प्राचीन हिन्दू शास्त्रों में अनेकों बार इसका ज़िक्र हुआ है कि अनंत काल के भीतर क्रमशः सत्ययुग, त्रेता, द्वापर और कलियुग- ये चार युग बारम्बार आते जाते रहते हैं और क्रमशः युग भेद से मनुष्य की परम आयु और आकार आदि में लघुता आती जाती है |
सनातन धर्म के प्रामाणिक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख हुआ है कि सत्यतुग में मानव शरीर आजकल के हस्त प्रमाण से इक्कीस हाथ का होता था | त्रेता में चौदह हाथ का, द्वापर में सात हाथ का, तथा कलियुग में आजकल साढ़े तीन हाथ ( छै फ़ीट) का होता है |
इस बात को प्रमाणित करते हुए हिन्दुओं के प्रसिद्ध ग्रन्थ विष्णु पुराण में एक घटना का उल्लेख मिलता है कि एक बार राजा शर्याति के वंशधर, कुशस्थली के राजा रैवत बहुत खोज करने पर भी अपनी कन्या रेवती के योग्य वर न प्राप्त कर सके | थक हार कर अंत में इस विषय में अपनी जिज्ञासा शांत करने के लिए वे अपनी कन्या को साथ लेकर ब्रह्मा जी के पास ब्रह्मलोक लेकर गए | वहां वेदगान हो रहा था अतएव उनको प्रतीक्षा करनी पड़ी |
तत्पश्चात ब्रह्मा जी उनसे बोले कि जब तक यहाँ तुम प्रतीक्षा करते रहे तब तक अनेको ‘मानवीय युग’ व्यतीत हो गए | तुम्हारा समकालीन अब वहां कोई जीवित नहीं रहा | फिर ब्रह्मा ने उनको पृथ्वी पर लौटने और श्रीकृष्ण के अंशभूत माया-मानुष श्री बलदेव जी के साथ रेवती के विवाह करने की आज्ञा दी | बलदेव जी ने उस रेवती को बहुत लम्बे शरीर वाली देखकर अपने हलास्त्र के द्वारा उसे नाम्राकर कर दिया | तब रेवती तत्कालीन अन्य कन्याओं के सामान छोटे आकार की हो गयी |
एक अन्य घटनक्रम में सूर्यवंशी अम्बरीश के भाई तथा सम्राट मान्धाता के पुत्र राजा मुचुकुन्द सत्ययुग में देवताओं के लिए असुरों से युद्ध करके थक गए | देवताओं ने उनको वरदान दिया और उसके प्रभाव से वो एक दिव्य गुफा में दीर्घ निद्रा में सो रहे थे | काफी समय पश्चात् जब श्री कृष्ण छल करके पीछा करने वाले कालयवन को उस गुफा में ले गए तो अन्दर गुफा में कालयवन ने राजा मुचुकुन्द को भ्रम से श्री कृष्ण समझ कर पैरो से मारा और उनकी दृष्टि मात्र से जल कर भस्म की ढेरी बन गया |
मुचुकुन्द ने भगवान का स्तवन कर दूसरे जन्म में जातिस्मर्ता और मोक्ष प्राप्ति का वरदान प्राप्त किया | फिर इसके बाद राजा मुचुकुन्द उस रहस्यमय गुफा से बहार आये और उन्होंने देखा कि दूसरे मनुष्य उनकी अपेक्षा बहुत छोटे आकार के हैं और समझा की कलियुग का आरम्भ हो चुका है |
पश्चिम के विद्वानों ने और भारतवर्ष के कुछ मूर्धन्य विद्वानों ने आर्ष-ग्रंथों के दीर्घ युग कल की तथा पूर्व युग-काल के मानव देह की अत्यधिक उच्चता को लेकर कई जगह बड़ी हंसी उड़ाई है | उसके पीछे कुछ मजबूत वजहे हैं |
अधिकतर वैज्ञानिक ये मानते हैं कि विश्व पटल पर सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का उदय ज्यादा से ज्यादा पांच से दस हज़ार साल पहले ही हुआ था और उस समय के मनुष्यों से आज के मनुष्यों की ऊंचाई में कोई बहुत अंतर नहीं आया है | अगर कोई ग्रन्थ, पुस्तक या पाण्डुलिपि इस बात को कहती है तो वो कपोल-कल्पना के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है | परन्तु भारतीय आर्ष-ग्रंथों में पाश्चात्य विद्वानों की बढ़ती रूचि से अब परिस्थितियां बदलने लगी हैं |
बदली हुई सोच एवं वैज्ञानिक सिद्धांतो के साथ निरंतर अनुसंधानों ने जहाँ एक तरफ बाइबिल आदि ग्रंथों की सृष्टि कथा को काल्पनिक प्रमाणित किया है वहीँ नए मिलने वाले सटीक एवं अकाट्य प्रमाण (विश्व प्रसिद्ध वेधशालाओं से), हिन्दू आर्ष-ग्रंथों में वर्णित ब्रह्मांडो-उत्पत्ति (Origin of Universe) एवं ब्रह्मांडीय घटनाओं (Cosmic Events) के सत्यता की तरफ इशारा कर रहे हैं |
