक्रम अपना वेश बदलकर उन डाकुओं का पता लगाने निकल पड़े । वे उस निर्जन स्थान पर पहुँचे जहाँ पंडित को लूट लिया गया था । एक तरफ उन्हें चार आदमी बैठे दिखायी पड़े । राजा समझ गए कि वे लुटेरे हैं । उन चारों ने भी विक्रम को देख लिया और उन्हें राजा का कोई गुप्तचर समझा ।
राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) ने उनसे भयभीत नहीं होने को कहा और अपने आपको भी उनकी तरह एक चोर ही बताया । इस पर उन चारों ने कहा कि वे चोर नहीं बल्कि समाज के सम्मानित लोग हैं और किसी खास मसले पर विचार-विमर्श के लिए एकांत की खोज में यहाँ पहुँचे हैं । राजा ने उनसे बहाना न बनाने के लिए कहा और उन्हें अपने दल में शामिल कर लेने को कहा ।
तब उन चारो चोरों ने खुलासा किया कि उन चारों में चार अलग-अलग खुबियाँ हैं । एक चोरी का शुभ मुहूर्त निकालता था, दूसरा परिन्दे-जानवरों की ज़बान समझता था, तीसरा अदृश्य होने की कला जानता था तथा चौथा भयानक से भयानक यातना पाकर भी उफ़ तक नहीं करता था । विक्रम ने उनका विश्वास जीतने के लिए कहा “और मैं कहीं भी छिपाया गया धन देख सकता हूँ । जब उन्होंने यह विशेषता सुनी तो विक्रम को अपनी टोली में शामिल कर लिया ।
उसके बाद उन्होंने अपने ही महल के एक हिस्से में चोरी करने की योजना बनाई । उस जगह पर शाही खज़ाने का कुछ माल छिपा था । वे चोरों को वहाँ लेकर आए तो चारों चोर बड़े ही खुश हुए । उन्होंने खुशी-खुशी सारा माल झोली में डाला और बाहर निकलने लगे । चौकस प्रहरियों ने उन्हें पकड़ लिया ।
राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) द्वारा डाकुओं को क्षमा कर देना
सुबह में जब राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) के दरबार में बंदी बनाकर उन्हें पेश किया गया तो वे डर से पत्ते की तरह काँपने लगे । उन्होंने अपने पाँचवे साथी जो की स्वयं विक्रमादित्य थे, को सिंहासन पर आरुढ़ देखा । वे गुमसुम खड़े राजदण्ड की प्रतीक्षा करने लगे । मगर विक्रम ने उन्हें कोई दण्ड नहीं दिया । उन्हें अभयदान देकर उन्होंने उनसे अपराध न करने का वचन लिया और अपनी खूबियों का इस्तेमाल लोगों की भलाई के लिए करने का आदेश दिया ।
राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) की बहन का धूम-धाम से विवाह
चारों ने मन ही मन अपने राजा की महानता स्वीकार कर ली और भले आदमियों की तरह जीवन यापन का फैसला कर लिया । राजा विक्रमादित्य (raja vikramaditya) ने उन्हें सेना में भर्ती कर लिया । उदयन ने भी राजा विक्रम की मुँहबोली बहन से शादी का प्रस्ताव प्रसन्न होकर स्वीकार कर लिया । शुभ मुहूर्त में विक्रम ने उसी धूम-धाम से उसकी शादी उदयन के साथ कर दी जिस तरह किसी राजकुमारी की होती है ।