मनुष्यों की ऊंचाई के सन्दर्भ में भी कुछ ऐसे नए तथ्यों का उद्घाटन हुआ है जिनसे ये प्रमाणित होता है की प्राचीन कल में मानव और अन्य जीवों के शरीर बहुत बड़े आकार के थे और वे क्रमशः छोटे होते जा रहे हैं | आज से चार हज़ार वर्ष पहले तक विश्व के अधिकांश भागों में सनातन धर्म (जिसको आज दुनिया हिन्दू धर्म के नाम से जानती है) का ही स्पंदन था |
सर्वत्र सनातन धर्म का ही प्रचलन था | सनातन धर्म में मृत्यु के बाद शवदाह की प्रथा हमेशा से चली आई है इस कारण से एक निश्चित काल से पहले का मानव कंकाल प्राप्त होना बहुत ही कठिन है तथापि बीच-बीच में कहीं-कहीं प्राचीन अतिकाय मानव कंकाल मिल ही जाते हैं | व्हेनसांग के वर्णन का प्रमाण : बहुत प्राचीन काल में न जाते हुए अगर हम सातवीं शताब्दी में प्रसिद्ध चीनी यात्री व्हेनसांग के भारत-भ्रमण के वर्णनों को ही पढ़ लें तो हिन्दू आर्ष-ग्रंथों के बातों की पुष्टि हो जाती है |
उसने कुरुक्षेत्र को धर्मक्षेत्र के नाम से वर्णित किया है (धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः) | कुरुक्षेत्र के युद्ध के सम्बन्ध में उसने जो विवरण दिया है उसके अनुसार “मृत देह लकड़ी के ढेर के समान स्तूपाकार हो गए थे ; और तब से आज तक इस प्रान्त में सर्वत्र उनकी हड्डियाँ बिखरी हुई पायी जाती हैं | यह बहुत प्राचीन समय की बात है, क्योकि हड्डियाँ बहुत बड़ी-बड़ी हैं” | व्हेनसांग ने निश्चित रूप से कुरुक्षेत्र युद्ध में मरे हुए व्यक्तियों की हड्डियाँ देखि होंगी और ये तत्कालीन लोगों के आकार के अपेक्षा बहुत बड़ी थी |
भारतवर्ष में प्राचीन अतिकाय मानव कंकाल : १९४१ में कुरुक्षेत्र के समीप एक विलक्षण, आकार में काफी बड़ा नर-कपाल पाया गया | तत्कालीन समाचारपत्रों में इसका वर्णन छपा था | खुदाई करने पर संभव है कि उस क्षेत्र से भविष्य में और भी चिन्ह बाहर निकल सकें | भारत में और जगहों पर भी वृहत आकार के नर कंकाल पाए गए हैं |
लगभग उनचास (४९) वर्ष पहले मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में सोहागपुर के पास एक वृहद् आकार का नर-कंकाल पाया गया था | दुःख की बात है कि प्रमाण स्वरुप इसका कोई फोटोग्राफ या कोई अंश नहीं सहेज कर रखा गया | विश्व-फलक पर प्राचीन अतिकाय कंकाल : ९ अगस्त १९४७ के नागपुर के हितवाद नामक समाचार पत्र में, न्यू-यॉर्क के ग्लोब टाइम्स में प्रकाशित एक समाचार छपा था |
इसके अनुसार कोलोराडो की रहस्यमय मरुभूमि की एक गुफा में अनेको नौ फीट लम्बे नर-कंकाल पाए गए | ऐसा अनुमान किया जाता है कि वह स्थान लगभग आठ हज़ार साल पहले किसी प्राचीन जाति के राजवंश का समाधिस्थल था |
एक दूसरे घटनाक्रम में इंग्लैंड के एक प्रसिद्ध समाचार पत्र Illustrated London News के ५ अक्टूबर १९४७ और २ नवम्बर १९४७ के अंको में इस विषय पर एक लेख और कुछ चित्र प्रकाशित हुए | इसके अनुसार दक्षिण अफ्रीका के प्रसिद्ध डॉक्टर एल . एस . बी . लीकी को १९४३ में केन्या की मैगज़ी झील में, अलर्जेसली में तथा उससे पहले Tanganyika के Old way George में जीर्णावस्था में विचित्र जीवों के कंकाल और दांत मिले थे जो विशालकाय थे | डॉक्टर लीकी के अनुसार लगभग सवा लाख साल पहले ये विचित्र जानवर मनुष्य के साथ-साथ रहते थे |
हिन्दू आर्ष-ग्रंथों में मनुष्य का केवल एक विशिष्ट स्थान ही नहीं बल्कि प्राधान्य है | क्योकि चौदह भुवनो में एक मात्र पृथ्वी लोक ही कर्मक्षेत्र है और मानव शरीर ही एक मात्र कर्म करने का साधन | दूसरे सभी लोक भोग-भूमिया ही हैं और दूसरे सारे शरीर भोग-शरीर हैं | उनमे तथा उनके द्वारा मुक्ति के उद्देश्य से कोई कर्म नहीं होते | देवता को भी मुक्ति के लिए धरा-धाम में आकर मनुष्य देह ही ग्रहण कर जन्म लेना पड़ता है | आधुनिक विज्ञान के आधे अधूरे ज्ञान को लेकर सनातन धर्म के प्राचीन इतिहास और शस्त्र-शास्त्र के सिद्धांतों को अवहेलना की दृष्टी से देखना या उसकी हंसी उड़ाना उचित नहीं है |